पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/४६३

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मिसरोटी २७५४ मिन सब प्रकार के रोगों को शांत करनेवाली और रक्त-पित्त को | मिस्कोन सूरत-वि० [अ० मिरकीन+मा. सूरत ] जो देखने में नष्ट करनेवाली मानी गई है। सीधा-सादा था दीन, पर वास्तव में दुष्ट या पाजी हो। मुहा०-मिसरी की डली-शुत दी मांटा या मधुर पदार्थ मिस्कीनी-संज्ञा स्त्री० [अ० मिस्कीन+ई ( प्रत्य० ) ] (१) दीनता। सशास्त्री० [ देश० ] एक प्रकार की शहद की मक्खी। (२) गरीबी । (३) सुशीलता। मिसगंटी-संक्षा सी० [हिं० मिरसा+रोटी ] (1) मिस्मे आटे की | मिस्कोट-संज्ञा पुं॰ [ अं० मेस-भोज ] (1) भोजन । खाना। बनी हुई रोटी। वि० दे० "मिस्सा"। (२) कंडे आदि पर (२) एक साथ बैठकर खाने पीनेवालों का समूह । (३) गुप्त सेंककर बनाई हुई बाटी । अगाकड़ी। परामर्श । मिसल-संशात्री० [अ० मिसिल ] सिक्खों के वे अनेक समूह जो मिस्टर-संज्ञा पुं० [अ० ] महाशय । महोदय । अलग अलग नायकों की अधीनता में स्वतंत्र हो गए थे। विशेष—इस शब्द का व्यवहार प्रायः अंगरेजों में अथवा ( गुरु नानक के बंदा नामक शिष्य की देखा-देखी और भी अंगरेजी ढंग से रहनेवाले लोगों के नाम के साथ होता है। अनेक सिक्ख सरदारों ने अपने अपने समूह स्थापित कर। जैसे, मिस्टर जॉन, मिस्टर गुप्त । लिए थे, जिन्हें वे मिसल कहते थे। जैग्ने, भंगियों की | मिस्तर-संशा पुं० [हिं० मिस्तरी ? ] (1) काठ का वह औज़ार मिसल, रामगढ़िया मिसल, अहलूवालिया मिसल आदि । जिससे राज लोग छत या पलस्तर आदि पीटने हैं । पिटना। मिसाल-संवा श्री [अ.] (1) उपमा । जैसे, लोग आँखों (२) वह कल जिमम्मे नील की टिकियां बनाई जाती है। की मियाल बादाम से देते हैं। (२) उदाहरण । नमूना । संज्ञा पुं० [अ० ] दफ़्ती का वह बड़ा टुकड़ा जिस पर नजीर । जैसे,—यों ही कहने से काम न चलेगा, फोई समानांतर पर डोरे लपेट या सी लेते हैं और जो लिखने के मिमाल भी दीजिए। समय लकीरें सीधी रखने के लिए लिखे जानेवाले काग़ज़ क्रि० प्र०—देना । के नीचे रख लिया जाता है, अथवा जिस पर रखकर कागज (३) कहावत । लोकोक्ति । मसल । दबा लिया जाता है। मिसि-संक्षा स्त्री० [सं० ] (१) जटामांसी। बालर। (२) सौंफ।। संज्ञा पुं० दे० "मेहतर"। (३) सोआ। (४) अजमोदा । (५) खस । मिस्तरी-संज्ञा पुं० [अ० मारटर-उस्ताद ] वह जो हाथ का बहुत मिसिरी-संशा श्री. दे. "मिसरी"। अच्छा कारीगर हो । चतुर शिल्पकार । मिसिल-वि० [अ० ] समान । तुल्य । वरावर । दे. "मिस्ल" विशेषइस शब्द का प्रयोग बहुधा लोहारों, बढ़इयों, राज- संशा पी० (१) किसी एक मुकदमे या विषय से संबंध गीरों और कल-पेंच आदि का काम करनेवालों के लिए रखनेवाले कुल कागज-पत्रों आदि का समूह । (२) किसी ही होता है। पुस्तक के अलग अलग छपे फार्म जो सिलाई आदि के काम | मिस्तरीखाना-संज्ञा पुं० [हिं० मिस्तरी+फा० खाना ] यह स्थान के लिए कम से लगाकर रखे गए हों। जहाँ लोहार, बदई या कल-पेंच का काम जाननेवाले बैठकर महा-मिसिल उठाना-पुस्तक के अलग अलग फार्मों को सीने | काम करते हैं। के लिए पहले एक क्रम से लगाना । ( दफ्तरी) मिरता-संज्ञा पुं० [ देश. ] (1) वह मैदान जिसमें किसी प्रकार मिसिली-वि० [हिं० मिसिल+ई (प्रत्य॰)] (१) जिसके संबंध में की हरियाली न हो। बंजर। (२) अनाज दाँने के लिए अदालत में कोई मिसिल बन चुकी हो। (२) जिसे न्यायालय तैयार की हुई सम भूमि । से दंड मिल चुका हो । सजायाफ्ता। मिस्र-संज्ञा पुं० [अ० =नगर ] एक प्रसिद्ध देश जो अफ्रिका के मुहा०—मिमिली चोर या बदमास-बहुत बड़ा चोर या बदमाश उत्तर-पूर्वी भाग में समुद्र के तट पर है और जो बहुत प्राचीन जिसके अपराध अदालत की मिसिलों तक से प्रमाणित होते हो। काल में अपनी सभ्यता और उन्नति के लिए बहुत विण्यात मिसी-संशा स्त्री० दे० (१) "मिशी"। (२) दे. "मिसि"। था। इसके उत्तर में भूमध्य सागर, पूर्व में स्वेज की खाड़ी मिसीन:-संज्ञा स्त्री० दे. "मशीन"। और पश्चिम में सहारा का रेगिस्तान है। दक्षिण में यह नील मिस्कला-संशा पुं० [अ० ] सिकली करनेवालों का वह औज़ार : नदी के उद्गम तक चला गया है। नील नदी में प्रति वर्ष जिसकी सहायता से वे सिकली करते हैं। बहुत बड़ी बाद आती है जिसके कारण उसके आस-पास मिस्कीन-संज्ञा पुं० [अ०] (1) दीन । येचारा । (२) दरिद्र । का प्रदेश बहुत अधिक उपजाऊ है । इसके अंतर्गत चौदह गरीव । (३) भूखा-नंगा । कंगाल । (४) सीधा-सादा । प्रोत है। इसका राजनगर कारा है और इसका सब से सुशील। पदा बंदरगाह भस्कंदरिया है। इधर बहुत दिनों से यह यौ०-मिस्कीन सूरत। देश तुर्की के अधीन था और वहीं का राजप्रतिनिधि इसका