पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/४४७

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मालु २७३८ माशा मालू-संशा पु० [सं० ] (1) एक लता का नाम जो वेदों में निषध पर्वत तक इसका विस्तार कहा है। (२) एक राक्षस लिपटती है। (२) नारी। जो सुकेश का पुत्र था और एक गंधर्व की कन्या देववती मालुक-संशा पुं० [सं०] एक प्रकार का मटमले रंग का राजहंस। से उत्पन्न हुआ था। इसके भाई का नाम सुमाली था मालकाच्छद-संज्ञा पुं० [सं०] अश्मंतक । बहेड़ा। जिसकी कन्या कैकसी से रावण उत्पन्न हुआ था। (३) मालुद-संशा पु० [सं०] बौद्ध मतानुसार एक बहुत बड़ी संख्या । बंबई प्रांत में रखागिरि जिले के अंतर्गत एक परगने का का नाम। नाम। मालुधान-संशा पु० [सं०] (1) एक प्रकार का साँप । (२) आठ वि० [सं० माल्यवत् ] [ मी. माल्यवती ] जो माला पहने हो। नागों में से एक नाग का नाम । (३) महारथ । माल्या-संज्ञा स्त्री० [सं०] एक प्रकार की घास । मालुधानी-संशा प्री० [सं० ] एक लता का नाम । माल्लु-संज्ञा पुं० [सं०] (1) एक वर्णसंकर जाति जो ब्रह्मवैवर्त में मालूक-सा ए० [सं० ] काली तुलसी । कृष्ण तुलसी। लेट पिता और धीवरी माता से उत्पन्न कही गई है। (२) मालुधानी-संज्ञा स्त्री० [सं०] एक प्रकार की लता। मालूम-वि० [40] जाना हुआ। ज्ञात । उ०-रिपि नारि माल्लवी-संशा स्त्री० [सं० ] मल्लों की विद्या या कला। उधार कियो, सठ केवट मीत पुनीत सुकीर्सि रही। निज : मालह-संश स्त्री० दे. "माल"। लोक दियो सेवरी खग को कपि थाप्यो सो मालुम है सत्र सं शा पुं० दे. "मल्ल"। ही। दससीस-बिरोध-सभीत विभीषन भूप कियो जन : मावत* -संज्ञा पुं० दे० "महावत"। 30-दियो पठाय श्याम लीक रही। करुनानिधि को भजु रे तुलसी रघुनाथ अनाय निज पुर को मावत सह गजराज । आगे चले सभा में पहुँचे के नाथ मही!-तुलसी। जई नृप सकल समाज ।-सूर । मालूर-संज्ञा पुं० [सं०] (1) बेल का पेड़ । (२) कपित्थ। कैथ। मावली-संक्षा पुं० [देश॰] दक्षिण भारत की एक पहाड़ी वीर जाति मालोएमा-संशा स्त्री० [सं०] एक प्रकार का उपमालंकार जिसमें का नाम । इस जाति के लोग शिवाजी की सेना में अधिक. एक उपमेय के अनेक उपमान होते हैं और प्रत्येक उपमान • तासे थे। उ०-सावन भादों की भारी कुहु की अँध्यारी के भिन्न भिन्न धर्म होते हैं। जैसे,-परम पवित्र है पुनीत चदि दुग्ग पर जात मावलीदल सचेत हैं।-भूपण । पृथिवी में आज, पन प्रजापालन में जैसे अवधेस को। जाके मावस-सेक्षा मी० दे० "अमावर"। उ०—दुमह दुराज प्रजान भुज जुगल विराजै धर्मक्षत्रिन को धार भुवि भार फन मंडन को क्यों न कर अति दंद। अधिक अँधेरे जग करत मिलि ज्यों संस को । भनत मुरार सब जगत उचार रहो देखौ मावस रवि चंद।-बिहारी। धन्य भाग यहै मरुधर देस को। अयक समंद सोहै, ताप-: मावा-संज्ञा पुं० [सं० भेट, हि. मॉट ] (1) माँड । पीच । (२) हर चंद सोहै सुखमा सुरिद सोहै नंद तखनेग्म को।- सत्त । निष्कर्ष। मुरारिदान। मुहा०-मावा निकालना--सूत्र पीटना । कचूमर निकालना । माल्य-संशा पु० [सं० (१) फूल । (२) माला । (३) वह माला (३) वह दूध जो गेहूँ आदि को भिगोकर वा कच्चा मलकर जो सिर पर धारण की जाय । निचोड़ने से निकलता है। (५) प्रकृति । (५) खोया । माल्यक-संज्ञा पुं० [सं०] (१) दमनक । दोना । (२) माला। (६) अंडे के भीतर का पीला रस । जरदी। (७) चंदन का माल्यजीवक-सज्ञा पु० | 0 ] माला बनानेवाल। मालाकार । इन जिसे आधार बनाकर फूलों और गंध द्रव्यों का इत्र भाली। उतारा जाता है । ज़मीन । (८) यह गादा लसदार सुगंधित माल्यपुष्प-संशा ५० [सं० सन का पेड़ । सनई। द्रव्य जिसे तमाकू में डालकर उसे सुगंधित करते हैं। माल्ययंत-संशा पु० दे० "माल्यवान्"। खमीर । (९) मसाला । सामान । (१०) हीरे की बुकनी माल्यवत्-संज्ञा पुं० दे. "माल्यवान्"। जिससे मलकर सोने चाँदी को चमकाते हैं वा उन पर वि. मामाल्यवत: 3 जो माला पहने हो। कुंदन या जिला करते हैं। माल्यवती-संज्ञा स्त्री० [सं० ] पुराणानुसार एक प्राचीन नदी मावासी-संशा 40 दे. "मवासी"। का नाम । माश-संशा पु० दे. "माष"। वि० सी० जो माला पहने हो। माशा-संज्ञा पुं० [सं० माप, जंद मष, माहः ] एक प्रकार का बाट माल्यवान-संज्ञा पुं० [सं०] (1) पुराणानुसार एक पर्वत का वा मान जिसका व्यवहार सोने, चाँदी, रखों और औषधियों नाम । सिद्धांत शिरोमणि में हमें केतुमाल और इलावृत के तौलने में होता है । यह आठ रती के बराबर होता है वर्ष के बीच का सीमा-पर्वत लिखा है और नील पर्वत से और एक सोले का बारहवाँ भाग होता है।