पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/४७

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बंकसाल २३४० बंकसाल-संज्ञा देश० ] जहाज़ का यह बया कमरा जिसमें बंगाल-संघा पुं० [सं० मंग] (1) बंग देश जो भारत का प्रवी मस्तूलों पर चढ़ानेवाली रस्मियाँ या जंजीरें आदि तैयार या भाग है। (२) एक राग का नाम जिसे कुछ लोग मेष राग ठीक करके रखी जाती है। का और कुछ भैरव राग का पुत्र मानते हैं। बंका-वि० [सं० वंक] (1) टेवा। तिरछा । (२) यांका। बंगालिका-संज्ञा स्त्री० [१] एक रागिनी जिसे कुछ लोग मेष (३) पराक्रमी । बलशाली। राग की भी मानते हैं। संज्ञा पुं० [देश हरे रंग का एक कीड़ा जोधान के पौधों . बंगाली-संज्ञा पुं० [हिं० बंगाल+ई (प्रत्य॰)] (1) बंगाल देश को हानि पहुँचाता है। का निवासी । (२) संपूर्ण जाति का एक राग । बंकाई-संज्ञा स्त्री० [सं० वंक+आई (प्रत्य॰)] टेदापन । तिरछा संज्ञा स्त्री० [हिं० बंग ] बंगदेश की भाषा । बंगला। पन । 30-आधु थकाई ही बदै तरुणि तुरंगम तान ।- बँगुरी-संशा स्त्री० दे० "बँगली"। विहारी। बंगू-संज्ञा पुं॰ [देश॰] (1) एक प्रकार की मछली जो प्रायः बंकी-संशा स्त्री० दे० "बाँक"। दक्षिण तथा बंगाल की नदियों में होती है। (२) भौंरा बंकुर -वि० दे. "क"। का जंगी नामक खिलौना जिसे बालक नचाते हैं। बंकरता-संशा श्री० [सं० चक्रता ] टेदाई । टेवापन । उ०- बंगोमा-संशा पुं० [देश॰] एक प्रकार का कछुआ जो गंगा आनन में मुखक्यान सुहावनी, बंकुरता अखियान छई है। और सिंधु में होता है। इसका मांस खाने योग्य होता है। -भिम्वारीदास। बंचक-संशा पुं० [सं० वंचक ] धूर्त । पाखंसी । ठगनेवाला । बंग-संज्ञा पुं० दे० "वंग"। उ०—लखि सुवेष जगबंचक जेऊ । वेष प्रताप पूजियत बंगई-संगा स्त्री० [सं० थंग ] एक प्रकार की बढ़िया काम जो तेऊ।-तुलसी। सिलहट में बहुत पैदा होती है। संज्ञा पुं० [ देश० ] जीरे के रूप रंग तथा आकार प्रकार बंगनापाली-संशा स्त्री. एक देशी मुसलमानी रियासत । की एक घास का दाना जो पहाड़ी देशों में पैदा होता है बँगला-वि० [हिं० बंगाल ] बंगाल देश का। बंगाल संबंधी। और जीरे में मिलाकर बेचा जाता है। जैपे, बैंगला मिठाई, बँगला जूगा। बंचकता, बंचकताई*1-संशा स्त्री० [सं० वंचकता ] छल । संज्ञा पुं० (१) एकतला करुचा मकान जिसपर फूस वा धूर्तता । चालबाज़ी । ग्वपड़ों का छप्पर पड़ा हो। (२) वह छोटा हवादार और बंचन-संशा पुं० [सं० वंचन ] छल । ठगपना । चारों ओर से खुला हुआ एक मंजिल का मकान जिसके बंचनता-संशा स्त्री० [सं० वंचनता ] ठगी। छल । उ०-दम चारों ओर बरामदे हों। पहले इस प्रकार के मकान दान दया नहिं जानपनी । जड़ता पर बंचनताति धंगाल में अधिकता से होते थे। उन्हीं की देखा देखी अँग धनी।-तुलसी। रेज़ भी अपने रहने के मकान बनाने और उन्हें बंगला कहने बंचना-संज्ञा स्त्री० [सं० वंचना ] ठगी। लगे थे। (३) वह छोटा हवादार कमरा जो प्रायः मकानों *क्रि० स० [सं० वंचन ] ठगना । छलना । उ०-पंचेह की सब से ऊपरवाली छत पर बनाया जाता है। (४) मोहि जौन धरि देहा । सोइ तनु धरहु साप मम एहा। बंगाल देश का पान । -तुलसी। संज्ञा स्त्री. बंगाल देश की भाषा । बंचर-संज्ञा पुं० दे० "वनचर"। बंगलिया-संज्ञा पुं० [हिं० बंगाल ] (१) एक प्रकार का धान । बैंचवाना-क्रि० स० [हिं० बाँचना ] पदवाना। दूसरे को पढ़ने (२) एक प्रकार का मटर । में प्रवृत्त करना । बँगली-संशा स्त्री० [हिं० वगल ] नियों का एक भाभूषण जो बंचित-वि० दे. "वंचित"। हाथों में चूदियों के साथ पहना जाता है। बंछना-क्रि० स० [सं० वांछ ] अभिलाषा करना । इच्छा बंगली-संज्ञा पुं० [?] घोबा । (रि) करना। वाहना। बंगसार-संज्ञा पुं० [? 7 पुल की तरह बना हुआ वह चबूतरा जो बंछनीय* -वि० दे० "वांछनीय" । समुद्र में दूर तक चला जाता है और जिस पर से लोग बंछित*-वि० दे."वांछित"। जहाज़ पर चढ़ते वा उससे उतरते हैं। बनसार । बंज-संज्ञा पुं० दे. "बनिज"। बंगा-वि० [सं० रक] (1) टेवा । (२) मूर्ख । बेवकूफ़ । (३) संज्ञा पुं॰ [देश॰] हिमालय प्रदेश का एक प्रकार का लाई अगवा करनेवाला । उहंस।। बलूत का पेड़ जिसकी लकड़ी का रंग खाकी होता है। बंगारी-संधा पुं० [सं० बंग+अरि ] हरसाल। (हि.) इसको सिल और मारू भी करते।