पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/६२

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बगली बगीच बगली-वि० [हिं० गल+ (प्रत्य॰)] बगल से संबंध रखने की ओर झुका हुआ । तिरछा । उ०-सकुचीली कारिन वाला। बगल का। की पुरुषन पै बगलौहीं। चाह भरी देर लौं घारु चितवन मुहा०-बगली घूसा-वह घुसा जो बगल में होकर मारा जाय । तिरछौंही।-श्रीधर पाठक । वह बार जो आड़ में छिपकर या धोखे से किया जाय। बगसना*1-क्रि० स० दे० "बरदशना"। उ.-(क) बगरि संशा स्त्री० (१) ऊँटों का एक दोष जिसमें चलते समय वितुंड दिये सुबन के झुंड रिपु मुंडन की मालिका दा उनकी जाँघ की रग पेट में लगती है। (२) मुगदर हिलाने ज्यों त्रिपुरारी को।-पनाकर । (ख) सरबस बगप्प अमित का एक ऊँग जिसमें पहले मुगदर को ऊपर उठाते हैं, फिर सुख रासू । है बनितन इक पति सुन सासू ।--पद्माकर उसे कंधे पर इस प्रकार रखते हैं कि हाथ मुठिया पकड़े | बगा*-संज्ञा पुं० [हिं० बागा ] जामा । बागा। उ०. नीचे को सीधा होता है और मुगदर का दूसरा सिरा कंधे सुनि आयो हो वृषभानु को जगा । ... पर होता है। फिर एक हाथ को ऊपर ले जाकर मुगदर को ........"नाचै फूल्यो आँगनाई सूर खसीस पाई माथे के पीछे सरकाते जाते है यहाँ तक कि वह पीठ पर लटक | चढ़ा लीनो लाल को लगा।-सूर । जाता है। इसी बीच में दूसरे हाथ के मुगदर को इसी *संज्ञा पुं० [सं० क ] बगला । उ०—शूरा मोरा है प्रकार ले जाते हैं जिस प्रकार पहले हाथ के मुगदर को भला, सत का रोपे पगा । घना मिला केहि काम का पीर पर मुलाया था और तब फिर पहले हाथ का मुगदर, सावन का सा बगा।--कवीर। हाथ नीचे ले जाकर, कंधे पर इस प्रकार लाते हैं कि उसका | बगाना*1-क्रि० स० [हिं० बगना का प्रे०] दहलाना । सै दूसरा सिरा फिर कंधे पर आ जाता है । इसी प्रकार बरा कराना । घुमाना। फिरना। उ०-लघु लघु कंचन केह यर करते रहते है। (३) बह थैली जिसमें दर्जी सूई तागा हाधी स्पंदन सुभग बनाई। तिन महँ धाय हाय कुमार रखते हैं और जिम्पको वे चलते समय कंधे पर लटका लेते लावहिँ अजिर बगाई। रघुराज । है । यह चौकोर कपड़े की होती है जिसके तीन पाट कि० अ० भागना। जल्दी जल्दी जाना । उ.-बार पा दोहर दोहर कर सी दिये जाते हैं और चौथे में एक डोरी बैल को निपट ऊँचो नाद सुनि, हैकरत दाध विरुधानों रस लगा दी जाती है जिसे थैली पर लपेटकर बाँधते हैं। यह रेला में। 'भूधर' भनत ताकी बास पाय सोर करि कुत्त थैली चौकोर होती है और इसके दो और एक फीता वा कोतवाल को गानो बगमेला में।-भूधर । डोरी के दोनों सिरे टाँके रहते हैं जिसे बगल में लटकाते बगार-संज्ञा पुं॰ [देश | वह स्थान जहाँ गाएँ बाँधी जाती है समय जनेऊ की तरह गले में पहन लेते हैं। तिलादानी। घाटी। (४) वह संध जो किवाद की बगल में मिटकिनी की सीध बगारना-कि०म० [सं० विकिरण, हि. बगरना । (१) फैलाना में चोर इसलिए खोदते है कि उसमें से हाथ डालकर सिट. छिटकाना । पसारना । विग्वेरना । उ०—(क) चोक किनी खसकाकर किवाद खोल लें। चौकी जराय जरी तेहि पै खरी बार बगारत पौधे ।- क्रि० प्र०काटना।-मारना । पद्माकर । (ख) जगर मगर दुति द्वनी केलि मंदिर में बग (५) वह लकड़ी जिसमें हुक्केवाले गड़गड़े को अटका | बगर धूप अगर बगायो त ।-भाकर । (२) दे. कर उनमें छेद करते हैं। (६) अंगे, कुरते आदि में कपरे । "बगराना"। उ.--बाल बिहाल परी कब की दबकी य का वह टुकड़ा जो आस्तीन के साथ कंधे के नीचे लगाया प्रीति की रीति निहारो। त्यों पद्माकर है न तुम्हें सु जाता है। बगल। कीनो जो बैरी बसंत बगा।-पमाकर । संज्ञा स्त्री० [हिं० वगला | स्त्री-धक । बगला नामक पक्षी . बगावत-संज्ञा स्त्री० [अ० । (१) बागी होने का भाव । (. की मादा। बलवा । विद्रोह । (३) राजद्रोह । बगली टाँग-संशा स्त्री० [हिं० बगली टांग ] कुश्ती का एक पेच बगिया*-संज्ञा स्त्री० [फा० बाग+हिं ० इया (प्रत्य॰)] बागीचा जिसमें प्रतिपक्षी के सामने आते ही उसे अपनी बगल में लाकर उपवन । छोटा बाग । उ.-(क) बन धन फूलहि टेसुब और उसकी टाँग पर अपना पैर मारकर उसे गिरा देते हैं। बगियन बेलि । चले विदेस पियरवा फगुआ खेलि।- बगली बह-संज्ञा स्त्री० [हि० बगली+बाँह ] एक प्रकार की कस रहीम । (ख) हंसी खुसी गोइयाँ मोरी बगिया पधारीत रत जिसमें दो आदमी बराबर बराबर खड़े होकर अपनी जोतिया परत महताब । देखते गोरी क मुँह-नगवा उड़ बाँह से दूसरे की बांह पर धक्का देते हैं। बलबिरवा के हथवा गुलाब ।--विरहा। बगली लँगोट-संज्ञा पुं० [हिं० बगली+गोट] कुश्ती का एक पैच। बगीचा-संशा पुं० [फा० बागचा ] [ स्त्री० अल्प ० बगीची ] वाटिका बगलौहाँ-वि० [हिं० बगल+औहाँ ] [ स्त्री. बगलीही ] बगल , उपवन । छोटा बाग़ । उ०--(क) लैके सब संचित रत