पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/५४७

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२८३८ म्हारा बृहगराशर में चातुर्वर्ण और अंतराल वर्गों के अतिरिक्त म्लेच्छकंद-संज्ञा पुं० [सं० ] लहसुन । वर्णाचार-हीन को ग्लेच्छ लिग्बा है; और प्रायश्चित्त तत्व में म्लेच्छभोजन-संज्ञा पुं० [सं०] (१) यात्रक । बोरो। (२) गेहूँ। गोमांस-भक्षी, विरुद्ध भाषी और सर्वाचार विहीन ही म्लेच्छमुख-संज्ञा पुं० [सं० ] ताँबा । म्लेच्छ कहे गए हैं। (२) हिग। हींग। महा -सर्व० दे० "मुझ"। उ.--दास तुलसी सभय बदति वि० (1) नाच । (२)जो सदा पाप-कर्म करता हो। मयनंदिनी संदमति कत सनु संत म्हा को।-तुलसी। पापरत। म्हारा*1-सर्व० दे० "हमारा"।