पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/४४९

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मासक २७४० माहर जब तब वीर विनाम । बन बड़ी मधीला चील्ह घोंसुआ मासीन-वि० [सं. जिसकी अवस्था एक महीने की हो ।महीने माय ।-विहारी। भर का । एक महीने का। मासक-संज्ञा पुं० [सं०महीना । मास । यौ०--द्विमासीन । पंचमालीन । ..सीन इत्यादि । मासचारिक-वि० [सं०] जो एक मास तक कर्तव्य हो। मासुरवण-संज्ञा पुं० [सं० नमः . के गोत्र में उत्पन पुरुष । मास-संशा पुं० [सं०] (1) दात्यूह नामक पक्षी । बनमुर्गी। मासरी-संज्ञा स्त्री० [.. | सुशनुम्पार चीर फाड़ के एक (२) एक प्रकार का हिरन । शस्त्र या औज़ार का नाम । मासताला-संशा पु०सं०] एक प्रकार का बाजा। मासहि--सामी । सं० ] वह इष्टि या यज्ञ जो प्रतिमास हो। मासन-संज्ञा पुं० । सं. ] सोमराज के बीज । मास्टर-संज्ञा पुं० [अ० ] (1) स्वामी । मालिक । (२) शिक्षक। मासना*-fair [सं० मिश्रण, हिं. मांसना । मिलना। गुरु । अध्यापक। उम्ताद । (३) किसी विषय में परम उ.--पंडित वृझि पियो तुम पानी । जा माटी के घर में पर्वण (५) बालकों के लिए व्यवहत शब्द । बैठे तामै सृष्टि समानी । छप्पन कोटि जादो जहँ बिन मास्टरी-संज्ञा स्त्री० [अ० माटर-+ई (प्रत्य॰)] (१) मास्टर का मुनि जन सहज अठायी । परग परग पैगंबर गा? ते सरि काम । पढ़ाने का काम । अध्यापकी। (२) मास्टर का माटी मापी। कबीर । भाव। क्रि० स० मिलाना। मास्य-वि० [सं०] महीने भर का । जो एक महीने का हो। मासप्रवेश-संशा पुं० [सं० } महीने का प्रारंभ होना । मालीच। मामफल-संज्ञा ५० [सं० ] वह पत्र जिसमें फलित ज्योतिष के | माह-अन्य [सं० मध्य, प्रा० मन्य] बीच। में। उ०—यह अनुग्गार महीने भर का शुभाशुभ फल लिया हो। इसे माय शिशुपाल मजैत श्री दीनबंधु अजनाथ कबै मुग्य देविहीं । पत्र भी कहते है। कहि रुक्मिणि मन माह सबै सुग्व लेखिहीं।-सूर । मासर-संशा पु. [ सं० (1) एक प्रकार का पेय पदार्थ जो माह-संज्ञा पुं० [सं० माघ, प्रा० माह ) माघ । उ०--(क) चावल के मॉड और अंगूर के उठे हुए रप से बनाया जाता | गहली गरबा न कीजिये समै सुहागहि पाय । जिय की था। इसका प्रयोग यज्ञी में होता था। यह मादक होता जीवनि जेठ सो माह न छाहँ सुहाय ।-विहारी। (ख) था। (कात्या. श्रीत सूत्र) नाचगा निकमि शशिबदनः बिहँसि तहाँको हमें गनन मही पर्या-अचाम । निस्राव । माह में मथति सी।-देव । (२) कांजी। संशा पुं० [सं० माप, प्रा० माह ] माप। उड़द । मारवर्तिका-संशा ग्त्री० [सं० | शामा या पवई की जाति का संवा पुं० [फा०] माय । महीना । एक पक्षी । सर्वपी। माहकस्थलक-वि० [सं०] (1) माहकस्थली में रहनेवाला। मासस्तोम-संज्ञा पं० [सं०] एक प्रकार का एकाह यज्ञ । (२) माहकस्थली में उत्पन्न । (३) माहकस्थली संबंधी। मासांत-मंश। पु० [सं०] (1) महीने का अंत । (२) अभावम्या। माहकस्थली का। (३) संक्रांति। माहकस्थली-संज्ञा स्त्री० [सं०] एक प्राचीन जनपद का नाम । मासा-संशा ५० दे. "माशा"। माह कि-सशा पुं० [सं० ] (1) महक नामक अपि के गोत्र में मासाधिष-संशा पुं० [सं०] वह ग्रह जो माप का स्वामी हो। उत्पन्न पुरुष । (२) एक आचार्य का नाम । मासेश । माहत*-संज्ञा स्त्री० [सं० महत्ता ] महत्व । महत्ता । बड़ाई। मासानुमासिक-वि० [सं०] प्रतिमाम संबंधी । प्रति माय का। माहताब-संज्ञा पुं० [फा०] (1) चंद्रमा । (२) दे. "महताबी"। मामिक-वि० [सं.] (1) मास संबंधी। महीने का । जैस, माहताबी-संशा श्री० [फा०] (१) दे. "महताबी"। (२) एक मासिक आय ।मारिक कृत्य । मासिक वेतन । (२) प्रकार का कपड़ा जिस पर सूर्य, चंद्रादि की सुनहरी या महीने में एक बार होनेवाला । जैसे, मासिक श्राद्ध । रुपहली आकृतियाँ बनी रहती हैं। (३) आँगन में ऊँचा मासिक पत्र। खुला हुआ चबूतरा जिस पर लोग चाँदनी में बैठते हैं। यो०-प्रेमासिक । पाण्मासिक। (४) तरवृज । (५) चकोतरा नीबू । मासी-संज्ञा स्त्री० [सं० मानृ वसा, पा० मातुच्छा, प्रा० मउन्छ। ] : माहन-संज्ञा पुं० [सं० ] बाह्मण (जो अबध्य होता है)। माँ की बहिन । मौसी। उ०-हम तो निपट अहीर बावरी माहना-क्रि० अ० दे० "उमाहना"। जोग दीजिये जानन । कहा कथत मासी के आगे जानत माहनीय-संज्ञा पुं० [सं० ] ब्राह्मण । चानी नानन।-सूर। माहर-संज्ञा पुं० [सं० माहिर-इंद्र ] इंद्रायन । इनारू ।