पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/५२६

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मैथुन २८१७ मैना मैथुन-संज्ञा पुं० [सं०] स्त्री के साथ पुरुष का समागम । संभोग। भिदत नहीं जल ज्यौं उपदेश ।-केशव । (घ) श्याम रंग रति-क्रीड़ा। रंगे रंगीले नैन । धोये छुटत नहीं यह कैमेहु मिलै पिघिल मैथुन्य-संज्ञा पुं० [सं०] गांधर्व विवाह । है मैन ।-सूर । (३) राल में मिलाया हुआ मोम जिससे मैदा-संज्ञा पुं० [फा०] बहुत महीन आटा । 30-नेह मौन पीतल वा ताँब की मूर्ति बनानेवाले पहले उसका नमूना छवि मधुरता मैदा रूप मिलाय। बॅचत हलुवाई मदन : बनाते हैं और तब उस नमूने पर से उसका मांचा तैयार हलुआ सस्य बनाय।रसनिधि । करते हैं। मैदान-संज्ञा पुं० [फा०] (१) धरती का वह लंबा-चौड़ा विभाग मैनफर-संज्ञा पुं० दे. "मैनफल"। जो समथल हो और जिसमें पहाड़ी या घाटी आदि न हो। मैनफल-संज्ञा पुं० [सं० मदनफल ] (1) मझोले आकार का एक दूर तक फैली हुई सपाट भूमि । उ०—जब कढ़ी कोशल प्रकार का झागदार और कँटीला वृक्ष जिसकी छाल ग्वाकी नगर ते मैदान माहि बरात । तब भयो देवन भोर मानहु रंग की, लकड़ी सफेद अथवा हलके भूरे रंग की, पत्ते एक सिंधु द्वितिय दिखात ।-रघुराज । से दो इंच तक लंबे और अंडाकार तथा देखने में चिड़चिड़े मुहा०-मैदान छोड़ना या करना-किमी काम के लिए बाच में के पत्तों के समान, फूल पीलापन लिए याद रंग के, कुछ जगह खाली छोड़ना । मैदान जाना-शौचादि के लिए पाँच पंखड़ियोंवाले और दो या तीन एक साथ होते हैं। जाना । (विशेषतः बस्ती के बाहर ) इसमें अस्वरोट की तरह के एक प्रकार के फल लगते हैं जो (२) वह लयी घौड़ी भूमि जिसमें कोई ग्वेल खेला जाय पकने पर काल पीलापन लिए सफेद रंग के होते हैं। इसकी अथवा इसी प्रकार का और कोई प्रतियोगिता या प्रति छाल और फल का व्यवहार ओपधि के रूप में होता है। इंद्विता का काम हो । उ०—(क) चहुँ दिसि आव अलोपत (२) इस वृक्ष का फल जिसमें दो दल होते है और जिसके भानू । अब यह गोय यही मैदान । ---जायगी । (ख) श्री वीज बिहीदाने के समान चिपटे होते हैं। इसका गृदा मनमोहन खेलत चौगान । द्वारावती कोट कंचन में रच्यो पीलापन लिए लाल रंग का और स्वाद कडुआ होता है। रुचिर मैदान । -सूर। इस फल को प्रायः मछुए लोग पीसकर पानी में डाल देने मुहा०---मैदान में आना मुकावले पर आना । प्रतियोगिता या है, जिससे मब मछलियाँ एकत्र होकर एक ही जगह पर आ प्रतिद्वंद्विता के लिए मामने आना । मैदान साफ होना-मार्ग में जाती हैं और तब वे उन्हें सहज में पकड़ लेते हैं । यदि ये कोई बाधा आदि न होना। मैदान मारना-प्रतियोगिता में फल वर्षा ऋतु में अन्न की राशि में रख दिए जायें, तो उसमें जीतना । खेल, पानी आदि मैं जीतना। कोड़े नहीं लगते। वमन कराने के लिए मैनफल बहुत अच्छा (३) वह स्थान जहाँ लड़ाई हो युद्ध-क्षेत्र । रण-क्षेत्र । समझा जाता है। वैद्यक में इसे मधुर, कहा, हलका, महा०---मैदान करना-लड़ना । युद्ध करना। उ०-जेहि पर गरम, वमनकारक, रूखा, भेदक, चरपरा, तथा विद्रधि, चदि करि मैं मैदाना । जीतहुँ सकल बीर बलबाना । जुकाम, घाव, कफ, आनाह, सूजन, त्वचा रोग, विपविकार, विश्राम । मैदान छोसना लड़ाई के स्थान से हट जाना। बवासीर और ज्वर का नाशक माना है। मैदान मारना-विजय प्राप्त करना। मैदान हाथ रहना= मैनरी-संज्ञा पुं० दे० "मैनफल" । लड़ाई में विजया होना । जीतना। मैदान होना-युद्ध होना। मैनशिल-मंशा पुं० दे. "मैनमिल"। (४) किसी पदार्थ का विस्तार । (५) रख आदि का विस्तार मैनसिल-संज्ञा पुं० [सं० मनःशिला ] एक प्रकार की धातु जो जवाहिर की लंबाई चौड़ाई। (जौहरी) मिट्टी की तरह पीली होती है और जो नेपाल के पहाड़ों मैदा लकड़ी-संज्ञा स्त्री० [स. मदा+हिं • लकड़ी ] एक प्रकार की में बहुतायत से होती है। वैधक में इसे शोधकर अनेक जड़ी जो औषध के काम में आती है। यह मफेद रंग की प्रकार के रोगों पर काम में लाते हैं और इसे गुरु, और बहुत मुलायम होती है। वैद्यक में इसे मधुर, शीतल, वर्णकर, सारक, उष्णवीर्य, कटु, तिक्त, स्निग्ध और विष, भारी, धातुवर्धक, और पित्त, दाह, ज्वर तथा खाँसी आदि श्वास, कुष्ट, ज्वर, पांडु, कफ तथा रत, दोप-नाशक को दूर करनेवाली माना है। मानते हैं। मैन-संज्ञा पुं० [सं० मदन ] (1) कामदेव । मदन । (२) मोम । पर्या-मनोज्ञा । नागजिका। नेपाली। शिला। कल्याणिका। उ०-(क) मैन के दसन कुलिस के मोदक कहत सुनत रोगशिला । गोला । दिव्यौषधि । कुनढी । मनोगुप्ता । बौराई।-सुलसी । (ख) जा सँग जागे हौ निसा जायों मैना-संज्ञा स्त्री० [सं० मदना, मदनशलाका ] काले रंग का एक लागे नैन । जा पग गहि मति मैन भै मैन-विधस सो मैं प्रसिद्ध पक्षी जिसकी चोंच पीली या नारंगी रंग की होती न।-रामसहाय । (ग) मैन बलित नव बसन सुदेश। है और जो सिखाने से मनुष्य की सीबोली बोलने लगती ७०५