पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/५१७

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मेखड़ा २८०८ मेघधनु क्रि० प्र०-उग्वादना।-गाड़ना।-ठोंकना।-मारमा । मेखवा-संज्ञा पुं० [फा० मेख ] सवारी लेकर चलते वक्त जब रास्ते मुहा०---मेख ठोंकना हाथ पैर मे काल ठोककर कहीं स्थिर | | में आगे खूटा मिलता है, तश्च उमसे बचने के लिए अगला कार दना । बहुत कठोर दड देना। ( इस प्रकार का दंड पहले | कहार यह पान्द बोलता है। प्रनलित था।) (२) हराना । दबाना । जेर करना । मेगज़ीन-संज्ञा पुं० [ अं०] (1) वह स्थान जहाँ सेना के लिए नो के मुंह में मेख ठोंकना-नोप का मुंह बंद करके उसे बारूद रखी जाती है। बारूदग्वाना । (२) सामयिक पत्र, निकम्मा कर देगा। मेख मारना-(१) कील ठोंककर चलना विशेषत: मासिक पत्र जिसमें लेग्व छपते हैं। या हिलना बंद कर देना । (२) कोई ऐसी बात बोल देना जिससे मेघ-संज्ञा पुं० [सं०] (1) आकाश में घनीभूत जलवाटप जिससे किसी का होता हुआ काम न हो। भौजी मारना । (३) चलते | वर्षा होती है। बादल । उ०—कबहुँ प्रबल चल मारुत हुए काम मे रुकावट डालना । उहँ तह मेध उड़ाहि -तुलसी। (२) संगीत में छ: (२) कील । काँट।। (३) लकड़ी की फटी जो किसी रागों में से एक। छेद में बैठाई हुई वस्तु को दीली होने से रोकने के लिए विशेष-हनुमत् के मत से यह राग ब्रह्मा के मम्तक से उत्पन्न इधर-उधर पेयी जाय । पचर। (४) घोड़े का लंगदापन है और किसी किमी के मत से आकाश से इसकी उत्पत्ति जो नाल जबते समय फिमी कील के ऊपर ठुक जाने से है। यह ओदव जाति का राग है; और इसमें ध नि सा होता है। रेग ये पांच स्वर मे रगते हैं 1 हनुमत् के मत से इसका मखड़ा-संशा स्त्री० [सं० मखला ] बाँस को वह फट्टी जिसे रले सरगम इस प्रकार है-ध नि सा रे ग म प ध । वर्षा पा माबे के मुंह पर गोल घेरा बनाकर बाँध देते है। काल में रात के पिछले पहर इये गाना चाहिए । इसकी मरल-संज्ञा स्त्री० [सं० मेग्वला ] (1) करधनी । किंकिणी। उ. खियाँ या रागिनियाँ मल्लारी, मोरठी, सारंगी वा हंसिका कटि मेग्वल बर हार ग्रीव दा रुधिर बाहु भूषन पहिराए।- और मधुमाधवी हैं (हनुमत् ) । अन्य मत से ये रागिनियाँ तुलसी । (२) वह वस्तु जो किसी दूसरी वस्तु के मध्य भाग है--मल्लारी, देशी, मोरठ, नाटिका, तरुणी और कार्द- में उसे चारों ओर मे घेरे हो । वि० दे० "मेखला"। चिनी । इसके पुत्र-मल्लार, गौर, कर्णाट, जलधर, मंहला-संज्ञा स्त्री० [सं०] (१) वह वस्तु जो किसी दूसरी वस्तु मालाहक, तेलंग, कमल, कुसुम, मेघनाट, सामंत, लम, के मध्य भाग में उसे चारों ओर से घेरे हुए पड़ी हो। भूपति, नाट और बंगाल है। (२) सिकड़ी या माला के आकार का एक गहना जो कमर (३) मुस्तक । मोथा । (४) तंडलीय शाक । (५) राक्षस । को घेरकर पहना जाता है। करधनी । तागदी। किंकिणी। मेघकी -संशा स्त्री० [सं०] स्कंदानुचर मातृभेद । पर्या०--सप्तकी । काँची । रशना । रसना । कक्षा । कलाप। मेघकाल-संज्ञा पुं० [सं०] वर्षा ऋतु । (३) कमर में लपेटकर पहनने का सूत या डोरी । करधनी। मेघगर्जन-संज्ञा पुं० [सं०] बादल की गरज । जैसे, मुंज मेखला । (४) कोई मंडलाकार वस्तु । गोल विशेष-मेघगर्जन के समय वेदाध्ययन निषिद्ध है। उप- घेरा। मंडल । मँडरा । (५) पेटी या कमरबंद जिसमें नयन के दिन यदि बादल गरजे, तो उपनयन टाल देना तलवार धाँधी जाती है। (६) डंडे, मूसल आदि के छोर पर चाहिए। या औजारों की भूठ पर लगा हुआ लोहे आदि का घेरदार ! मेघज्योति-संशा स्त्री० [सं० ] वनानि । बिजली । बंद । सामी। साम । (७) पर्वत का मध्य भाग । (८) | मेघडंबर-संज्ञा पुं० [सं०] (1) मेघगर्जन । (२) बड़ा चदोचा। बड़ा नर्मदा नदी। (९) पृश्निपर्णी । (१०) होम-कुंड के उपर शामियाना । दल बादल । (३) एक प्रकार का छन । चारों ओर बना हुआ मिट्टी का घेरा।(91) यशवेष्टन सूत्र । मेघडंबर रस-संशा पुं० [सं०] एक रसौषध जो श्वास और हिचकी (१२) कपड़े का टुकड़ा जो साधु लोग गले में गले रहते के रोग में दी जाती है। है। कफनी । अलफी। विशेष-बराबर बराबर पारे और गंधक की कजली चौलाई मेटली-संशा मी० [सं० मेखला ] (9) एक प्रकार का पहनावा के रम में पाँच दिन खरल करके मजबूत धरिया में रखकर जिसे गले में डालने से पेट और पीठ टकी रहती है और बालुका यंत्र से एक दिन भर की आँच देने से यह बनता दोनों हाथ खुले रहते हैं। यह देखने में तिकोना होता है| है। इसकी मात्रा ६ रत्ती है। और ऊपर चौडा तथा नीचे नुकीला होता है। इसे देव मेघदुभि-संज्ञा पुं० [सं०] (1) मेघ गर्जन । (२) एक राक्षस मूर्तियों को रामलीला, रासलीला आदि में पहनाते हैं। प्रायः | का नाम । साधु भी पहनते हैं। (२) करधनी। कटिबंध । उ-कबहुँक | मेघद्वार--संज्ञा पुं० [सं० ] आकाश । अपर खिरनही भावत कबहुँ मेखली उदर समानी।-सूर। मेघधनु-संघा पुं० [सं०] इंद्रधनुष ।