पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/५२१

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मेधाजित् २८१२ मेरी शक्ति । धारणावाली बुद्धि । (२) दक्ष प्रजापति की एक मेनाधव-संज्ञा पुं० [सं०] हिमालय । कम्या । (३) पोडश मातृकाओं में से एक जिसका पूजन | मेम-समा स्त्री० [अं० मैडम का संक्षिप्त रूप] (9) योरोप या अमेरिका नांदीमुख श्राद्ध में होता है। (४) छप्पय छंद का एक भेद। आदि की स्त्री । (२) ताश का एक पत्ता जिसे बीथी या मेधाजित्-संज्ञा पुं० [सं०] कात्यायन मुनि । रानी भी कहते हैं। यह पत्ता बादशाह से छोटा और गुलाम मेधातिथि-मंशा पुं० । मं० ] एक नाम जो बहुत से लोगों का से बड़ा माना जाता है। है-(१) काण्ववंश में उत्पन्न एक अपि जो ऋग्वेद के प्रथम मेमना-मंजा पुं० ! अनु० मे में 1 (1) भेड़ का बच्चा । (२) घोड़े मंडल के १२-३३ सूक्तों के द्रष्टा थे। (२) कण्व मुनि के . की एक जाति । उ०--कोई काबुल कंबोज कोई कच्छी । पिता । ( महाभारत ) (३) भट्ट वीरस्वामी के पुत्र जो मनु, यांत मेमना मुंजी लच्छी।-विश्राम । संहिता के प्रसिद्धू भाष्यकार है। (४) प्रियव्रत के पुत्र और मेमार-संभा पु० [अ० ] भवन निर्माण करनेवाला शिल्पी । इमारत शाफद्वीप के अधिपति । ( भागवत ) (५) कर्दम प्रजापति यनानेवाला । यवई । राजगीर ।। मेमोरियल-संज्ञा पुं० [अं०] (1) वह प्रार्थनापत्र जो किमी मेधावती-संज्ञा स्त्री० [सं०] महाज्योतिष्मती लता। बड़े अधिकारी के पास विचारार्थ भेजा जाय । (२) स्मारक मेधावान्-वि० [सं० मेधावत् ] [ स्त्री मेधावती ] जिसकी ग्मरण चिह्न । यादगार । शक्ति तीन हो । धारणाशक्तिवाला । मय-वि० [ में० ] (1) जिम्मकी नाप जोख हो सके। जिसका मेधावी-वि० [ मं० मेधाविन् ] [स्त्री. मेधाविनी ] (1) मेधा शक्ति- परिमाण या विस्तार ठीक बताया जा सके। (२) जो नापा वाला । जिसकी धारणाशक्ति तीम्र हो। (२) बुद्धिमान् । जोखा जानेवाला हो। चतुर । (३) पंस्ति । विद्वान् । मेर-संज्ञा पुं० दे. "मेल" उ०—(क) एहि सो कृष्ण बलराज संज्ञा पुं० (१) झुक पक्षी । सूआ। तोता। (२) मद्य । जस कीन्ह वह छर बाँध मन विचार हम आवही मेरहि शराय । (३) कश्यप के एक पुत्र । (४) च्यवन के एक पुत्र । दीज न काँध । —जायसी । (ख) अपने अपने मेरनि मानो उ.-यवनपुत्र मेधावी नामा । कर तपस्या विपिन उनि होरी हरख लगाई।-सूर । अकामा ।--विश्राम।

मेरक-मंशा पुं० [सं०] एक असुर जिसे विष्णु ने मारा था।

मधि-संशा पु० [सं०] उस स्थान पर गड़ा हुआ खंभा जहाँ ग्वेत । मरठी-संशा पुं० [ मेरठ नगर मे ] गन्ने की एक जाति जो मेरठ से लाकर फसल फैलाई जाती है। दानेवाले बैल हमी खंभे को ओर होती है। में बंधे हुए चारों ओर घूमकर पैरों से डंठलों के दाने मेरवना-क्रि० स० [सं० मेलन ] (1) दो या कई वस्तुओं को माइते हैं। एक में करना । मिश्रित करना। मिलना । उ-ते मेरए मेधिर-वि० [सं०] तत्पर बुद्धिवाला । मेधावी । बुद्धिमान् । धरि धरि सुजोधन जे चलते वह छत्र की छाहीं।-तुलसी। मेध्य-वि० [सं०] (1) बुद्धि बढ़ानेवाला । मेधाजनक । (२) (२) दो या कई व्यक्तियों को एक साथ करना । संयोग पवित्र । शुचि। कराना । मिलाप कराना । उ०—(क) चतुरवेद ही पंडित संज्ञा पुं० (१) स्वैर । काया । (२) जौ। (३) बकरा। हीरामन मोहि नाउँ। पावत सौं मेरवौ सेव करो तेहि मेनका संज्ञा स्त्री० [सं०] (1) स्वर्ग की एक अप्सरा जो इंद्र ठाउँ-जायगी। (ख) है मोहि आस मिले के जी मेरव की आज्ञा से विश्वामित्र का तप भंग करने के लिए गई थी करतार ।-जायसी। और विश्वामित्र के संयोग से जिसे शकुन्तला नाम की कन्या मेरा-सर्व० [हिं० न+रा (प्रा. करिओ, हि० केरा)] [स्त्री. मेरी] उत्पन्न हुई थी। (२) उमा या पार्वती की माता जो हिम-: "मैं" के संबंधकारक का रूप । मुझसे संबंध रखनेवाला । वान् की पली थी। मदीय । मम । जैसे,---यह घोड़ा मेरा है। मेनकात्मजा-सज्ञा स्त्री० [सं०] (१) शकुंतला । (२) पार्वती। मंशा पुं० दे० "मेला"। उ०-यह संसार सुपन जस दुर्गा । मेरा । अंत न आपन को केहि केरा ।-जायसी। मेनकाहित-संज्ञा पुं० [सं०] रासक नामक नाटक का एक भेद। मेराउ-संज्ञा पुं० दे० "मेराव" | उ.- धनि ओहि जीव दीन्ह मेना-संशा ना० [सं०] (1) पितरों की मानसी कन्या मेनका। बिधि भाऊ। दहुँ का यउँ लेइ करह मेराऊ।-जायसी । (२) हिमवान् की स्त्री, मेनका । (३) स्त्री। (४) वृषणश्व मेराव-संज्ञा पुं० [हिं. मेर-मेल ] मेल । मिलाप । समागम । की मानसी कन्या। (अम्वेद) (५) वाक् । उ०—पदुमावति पुनि पूजा आवा । होइहि ओहि मिसु मेनाद-सज्ञा पुं० [ अनु० मे+नाद ] (1) बिल्ली । (२) बकरी। दिस्ट मेरावा ।—जायसी । (३) मोर। मेरी-सर्व० "मेरा" का स्त्री० रूप ।