पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/६७

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बजनियाँ बजागि 1 संज्ञा पुं० [सं० वादन वा बाजा ] (१) वह जो बजता स्यों बजरबट्ट, सुलसी की गुलिका सुधारे छवि छाजे है।- हो। बजनेवाला बाजा । (२) रुपया । (दलाल)। रघराज। +वि० [हिं० बजाना ] बजनेवाला । जैसे, बजना बाजा। बजरयोग-संज्ञा पुं० [हिं० वज्र+बोंग (अनु०)] (1) एक प्रकार बजनियाँ-संज्ञा पुं० सी० [हिं० बजना+श्या (प्रत्य॰)] | का धान जो अगहन महीने में पककर तैयार होता है। बाजा बजानेवाला । उ.--सेवक सकल बजनियाँ नाना। इसका चावल बहुत दिनों तक रह सकता है। (२) बाँस पूरन किये दान सनमाना ।तुलसी । का मोटा और भारी रहा। बजनिहाँ -संज्ञा पुं० दे० "बजनियाँ"। बजर-हड़ी-संज्ञा स्त्री० [हिं० वज्र+इड्ढी ] घोड़े का एक रोग बजनी, बजन -वि० [हिं० बजना ] बजनेवाला । जो बजता हो। जो उसके पैरों की गाँठों में होता है। इसमें पहले एक उ.-धुधरू बजनी, रजनी उजियारी । फोड़ा होता है जो पककर फूट जाता है और तब वहाँ बजबजाना-क्रि० अ० [ अनु०] किसी तरल पदार्थ का सबने घाव हो जाता है जो बराबर बढ़ता जाता है और गाँठ या गंदा होने के कारण बुलबुले छोड़ना । की हड्डी फूल आती है। इससे घोड़ा बेकाम हो जाता यजमाग-वि० [हिं० ब+मारा ] [स्त्री० बजमारौ ] बज्र है। यह रोग बड़ी कठिनाई से अच्छा होता है। से मारा हुआ। जिस पर वज्र पड़ा हो । उ०—(क) दान | बजरा-संवा पुं० [देश॰] (1) एक प्रकार की बड़ी और पटी लेहु देहु जान काहे को कान्ह देत हौ गारी । जो कोऊ हुई नाव जिसमें नीचे की ओर एक छोटी कोठरी और एक कह्यो कर री हठ याही मारग आवै बजमारी।—सूर । (ख)। बड़ा कमरा होता है और ऊपर खुली छत होती है। (२) ये अलि त पाइ पायन पर आय हौं न तब हेरी या दे० "बाजरा"। गुमान बजमारे मों। पभाकर । (ग) जा बजमारे अब मैं : यजरी-संज्ञा स्त्री० [सं० वज्र ] (1) कंकड़ के छोटे छोटे टुकड़े तोयों भूलि कछु नहि कहिहौं।-अयोध्या। जो गचके ऊपर पीटकर बैठाए जाते हैं और जिनपर विशेप-इस शब्द का प्रयोग प्रायः स्त्रियाँ गाली या शाप के : सुरखी और चूना डालकर पलस्तर किया जाता है । ककड़ी। रूप में करती हैं। (२) ओला । (३) छोटा नुमायशी फंगरा जो किले आदि बजरंग-वि० [सं० बनांग | वज्र के समान र शरीरवाला। की दीवारों के ऊपरी भाग में बराबर थोड़े थोड़े अंतर पर बजरंगबली-मंशा ५० [सं० व मांग+चली ] हनुमान । महावीर ।' बनाया जाता है और जिसकी बगल में गोलियां चलाने के बजरंगी बैठक-संशा थी । हि० बजरंग+बैठक ] एक प्रकार की लिए कुछ अवकाश रहता है। उ-है जो मेघगढ़ लाग बैठक । (कसरत)। अकासा । बजरी कटी कोट चहुँ पासा ।—जायसी । (४) बजर -संशा पुं० दे० "वन"। दे० "बाजरा"। बजरबट्ट-संज्ञा पुं० [हिं० ब+1 ] एफ वृक्ष के फल का बजवाई-संवा स्त्री० [हिं० बजवाना+ई (प्रत्य॰)] वह पुरस्कार दाना वा बीज जो काले रंग का होता है और जिसकी जो बाजा आदि बजाने के बदले में दिया जाय । वजाने की माला रोग बच्चों को नजर से बचाने के लिए पहनाते हैं। इसका घे तार की जाति का है और मलाबार में समुद्र बजवाना-क्रि० स० [हिं० बजाना का प्रे०] बजाने के लिए किसी के किनारे और लंका में उत्पन्न होता है। बंगाल और बर्मा को प्रेरणा करना । किसी को बजाने में प्रवृत्त करना । उ० में भी इसे लोग बोते और लगाते हैं। इसकी पत्तियाँ बहुत -जहाँ भूप उतरत गतशंका । तहाँ प्रथम यजयावत घड़ी और तीन साढ़े तीन हाथ व्यास की होती हैं और पंखे, डंका --गोपाल । घटाई, छाते आदि बनाने के काम में आती हैं। प्रोप में बजवैया-वि० [हिं० बजाना+वैया (प्रत्य॰)] बजानेवाला । इसकी नरम और कोमल पतियों से अनेक प्रकार के कटा.' जो बजाता हो। उ०—अंसी हूँ में आपही सप्त सुरन में वदार फीते बनाये जाते हैं और इसके रेशे से पुरुश बनाये आपु । अजवया पुनि आपुही रिझवया पुनि आपुर- और जाल बुने जाते हैं। इसकी रस्सियां भी घटी जा सकती रसनिधि। हैं। इसके फल बहुत कड़े होते हैं और यूरोप में उनसे बटन, बजा-वि० [फा०] उचित । ठीक । वाजिब । जैसे, आपका माला के दाने और छोटे छोटे पान बनाए जाते है । मला. फरमाना बिलकुल बजा है। बार में इसके पेगों को लोग समुद्र के किनारे बागों में मुहा०-बजा लाना=(१) पूरा करना । पालन करना । जैसे, लगाते हैं। यह पेड़ थालीस बयालीस वर्ष तक रहता है हुकुम बजा लाना । (२) करना । जैसे, आदाष बजा और अंत में पुराना होकर गिर पड़ता है। इसे नजरबटू लाना। और नजरघंटा भी कहते हैं । उ०-माजूफल शंख रुन-अक्ष : बजागि* -संवा स्त्री० [हिं० बब+आगि ] बन की आग । विद्युत् । - मजदूरी।