पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/४८

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२३४१ बाँस। बंजर-संशा पुं० [सं० वन+ऊजड़ ] वह भूमि जिसमें कुछ उत्पन्न ! संशा श्री.दे." "। न हो सके। ऊसर । बँटैया-संज्ञा पुं० [ हिं. बँटाना+प्या (प्रत्य॰)] बँटा लेने बंजारा-संशा पुं० दे० "बनजारा"। वाला ।बटानेवाला । हिस्सा लेनेवाला। बंजुल, बंजुलक-संज्ञा पुं० दे. "वंजुल"। . बंडल-संज्ञा पुं० [ अं०] काग़ज़ या कपड़े आदि में बंधी हुई बंझा-वि० [सं० वंध्या ] ( वह स्त्री) जिसके संतान न हो। छोटी गठरी। पुलिंदा जैसे, अखबारों का बंडल, किताबों का बंशल, कादों का बंडल । संज्ञा स्त्री० [सं० बंध्या ] वह स्त्री जिसमें संतान पैदा कर ने बड़वा-वि० दे० "बाँदा" की शक्ति न हो। बाँझ। | बंडा-संज्ञा पुं० [हिं० बंटा ] एक प्रकार का कच्चू या अरुई जो बँटना-क्रि० अ० [सं० बटन ] (8) विभाग होना । अलग अलग आकार में गोल, गाँठदार और कुछ लबोत्तरी होती है। हिस्सा होना । जैसे,—यह प्रदेश तीन भागों में बँटा संशा पुं० [सं० बंध ] छोटी दीवार से घिरा हुआ वह स्थान है। (२) कई व्यक्तियों को अलग अलग दिया जाना । जिसमें अन्न भरा जाता है। बड़ी बखारी। कई प्राणियों के बीच सब को प्रदान किया जाना । जैसे,-वंडी संज्ञा स्त्री० [हिं० बाँझ-कटा हुआ ] (१) बिना अस्तीन की (क) वहाँ गरीबों को कपड़ा बँटता है। (ख) अब तो मिरज़ई। फतुही । कुरती। (२) बगलबंदी नामक पहनने सब आम बँट गये, सुम्हारे लिए एक भी न बचा । का वन। संयोकि०-जाना।

बँडेरा-संज्ञा पुं० दे० "बँडेरी" ।

संज्ञा पुं० दे० "बटना"। | बँडेरी-संज्ञा स्त्री० [हिं० बरेटा-बड़ा या सं० वरदंष्ट ] वह लकड़ी बँटवाई-संज्ञा स्त्री० [हिं० बॉटना ] बाँटने की मजदूरी। जो खपरैल की छाजन में मैंगरे पर लगती है। यह दो संशा स्त्री० [हिं० बाटना ] पिसवाने की मज़दूरी। पलिया छाजन में बीचोबीच लंबाई में लगाई जाती है। बँटवाना-क्रि० स० [सं० वितरण ] बाँटने का काम दूसरे से उ.-ओरी का पानी बँदेरी जाय। कंटा डबै सिल कराना । सब को अलग अलग करके दिलवाना । वितरण उतराय-कीर। कराना। बंद-संज्ञा पुं० [फा०] (1) वह पदार्थ जिससे कोई वस्तु बाँधी क्रि० स० [सं० वर्तन ] पिसवाना । जाय । (२) पानी रोकने का धुस्स । रोक । पुश्ता । में। बंटा-संज्ञा पुं० [सं० बटक, हि० बटा गोला] [ स्त्री. अल्प. बंटी ] बाँध । विशेष—दे. "बाँध" । (३) शरीर के अंगों का गोल अथवा चौकोर कुछ छोटा डब्बा। जैसे, पान का बंटा, ! कोई जोड़। ठाकुर जी के भोग का बंटा। क्रि०प्र०-जकर जाना।-दीले होना । वि० छोटे कद का । छोटे आकारवाला । (४) वह पतला सिला हुआ कपड़े का फीता जिससे अंग- बँटाई-संशा स्त्री० [हिं० बॉटना] (1) बाँटने का काम । वितरण रखे, चोली आदि के पल्ले बाँधे जाते हैं। तनी। (५) करना । (२) बाँटने की मजदूरी। (३) बाँटने का भाव । कागज़ का लंबा और बहुत कम चौड़ा टुकड़ा । (६) उर्दू (४) दूसरे को खेत देने का वह प्रकार जिसमें खेत जोतने कविता का टुकड़ा या पद जो पांच या छ: चरणों का वाले से मालिक को लगान के रूप में धन नहीं मिलता होता है। (७) बंधन । कैद।। बल्कि उपज का कुछ अंश मिलता है। जैसे, अब की बार वि० [फा०] (१) जिसके चारों ओर कोई अवरोध हो। सब खेत बटाई पर उठा दी। जो किसी ओर से तुला न हो। जैसे,—(क) जो पानी बँटाना-क्रि० स० [हिं० नॉटना ] (1) भाग करा लेना। हिस्सा बंद रहता है, वह सब जाता है। (ख) चारों ओर से कराकर अपना अंश ले लेना। (२) किसी काम में हिस्से बंद मकान में प्रकाश या दवा नहीं पहुँचती। (२) जो दार होने के लिए या दूसरे का बोझ हलका करने के लिए इस प्रकार घिरा हो कि उसके अंदर कोई जा न सके। (३) शामिल होना । जैसे, दुःख बटाना। जिसके मुँह अथवा मार्ग पर दरवाजा, ढकना या ताला मुहा०-हाथ बँटाना-दे. "हाथ" के मुहा० । आदि लगा हो। जैसे, बंद संदूक, बंद कमरा, बंद बँटावन*-वि० [हि. बॅटाना ] बँटानेवाला । हिस्सा कराने दुकान । (४) जो खुला न हो । जैसे, बंद ताला । वाला। उ.---बोलत नहीं मौन कह साधी विपति बँटावन (५) जिसका मुँह या भागे का मार्ग खुला न हो। बीर -सूर। जैसे,—(क) कमल रात को बंद हो जाता है। (ख) बंटी-संज्ञा स्त्री० [हिं०] हिरन आदि पशुओं को फंसाने का शीशी बंद करके रख दो। (१) (किवाय, उकना, पल्ला जाल या फंदा। भादि) जो ऐसी स्थिति में हो जिससे कोई वस्तु भीतर से