पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/५२

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बँधवाना २३४५ बंध्यापुत्र बँधवाना-क्रि० स० [हि दाधना का प्र०) (1) बांधने का काम का करिहाँ हम याहि बरंगे। हैहयराज करी स करेंगे। दूसरे से कराना। दूसरे को वाँधने में प्रवृत्त करना । (२) केशव । (५) पिता । (६) बंधूक पुष । देना आदि नियत कराना। मुकर्रर कराना । (३) कैद बंधुआ-मज्ञा पु. हिं. वैधना+उअ: (प्रय० कैदी। बंदी। कराना । (५) ( तालाब, ओ, पुल, आदि) बनवाना। उ.-बंधुआ को जैसे लग्बत कोइ कोह मनुष सुतंत ।- तैयार कराना। लक्ष्मणसिंह। बंधान-सज्ञा पुहिक बंधना] (१) किसी कार्य के होने अथवा बंधुक-सशा पु० मा ] (1) दुपहरिया का फल जो लाल रंग किसी पदार्थ के लेने देने आदि के संबंध में बहुत दिनों का होता है। (२) दुपहरिया फल का पौधा । से चला आया हुआ निश्चित क्रम या नियम । लेन देन बंधुजीव, बंधुजीवक-सहा पु०म० ! (३) गुलदुपहरिया का आदि के संबंध की नियत परिपाटी । जैसे,—यहाँ फो। पाधा । (२) महरिया का फल । रुपया एक पैसा आढ़त लेने का बंधान है। (२) वह बंधुता-सना २१० [सं० (१) बंधु होने का भाव । (२) पदार्थ या धन जो इस परिपाटी के अनुसार दिया या लिया भाईचारा । (३) मित्रना। दोस्ती। जाय । (३) पानी रोकने का धुस्म । बाँध । (४) ताल का बंधुत्व सगा पु० [सं०] (1) यंधु होने का भाव । बंधुता । सम । (संगीत)। उ०—(क) उगटहि छंद प्रसंध गीन पद (२) भाईचारा । (३) मित्रता । दोस्ती। राग तान बंधान । सुनि किनर गंधर्ष पराहत विथके हैं। बंधुदत्त-सशः पुं० [म० ! वह धन जो कन्या को विवाह के समय विबुध विमान ।-तुलसी। (ख) तुरग नचावहि कुँवर माता-पिता या भाइयों आदि में मिलता है। स्त्री-धन । न्वर अकनि मृदंग निसान । नागर नट चितवहि चकित बंधुदा-सज्ञा स्त्री० [सं० । (१) दुराचारिणी स्त्री। बदचलन डिगहि न ताल बंधान ।—तुलमी। (ग) मिथिलापुर औरत । (२) वेश्या । रंडी। के नर्तक नाना। नाचे डग न ताल बँधाना ।-रघुराज। बंधुर-समा ५० [स० ] (1) मुकुट । (२) दुपहरिया का फल । बँधाना-क्रि० म. ||६० बबन] (१)गाँधने के लिए प्रेरणा करना। (३) बहरा मनुष्य । (४) हंग। (५) बिडंग। (६) काक- बाँधने का काम दूसरे से कराना । बँधवाना । (२) डासिंगी । (७) दक । बगला नामक पक्षी । (4) पक्षी। धारण कराना । जैसे, धीरज बंधाना । हिम्मत बंधाना। वि० [सं० ] (1) रम्य । मनोहर । सुदर । (२) नम्र । (३) क्कैद कराना । विशेष—दे. "बँधवाना"। बंधुल-सा ५० स०] (१) दुराचारिणी स्त्री से उत्पन्न पुरुष । यद- बंधाल-स. ५०० दधान ] नाव या जहाज़ में बह स्थान चलन औरत का लड़का । (२) वश्यापुन । रंडी का लड़का । जिसमें रसकर या छेदी में से आया हुआ पानी जमा होता वि० (1) सुदर । खबसूरत । (२) नम्र । है और जो पीछे उलीचकर बाहर फेक दिया जाता है। बँधुवा-मता ५० दे० "वधुआ'। गातखाना । गमतरी। बंधूक-स.। १० (३) दे. "बंधुक"। (२) दोधक नामक वृत्त बँधिका-संशा जी ||४० धन वह डोरी जिसमें ताने की का एक नाम । इसे 'बंधु' भी कहते हैं। दे. "बंधु" । ___ माँथी बाँधी जाती है । ( जुलाहे )। बंधेज-मसा पुहिक बना प्रत्य०] (1) नियत समय बंधित-वि० सब-या | बंध्या । बाँडा । (डिंग)। पर और नियन रूप से मिलने या दिया जानेवाला पदार्थ बंधी-मक्षा पु० [सं० बनिन् ] वह जो बँधा हुआ हो। वह जिर या दृष्य । (२) नियत समय पर या नियत रूप से कुटट देने में किसी प्रकार का बंधन हो। की क्रिया या भाव। (३) किमी वस्तु को रोकने या बाँधने

  • संज्ञा स्त्री० [हिं० बधना=नियन होना | बँधा हुआ क्रम । की क्रिया या युक्ति। (४) रुकावट । प्रतिबंध । (५) वार्य

वह कार्यक्रम जिसका नित्य होना निश्चित हो । बंधेज । को जल्दी मवलित न होने देने की युक्ति । बाजीकरण । जैसे,—(क) उनके यहाँ रोज सेर भर बंधी का दूध आता बंध्य-मशा पु० [सं०] ऐसा पुल जिग्यके नीचे से पानी न बहता है। (ख) आप भी बंधी लगा लीजिये तो रोज़ की झंझट हो। पानी रोकने के लिए बनाया हुआ धुस्म । बांध । से छूट जाइएगा। बंध्या-वि० सी० [सं०] ( वह स्त्री) जो संतान न पैदा कर क्रि० प्र०—लगना ।—लगाना । सके । बाँझ। बंधु-सक्षा पु० [सं०] (1) भाई। भ्राता। (२) वह जो सदा यौ--बध्यापुत्र ।। साथ रहे या सहायता करे। सहायक । (३) मित्र । दोस्त। बंध्यापन-सज्ञा पु० दे० "बाँझपन"। (४) एक वर्णवृत्त जिसके प्रत्येक चरण में तीन भगण और बंध्यापुत्र-सज्ञा पु० [सं०] कोई ऐसा भाव या पदार्थ जिसका दो गुरु होते हैं। इसे दोधक भी कहते हैं। उ०-बाण न , अस्तित्व ही असंभव हो। ठीक वैसा ही असंभव भाव या बात तुम्हें कहि आवै । सोइ कहीं जिय तोहि जो भाव।। पदार्थ जैसे बंध्या का पुत्र कभी न होनेवाली चीज़ ।