पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/५५३

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यज्ञमय २८४४ यज्य चा यज्ञमय-संत्रा पुं० [ स० ] विष्णु। यज्ञसार-संज्ञा पुं० [सं०] गूलर का वृक्ष । यशमुख-संज्ञा पुं० [सं०] यज्ञ का आरंभ। यशसूत्र-संज्ञा पुं० [सं० ] यज्ञोपवीत । जनेऊ । यज्ञयूप-संशा पु० [सं० ] वह खंभा जिसमें यज्ञ का बलि-पशु यज्ञसेन-संशा पुं० [सं०] (१) विष्णु। (२) एक दानव का बाँधा जाता था । यूरकाष्ठ । नाम । यज्ञयोग्य-मंशा पुं० [40] गूलर का पेड़ । यज्ञस्तंभ-संज्ञा पुं० [सं०] वाह स्वभा जिसमें यज्ञ का पशु बाँधा यज्ञरस--संसा गं० [म. ] सोम । जाता है । यूप। यशगज-संज्ञा पुं० [सं० यज्ञराज ] चंद्रमा। यज्ञस्थल-संज्ञा पुं० [सं०] यज्ञमंडप । यज्ञरुचिमा पुं० [सं०Jएक दानव का नाम । यशस्थाणु-संशा पुं० दे. “यजस्तंभ"। यज्ञलिंग-संगा. म.] श्रीकृष्ण का एक नाम । यज्ञस्थान-संशा पु० [सं०] यज्ञशाला । यशवराह-सशा पुं० [सं०] विष्णु। यज्ञहृदय-संज्ञा पुं० [सं०] विष्णु । विशेष-कहते है कि विष्णु ने वराह का रूप धारण करने के : यक्षहोता-संशा पु० [सं० यशहीन ] (१) यज्ञ में देवताओं का उपरांत जब अपना शरीर छोड़ा, तब उनके भिन्न भिन आवाहन करनेवाला । (२) भागवत के अनुसार उत्तम मनु अंगी ये यज्ञ की सामग्री बन गई । इसी से उनका यह ! के एक पुत्र का नाम । नाम पड़ा। यसंग-संज्ञा पुं० [सं०] (1) विष्णु। (२) गृलर का पेड़। यज्ञवल्क-संज्ञा पु. [ सं ] एक प्राचीन ऋषि जो प्रसिद्ध याज्ञ- . (३) खैर का पेड़। वल्क्य ऋपि के पिता थे। यज्ञांगा-सा श्री० [सं० ] पोम लता। यज्ञवली-संशा स्त्री० [सं०] सोमलता। थशागार-संशा पुं० [सं०] वह स्थान या मंडप जहाँ यज्ञ यज्ञवाह-संगा पु, [सं०] (9) यज्ञ करनेवाला । (२) कार्तिकेय होता हो । यज्ञशाला । के एक अनुचर का नाम । यशात्मा-संज्ञा पुं० [सं० यशात्मन ] वि। यशवाहन-संज्ञा पु00 (१) यज्ञ करनेवाला। (२) ब्राह्मण। यज्ञाधिपति-मज्ञा पुं० [सं०] यज्ञ के स्वामी, विष्णु। यज्ञपुरुष । (३) विष्णु । (१) शिव । यज्ञारि-सज्ञा पुं० [सं०] (1) शिव । (२) राक्षस । यज्ञवाही-संज्ञा पुं० [ मं० यज्ञवाहिन् ] यज्ञ का सब काम यशाशन-संज्ञा पु० [सं० ] देवता । करनेवाला। । यशिक-मंशा धुं० [सं०] (१) वह पुत्र जो यज्ञ के प्रसाद स्वरूप यज्ञार्य-संज्ञा पुं० [सं०] विष्ण। मिला हो। (२) पलास का पेड़ । यशवृक्ष-संज्ञा [सं० 1 () बड़ का पेड़ । (२) विकत । यक्षीय-वि० [सं० ] यज्ञ संबंधी । यज्ञ का । यजवन-संशा ५० [सं०] वष्ठ जो यज्ञ करता हो। यज्ञ संज्ञा पुं० गृलर का पेड़ । करनेवाला। यज्ञश्वर-संशा पु० [सं०] विष्ण। यज्ञशत्र-गंशा पं० [सं०] (१) राक्षस । (२) खर साक्षस का यशेठ-मंज्ञा पुं० [सं०] रोहिस नाम की घाम । एक सेनापति, जिसे रामचंद्र ने मारा था। यज्ञोपवीत-संज्ञा पुं० [सं०] (1) जनेऊ । यज्ञसूत्र । (२) हिंदुओं यज्ञशाला-संशा पी० [सं०] यज्ञ करने का स्थान । यज्ञमंडप । में ब्राह्मणों, क्षत्रियों और वैश्यों का एक संस्कार, जो प्राचीन यज्ञशारत्र-संग - [सं.] वह शास्त्र जिसमें यज्ञों और उनके काल में उस समय होता था, जब बालक को विद्या पक्षाने कृलों आदि का विवंचन हो । मीमांया । के लिए गुरु के पास ले जाते थे। इस संस्कार के उपरांत यज्ञशाल-शा पु० [सं०] (१) वह जो यज्ञ करता हो। (२) बालक को स्नातक होने तक ब्रह्मचर्यपूर्वक रहना पड़ता ब्राह्मण । . था और भिक्षा वृत्ति से अपना तथा अपने गुरु का निर्वाह यज्ञशूकर--संज्ञा पुं. दे. “यज्ञवराह"। करना पड़ता था। अन्यान्य संग्कारों की भाँति यह संस्कार यज्ञश्रेष्ठा-संक्षा स्त्री० [सं०] सोम लता । भी आजकल नाम मात्र के लिए रह गया है। इसमें कुछ यज्ञसंम्तर-संशा पु० [सं०] वह स्थान जहाँ यज्ञ मंडप बनाया विशिष्ट धार्मिक कृत्य करके बालक के गले में जनेऊ पहना जाय । यज्ञभूमि । यज्ञस्थान । दिया जाता है। माह्मण बालक के लिए आठवें वर्ष, क्षत्रिय यज्ञमदन-संज्ञा पुं० [सं०] यश करने का स्थान या मंडप । बालक के लिए ग्यारहवें वर्ष और वैश्य बालक के लिए यज्ञशाला। बारहवें वर्ष यह संस्कार करने का विधान है। यतबंध । यज्ञमाधन-संजा पु० [सं०] (१) वह जो यश की रक्षा करता उपनयन । जनेऊ। हो । (२) विष्णु। यज्य-वि० [सं०] यजन करने के योग्य ।