पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/५६७

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युगति युतक युगति*-संज्ञा स्त्री० दे० "युक्ति"। होते हैं, जिनके अधिपति विष्णु, सुरेज्य, बलभित, अग्नि, युगप-संज्ञा पुं० [सं०] गंधर्व । स्वष्टा, उत्तर प्रोष्टपद, पितृगण, विश्व, सोम, शक्रानिल, युगपत्-अन्य ० [सं०] एक ही समय में एक ही क्षण में । साथ अश्वि और भग हैं। प्रत्येक युग के पाँच वर्षों के युग साथ । जैसे,-मन की दो क्रियाएँ युगपत् नहीं हो सकतीं। क्रमशः संवत्सर परिवत्सर, इदावत्सर, अनुवत्सर और युगपत्र-सशा धुं० [सं० ] (1) कोविदार । कचनार । (२) वह | इस्सर कहलाते हैं। घृक्ष जिसमें दो दो पत्तियों आमने-सामने निकलती हों। युगोरस्य संज्ञा पुं० [सं०] सेना के सनिवेश का एक भेद। युग्मपर्ण । युभम-पत्र । (३) पहाड़ी आबनूस । युग्म-संज्ञा पुं० [सं०] (1) जोड़ा। युग। (२) अन्योन्याश्रित दो युगपत्रिका-संज्ञा पुं० [सं०] शीशम का पेड़ । वस्तुएँ या बातें । द्वंद्व । (३) मिथुन राशि । (४) कुलक का युगवाहु-वि० [सं०] जिसके हाथ बहुत लंबे हों । दीर्घबाहु। एक भेद जिसे युगलक भी कहते हैं। वि० दे० "युगलक"। युगम*-संज्ञा पुं० दे० "युग्म"। युग्मकंटका-संज्ञा स्त्री० [सं०] बेर। युगल-संज्ञा पुं० [सं० ] वे जो एक साथ दो हों। युग्म ।जोड़ा। युग्मक-संज्ञा पुं० [सं०] युगलक । युग्म । जोदा । जैसे, युगल छवि। युग्मज-संज्ञा पुं० [सं०] एक साथ उत्पन्न दो बच्चे । यमल । युगलक-संज्ञा पुं॰ [सं०] वह कुलक ( पच) जिसमें दो लीफों । यमज । वा पचों का एक साथ मिलकर अन्वय हो। युग्मधर्मा-वि० [सं० युग्मथमन् ] (१) जो स्वभावत: मिलता हो। युगलाण्य-संशा पुं० [सं०] बबूल का पेड़ । मिलनशील । (२) मिथुनधर्मा। युगत-संज्ञा पुं० [सं०] (1) प्रलय । (२) युग का अंतिम समय। युग्मपत्र-संज्ञा पुं० [सं०] (1) कचनार का पेड़ । (२) भोजपत्र युगांतक-संज्ञा पुं० सं०] (१) प्रलय काल । (२) प्रलय । : का पेड़ । (३) सतिवन । छतिवन । (५) वह पेद जिसकी युगांतर-संशा पुं० [सं०] (१) दूसरा युग। (२) दूसरा समय शाखा में दी दो पत्ते एक साथ होते हों। युग्मपर्ण । और ज़माना। यग्मपणे-संशा पुं० [सं०] (1) लाल कचनार । (२) सतिवन । मुहा०-युगांतर उपस्थित करना-समय पलट देना । किसी छतिवन । (३) दे० 'युग्मपत्र"। पुरानी प्रथा को हटाकर उसके स्थान पर नई प्रथा ( या उसका । युम्मपर्णा-संज्ञा स्त्री० [सं०] वृश्चिकाली । समय ) लाना। युग्मफला-संज्ञा स्त्री० [सं०] वृश्चिकाली। युगांशक-संज्ञा पु० [सं० वरमर । वर्ष । । युग्मफलिनी-संशा स्त्री० [सं०] दुधिया। दुद्धी । गुदनी । वि० युग का विभाजक । युग्मांजन-संशा पुं० [सं०] स्रोतांजन और सौवीरांजन इन दोनों युगाक्षिगंधा-संज्ञा स्त्री० [सं०] विधारा। का समूह। युगादि-संज्ञा पु० [सं०] (१) सृष्टि का प्रारंभ । युग्य-संज्ञा पुं० [सं०] (1) वह माड़ो जिसमें दो घोड़े या बैल वि० युग के आरंभ का । पुराना । जोते जाते हों। जोड़ी। (२) व दो पशु जो एक साथ गाड़ी संज्ञा स्त्री० दे. "युगाद्या"। में जोते जाते हो जोड़ी। युगादिकृत्-संशा पु० [सं०] शिव । वि० (१) जो जोता जाने के योग्य हो। (२) जो जोता युगाधा-संज्ञा स्त्री० [सं०] वह तिथि जिससे युग का आरंभ हआ . जानेवाला हो। हो। संवत्सर में ऐसी तिथियाँ घार हैं, जिनमें से प्रत्येक से युम्यवाह-संज्ञा पुं० [सं०] (1) जोडी हाँकनेवाला । (२) गादी- एक एक युग का आरंभ माना जाता है। ये श्रेष्ठ और शुभ वान् । सारथी। मानी जाती है, और इस प्रकार है-(१) वैशाख शुक्ल युल्य-वि० [सं०] (१) मिला हुआ । संयुक्त । (२) मिलाने तृतीया, सत्ययुग के आरंभ की तिथि; (२) कार्तिक शुक्ल योग्य । नवमी, प्रेतायुग के प्रारंभ की तिथि; (३) भाद्र कृष्ण त्रयो संज्ञा पुं०(१)संयोग। मिलाप । (२) एक प्रकार का साम। दशी द्वापर के प्रारंभ की तिथि; और (४) पूप की अमा- गुत-वि० [सं० ] (१) युक्त । सहित । (२) जो अलग न हो। वस्या, कलियुग के प्रारंभ की तिथि। मिला हुआ । मिलित । युगेश-संज्ञा पु० [सं० ] बृहस्पति के साठ वर्ष के राशि-चक्र में संज्ञा पुं० चार हाथ की एक नाप । गति के अनुसार पाँच पाँच वर्ष के युगों के अधिपति । यसक-संज्ञा पुं० [सं०] (1) संशय । संदेह । (२) युग । जोका। विशेष—यह चक उस समय से प्रारंभ होता है, जब वृहस्पति । (३) अंचल । दामन । (४) प्राचीन काल का एक प्रकार का माघ मास में धनिष्ठा नक्षत्र के प्रयाश में उदय होता है। वन जो पहनने के काम में आता था। (५) सूप के दोनों वृहस्पति के साठ वर्ष के काल में पांच वर्ष के बारह युग । ओर के किनारे जो ऊपर उठे हुए होते हैं और पीछे के उठे