पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/४९७

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मुलायमत २७८८ मुश्कबिलाई सिंघाव आदि न हो। जैसे,—(क) उनका मुलायम स्वभाव है। मुवना*-कि० अ० [सं० मृत, प्रा. मिअ या मुअ+ना (प्रत्य॰)] (ख) ज़रा मुलायम सौलो; यह तो अभी पूरा भी नहीं हुआ। मरना । मृत होना । उ०--(क) गइ तजि लहरै पुरान मुहा०—मुलायम करना=किसी का क्रोध शांत करना। पाता। मुवउँ धूप सिर अहा न छाता ।—जायसी । (ख) यौ०-मुलायम चारा-(१) इलका भेरजन । (२) वह जो सहज जैसे पतंग आगि धेसि लीन्ही । एक मुवै दूसर जिउ में दूसरों की बातों में आ जाय 1 (३) यह जो सहज में प्राप्त दीन्ही। जायसी । (ग) नारि मुई, घर संपति नासी:- किया जा सके । (४) कोमल या सुकुमार शरीरवाला। तुलसी। मुलायमत-संज्ञा स्त्री० [अ०] (1) मुलायम होने का भाव।मुवाना* 1-कि० स० [हिं० मुवना का स० रूप ] हत्या करना । (२) सुकुमारता । (३) नज़ाकत । कोमलता। • प्राण लेना । मार डालना । उ०-इक सखी मिलि हँसति मुलायम रोआँ-संज्ञा पुं० [हिं० मुलायम+रोओं] साहेद और लाल पूछति बैंचि कर की ओर । तजि मुवाइ सुभखत नाही रोभा जो मुलायम होता है। (गडरिया) निरखि उनकी ओर ।-सूर। मुलायमियत-संज्ञा स्त्री० [अ० मुलायमत ] (1) मुलायम होने मुशजर-संशा पुं० [अ० ] एक प्रकार का छपा हुभा कपड़ा। का भाव । नर्मी। (२) नज़ाकत । कोमलता। मुशफ्रिय-वि० [अ०] (1) कृपालु । दयालु । (२) मित्र । मुलायमी-संज्ञा स्त्री० दे. "मुलायमत"। दोस्त । (३) तरस खानेवाला । दयावान । रहम-दिल । मुलाहज़ा-संज्ञा पुं० [अ०] (1) निरीक्षण । देख-भाल । मुआ- | मुशल-संज्ञा पुं० [सं०] धान आदि कूटने का डंडा । मूसल । यना । (२) संकोच । (३) रिआयत । मशली-संशा पुं० [सं० ] भूसल धारण करनेवाले, श्री बलदेव । क्रि० प्र०—करना ।-रखना ।—होना । | मुश्क-संशा पुं० [का०] (१) कस्तूरी । मृगमद । मृगनाभि । मुलुफ-संज्ञा पुं० दे० "मुल्क"। + (२) गंध । बू। मुलेठी-संज्ञा स्त्री० [सं० (मधुयष्टि) मूलयष्टी, प्रा० मूलयट्ठी ] घु घची संज्ञा स्त्री० [ देश. ] कंधे और कोहनी के बीच का भाग। या गुंजा नाम की लता की जब जो औषध के काम में । भुजा । बाँह। आती है। जेठी मधु । मुलही। महा-मुश्फ कसना या बाँधना=( अपराधी भादि की) विशेष-यह खाँसी की बहुत प्रसिद्ध और अच्छी ओषधि मानी । दोनों भुजाओं को पीठ की ओर करके बॉध देना । ( इससे जाती है। शक में इसे मधुर, शीतल, बलकारक, नेत्रों के लिए | आदमा बेबस हो जाता है । ) हितकारी, घोर्यजनक तथा पित्त, वात, सूजन, विष, वमन, मुश्कदाना-संज्ञा पुं० [फा० ] एक प्रकार की लता का श्रीज जो तृषा, ग्लानि और क्षय-रोगनाशक माना है। इसका सत्त इलायची के दाने के समान होता है और जिसके टूटने पर भी तैयार किया जाता है जो काले रंग का होता है और कस्तूरी की सी सुगंध निकलती है। संस्कृत में इसे लता- बाजारों में रुळखुसूस के नाम से मिलता है। यह साधारण कस्तूरी कहते हैं। वैद्यक में इसे स्वादिष्ट, वीर्यजनक, शीतल, जड़ की अपेक्षा अधिक गुणकारी समझा जाता है। कटु, नेत्रों के लिए हितकारी, कफ, तृपा, मुखरोग और पO०-यष्टिमधु । क्लीतका । मधुक । यष्टिका । मधुस्तम।।। दुर्गध आदि का नाश करनेवाला माना है। मधुम । मधुवली । मधूली । मधुररसा । अतिरसा । मधुर- मुश्कनाका-संशा पुं० [फा० ] कस्तूरी का नाफा जिसके अंदर नाम । शोषापहा । सौम्या। कस्तूरी रहती है। मुल्क-संज्ञा पुं० [ 10 ] (1) देश । (२) सूबा । प्रांत । प्रदेश। मुश्कनाभ-संशा पुं० [फा० मुश्क+सं० नाम ] वह मृग जिसकी (३) संसार । जगत् । नाभि में कस्तूसे होती है । कस्तूरी मृग । वि. दे. मुल्कगीरी-संज्ञा स्त्री० [अ० ] देश पर अधिकार प्राप्त करना । ___ "कस्तूरीमृग"। मुल्क जीतना। । मश्कविलाई-संशा स्त्री० [फा० मुश्क+हि. बिलाई-बिल्ली ] एक मुल्की -वि० [अ० ] (1) देश संबंधी । देशी । (२) शासन या प्रकार का जंगली बिलाव जिसके अंचकोशों का पसीना व्यवस्था संबंधी। बहुत सुगंधित होता है। गंध बिलाव । मुल्तधी-वि० [ Ho J जो रोक दिया गया हो। जिसका समय विशेष-अरबी में इसे जुबाद और संस्कृत में गंधमार्जार आगे बढ़ा दिया गया हो। स्थगित । वि० दे० "मुलतवी"। कहते हैं। इसके कान गोल और छोटे होते हैं और रंग भूरा मुल्ला-संशा पुं० [अ० ] मुसलमानों का आचार्य वा पुरोहित । होता है। दुम काली होती है, पर उस पर सफ़ेद छहरके मौलवी । वि० ० "मौलवी"। पड़े रहते हैं। लंबाई प्रायः ४०९च होती है। यह जंतु मुवक्किल-संज्ञा पु० [अ० ] वह जो अपने किसी काम के लिए राजपूताने और पंजाब के सिवा बाकी सारे हिन्दुस्थान में कोई वकील नियुक्त करे। वकील करनेवाला । पाया जाता है। यह बिलों में रहता है। शिकारी होता है;