पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/४५५

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मितव्ययी मित्रपद मितव्ययी-संज्ञा पुं० [सं० मितन्यायिन् वह जो कम खर्च करता था। ये आठ पुत्र मित्र, वरुण, धाता, अर्यमा, अंश, भग, हो। किफ़ायत करनेवाला। विवस्वान् और आदित्य या मासंह थे। इनमें से पहले मिताई-संशा स्त्री० [सं. मित्र। हिं. मीत+आई (प्रत्य॰)] । लातों की गिनती आदित्यों में होती है परंतु महाभारत मित्रता । दोस्ती। और पुराणों में द्वादश आदित्य का वर्णन है, जिनमें से मिताक्षग-संज्ञा स्त्री० [सं०] याज्ञवल्क्य स्मृति की विज्ञानेश्वर एक मित्र भी है। वेदों में मित्र ही सर्वप्रधान आदित्य कृत टीका। माने गए हैं, रितु पुराणों आदि में उनका स्थान गौण मितार्थ-सं० पुं० [सं०] साहित्य में तीन प्रकार के दूतों में से है। वेदों में मित्र और वरुण की बहुत अधिक स्तुति की एक प्रकार का दूत । वह दूत जो बुद्धिमत्तापूर्वक थोड़ी गई है, जिससे जान पड़ता है कि ये दोनों वैदिक ऋपियों बात कहकर अपना काम पूरा करे। के प्रधान देवता थे । वेदों में यह भी लिखा है कि मित्र मिताशन-संज्ञा पुं० [सं०] कम भोजन करना। थोड़ा खाना। के द्वारा दिन और वरुण के द्वारा रात होती है। यपि मिताशी-संक्षा पु० [सं० मिताशिन् ] [स्त्री. मिताशिनी ] वह जी, पीछे से मित्र का महत्व घटने लगा था, तथापि पहले बहुत थोपा खाता हो। कम भोजन करनेवाला । किसी समय सभी आर्य मित्र की पूजा करते थे । पारसियों मिति-संशा कमी० [सं०].(१) मान । परिमाण । (२) सीमा। में इनकी पूजा 'मिश्र' के नाम से होती थी। मित्र की हद । (३) काल की अवधि । दिया हुआ वक्त । पत्नी मित्रा भी उनमें पूजनीय थी और अग्नि की अधिष्ठात्री मुहा०मिति पूजना-आयु के दिन पूरे होना । दे "मिती"। देवी मानी जाती थी। कदाचित् असीरिया वालों की मिती-संहा स्त्री० [सं० मिति ] (१) देशी महीने की तिथि या माहलेता तथा अरबवालों की आलिता देवी भी यही मित्रा तारीख । जैसे,—मिती आषाद सुदी ४ सं. १९८१ की थी । (4) भारतवर्ष के एक प्रसिद्ध प्राचीन राजवंश का चिट्टी मिली। नाम जिसका राज्य उदुबर और पांचाल आदि स्थानों में मुहा०-मिती चढ़ाना=तिथि लिखना । तिथि डालना। मिती था। कुछ लोग इसे शुंग वंश की एक शाग्वा बतलाते हैं, तथा उगना या पूजना हुई। का नियत समय पूरा होना। हुंडी कुछ लोग इस वंशवालों को शाकद्वीपी ब्राह्मण और कुछ शक के भुगतान का दिन आना । जैसे,—इस हुंडी की मिती पूजे क्षत्रिय मानते हैं। ईसवी पहली और दूसरी शताब्दी में दो दिन हो गए, पर रुपया नहीं आया। इस वंश का बहुत जोर था । भानुमित्र, सूर्यमित्र, अमिमित्र (२) दिन । दिवस । जैसे,—उसके यहाँ अभी सीन मिती जयमित्र, इंद्रमित्र आदि इस वंश के प्रधान राजा थे। का ध्याज और बाकी है। (३) वह तिथि जय सक का इनके जो सिक्के पाए गए हैं, उनमें से कुछ में शवों के, व्याज देना हो । जैसे,—इस हंडी की मिती में अभी चार कुछ में वैष्णवों के और कुछ में सौरों के चिह्न पाए जाते हैं। दिन बाकी है। ( महाजन ) मित्रकृत्-संज्ञा पुं० [सं०] पुराणानुसार बारहवें मनु के एक पुत्र मुहा०—मिती काटना=मूद काटना । का नाम । मित्तग-सं.। पुं० [सं० मित्र ] (1) वह लड़का जो किसी खेल मित्रघ्न-संज्ञा पुं० [सं०] (1) वह जो मित्र की हत्या करनेवाला में और सब लड़कों का प्रधाम या अगुभा होता है। (२) हो। (२) विश्वासघातक । (३) एक राक्षस का नाम । मित्र । दोस्त । मित्रधा-संशा स्त्री० [सं०] एक नदी का नाम । मित्र--संशा पु० [सं०] (१) वह जो सब बातों में अपना साथी, मित्रश-संज्ञा पुं० [सं० ] एक राक्षस का नाम जो यज्ञ की सामग्री सहायक, समर्थक और शुभचिंतक हो । सब प्रकार से अपने आदि छीन ले जाया करता था। अनुकूल रहनेवाला और अपना हित चाहनेवाला । शत्रु या मित्रता-संज्ञा स्त्री॰ [सं०] (1) मित्र होने का भाव । दोस्ती। विरोधी का उलटा । बंधु । सखा । सुहय् । दोस्त । (२) (२) मित्र का धर्म । अतिविपा नाम की लता । अतीस। (३) सूर्य का एक नाम। मित्रत्व-संज्ञा पुं० [सं० ] मित्र होने का धर्मा या भाव। दोस्ती । (४) बारह आदिस्यों में से पहले आदिस्य का नाम । (५) मित्रता। पुराणानुसार मरुद्गण में से पहले मरुत् का नाम । (६) वशिष्ठ मित्रदेव-संज्ञा पुं० [सं०] (1) थारहवें मनु के एक पुत्र का के एक पुत्र का नाम जो ऊर्जा के गर्भ से उत्पन्न हुआ था। नाम । (२) महाभारत के अनुसार एक राजा का नाम । (७) आर्यों के एक प्राचीन देवता का नाम । ऋकसंहिता (३) मित्र नाम के आदित्य । वि० दे० "मित्र" में लिया है कि तनु से अदिप्ति को जो आठ पुत्र हुए थे, मित्रपंचक-संज्ञा पुं० [सं०] घी, शहद, गुंजा, सुहागा और गुग्गुल उनमें से सात को अपने साथ लेकर अदिति देवलोक को इन पाँचो का समूह । (वैद्यक) चली गई थी, केवल मार नामक पुत्र को फेंक दिया मित्रपद-संज्ञा पुं० [सं० ] पुराणानुसार एक प्राचीमतीर्थ का नाम ।