पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/५८१

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रंगई २८७२ रंगभूमि अधिक निश्चित हो जाता है। रंग मारना-बाजी जीतना। विजय संयो० कि०-डालना ।—देना । पाना । उ०—(क) यह होंठ जो कि पोपले यारो है हमारे (२) किसी को अपने प्रेम में फंसाना । (३) अपने कार्य- इन होठों ने बोया के बड़े रंग है मारे।-नज़ीर । (ख) साधन के अनुकूल करने के लिए बातचीत का प्रभाव इकबाजी के लिए हमने बिछाई चौसर । पासा गिरते ही डालना । अपने अनुकूल करना । अपना सा बनाना । उ०- गोया रंग हमारा मारा। लाज गली मुख खोले न बोले कियो रघुनाथ उपाय दुनी गंगई -संज्ञा पुं० [हिं० ग+ इ (प्रत्यक) ] धोषियों के अंतर्गत एक, को। कोटि रँगै नहि एक लगै जिमि सूम के आगे समान जाति जो केवल छपे हुए कपड़े धोने का काम करती है। . गुनी को।-रघुनाया रंगकाट-संहा. [सं. } पतंग नाम की लकड़ी। बकम । कि० अ० किसी के प्रेम में लिप्त होना । किसी पर आसक गंगक्षेत्र-सशाएम0 1 (1) अभिनय करने का स्थान । रंग होना । उ०—(क) जनम तासु को सुफल जो गै राम स्थल । नाट्यभूमि । (२) किमी उत्सव आदि के लिए के रंग।-रघुनाथदाप । (ख) संतन के उपदेश से रंग्यो सजाया हुआ स्थान। कछुक हरि रंग।-रधुराज । रंगगृह-संजा पुं० [सं०] रंगभूमि । नाट्यस्थल । संयो०क्रि०-जाना। रंगचर-श। पु . | in ] नाटक में अभिनय करनेवाला । नट । ' रंगपत्री-संज्ञा स्त्री० [सं०] नीली वृक्ष । गंगज-संज्ञा पु० [सं०] सिंदूर । रंगपुरी-संशा स्त्री० [ रगपुर ---ब गाल का एक नगर । एक प्रकार गंगजननी-संशा पर { सं० ] लाक्षा। लास्त्र । की छोटी नाव जिसके दोनों ओर की गलाही एक पी गंगजीवक-संशा 101 सं०] (1) चित्रकार । मसच्चर । (२) होती है। वह जो अभिनय करता हो। नट । रंगपुष्पी-संज्ञा स्त्री० [सं०] नीली वृक्ष । संगत-संशा रन 1 हि ग+न (प्रत्य) (1) रंग का भाव । रंगप्रवेश-संज्ञा पुं० [सं०] अभिनय करने के लिए किसी पात्र जैसे,—इसकी रंगत कुछ काली पड़ गई है। (२) मजा। का रंगभूमि में आना । आनंद । जैसे,--जब आप वहाँ पहुँचेगे, तभी रंगत रंगवदल-संशा पुं० [hि० रग+बदलना ] हल्दी । (साधू) आवेगी। रंगबिरंग-वि० [हिं० रग+बिरंग ( अनु.) ] (1) कई रंगों का। क्रि० प्र०-ग्विलाना ।-~म्युलना ।---जमना। (२) भौति भाँति के तरह तरह के । अनेक प्रकार के। मुहा०—गत आना मना होना । आनन्द होना । है जैसे,—(क) उनके पास रंग बिरंग कपड़े हैं। (ख) माँ (३) हालत । दशा । अवस्था। जैन,-आजकल उनकी टेनी और थाप कुलंग उनके बच्चे रंग बिरंग।। रंगत अच्छी नहीं है। रंगबिग्गा -वि० [हि रंगबिरंग] (9) अनेक रंगों का। कई रंगों गतग-संभा पु० [.रंग एक प्रकार की बड़ी और मीठी का। चित्रित । (२) तरह तरह का । अनेक प्रकार का । नारंगी । संगनरा।। रंगभरिया-संज्ञा पुं० [हि. रंगभग्ना ] छत, किवाडे, दीवार गंगद--संज्ञा १० सं०1 (1) मोहागा । (२) खदिरसार । इत्यादि पर रंगों से चित्रकारी करनेवाला । रंग करने- गंगदलिका-संशा स्त्री सं] नागवल्ली लता। नागबेला । वाला । रंगसाज। रंगदा-संशा श्री० [ स फिटकरी । रंगभवन-संशा पुं० [सं०] आमोद-प्रमोद वा भोगविलास करने गंगदायक-संगा पृ० [ 10 ] ककुष्ट नाम की पहाडी मिट्टी। का स्थान । रंगमहल। गंगढ़ा-सशः स्त्री० [सं० } फिटकरी, जिसमे रंग पक्का होता है। रंगभूति-संज्ञा स्त्री० [ सं० ] कोजागर पूर्णिमा । आश्विन की गंगदेवता-संज्ञा पु० [सं०] वह कल्पित देवता जो रंगभूमि के पूर्णिमा । अधिष्ठाता माने जाते हैं। विशेष-कहते है कि जो लोग हम रात को जागते रहते है. रंगन-संज्ञा पु. देश. ] एक प्रकार का मझोला वृक्ष । इसके उन्हें लक्ष्मी आकर धन देती हैं। हीर की लकड़ी कड़ी, चिकनी और मजबूत होती है और रंगभूमि-संशा त्रा० [सं० ] (9) वह स्थान जहाँ कोई जलसा इमारत के काम में आती है। बंगाल, मध्य प्रदेश और हो । उत्सव मनाने का स्थान । उ०-(क) रंगभूमि आये मदरास में यह बहुतायत से होता है। इसे 'कोटा दोउ भाई । अस सुधि सब पुरवासिन पाई । (ख) ऐहैं रंग- गंधल' भी कहते हैं। भूमि चलि जनहीं । मल्ल युद्ध कार मारब तबहीं।-- रंगना-कि०म० [हिं० रंग+ना (त्य०) । (१) किसी वस्तु पर नाथदास । (२) खेल, कूद वा तमाशे आदि का स्थान । रंग चढ़ाना। रंग में डुबाकर अथवा रंग चढ़ाकर किसी चीज़ क्रीडास्थल । उ-रंगभूमि रमणीक मधुपुरी बारि बढ़ाई को रंगीन करना । जैसे, कपड़ा रंगना । कियाहे रंगना। कहो दह कोजो।-सूर । (३) नाटक खेलने का स्थान ।