पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/३९०

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मसड़ी २६८१ मसहर एक पर चढ़कर अज़ान या नमाज के समय की सूचना दी. पन्यो जानि जब आपने में सुने कान, दाको संबोधन मोसो जाती है। कहाँ हो मस्तु है। रघुनाथ । (२) जोर से दबाना । मसड़ी-संशा स्त्री० [अ० मिसरी ] कैद । (दि.) संयो० कि०-डालना-देना । संज्ञा स्त्री॰ [देश॰] एक प्रकार का पक्षी । (३) आटा गूंधना। मसती-संज्ञा पुं० [हिं० मस्त ] हाथी।( डिं.) मसलहत-संशा स्त्री० [अ०] ऐसी गुप्त युक्ति अथवा छिरी हुई मसनंद-संशा ली. दे. "मसनद"। भलाई जो सहसा ऊपर से देखने से जानी न जा सके । मसन-संक्षा पुं० [देश॰] एक प्रकार का टकुभा जिसकी अप्रकट शुभ हेतु । जैसे,—(क) इसमें एक मसलहत है जो सहायता से ऊन के कई तागे एक साथ मिलाकर रटे अभी तक आपको समझ में नहीं आई। (ख) इस समय जाते है। उसे यहाँ से उठा देने में एक मसलहत थी। मसनद-संज्ञा स्त्री० [अ०(1) तकिया। गाव तकिया। मसला-संशा पुं० [अ० ] कहावत । कहनूत । लोकोक्ति। (२) तकिया लगाने की जगह । (३) अमीरों के बैठने की मसई-संज्ञा स्त्री० [ मसोवा द्वीप ] एक प्रकार का बल का गोंद गद्दी । उ०-क्या मसनद तकिये मुल्क मका, क्या चीफी जो अदन मे भाता है। यह पहले मसोवा द्वीप मे भाता कुरसी तहत छत्तर -नज़ीर। भा, इसी से इसका यह नाम पड़ा । मसनदनशीन-संज्ञा पुं० [अ० मसनद+का नशान मसनद पर मसवाग-संज्ञा पुं० [हिं० माम+वारा (प्रत्य॰)] प्रसूता का यह बैठनेवाला । बड़ा आदमी। अमीर । स्नान जो प्रसव के उपरान्त एक माल समाप्त होने पर मलना-क्रि० स० [हि. मसलना (1) मसलना। (२) गूंधना। हाता है। उ.-.-नेत्रों के पास पास उर्द के ममे हुए आटे की एक मसवासी-संशा पु० [सं० मासवासी ] (1) एक स्थान पर केवल अंगुल ऊंची दीवर सी बना दो। एक मास तफ निवास करनेवाला चिरक । वह साधु आदि मसमुंद*-वि० [मस + मॅटना बंद होना ] कशमकश । ठेल जो एक मास से अधिक किसी स्थान में न रहे। उ.- मठेल । धकमधमा । उ...तपही सूरज के सुभट निकट कोई सुरिखेसु कोइ सनियासी । कोह सुरामजति कोइ मस- मचायो दुद । निकसि सके नहि एकह कस्यो कटक मय वासी।—जायसी। (२) एक महीने से अधिक किसी पुरुष मुंद।-सूदन । के पास न रहनेवाली नीगणिका । उ०--तिरिया जो न मसयारा*-संज्ञा पुं० [अ० मशअल ] (१) मशाल । उ. होह हरिदासी । जी दासी गणिका सम जानो दुष्ट रॉब (क) जानहुँ नखत करहि उजियारा । छिप गए दीपक औ मसवासी।-रघुराज। मसयारा।—जायसी। (ख) बारह अभान सोरह सिंगारा। मसविदा-संश। पुं० [अ० मुसविदा ] (1) यह लेख को पहली तोहि मोहे पिय ससि मम्मयारा-जायसी । (२) मशाल बार फाटकाँट के लिए तैयार किया गया हो और अभी ची। मशाल दिखानेवाला । उ०-सूफ मुनेटा ससि मम साफ करने को बाकी हो । खर्रा। मसौदा । (२) युक्ति। यारा । पवन कर नित नार योहारा। जायगी। उपाय । तरकीब। मसरफ-संज्ञा पुं० [अ०] व्यवहार में आना। काम में आना। कि०प्र०-निकालना । उपयोग। मुहा०-मसविदा बाँधनान्युक्ति रचना । उपाय सांचना । क्रि० प्र०-में आना।-में लाना। मसहरी-संशा स्त्री० [सं० मशहरी ] (1) पलंग के उपर और चारों मसरू-संज्ञा पुं० [अ० मशरूअ] एक प्रकार का रेशमी कपड़ा। ओर लटकाया जानेवाला वह जालीदार कपड़ा जिसका वि.३० "मशरू"। उपयोग मच्छड़ों आदि से बचने के लिए होता है। (२) मसरूका-वि० [अ० ] चोरी किया हुआ। रुराया हुआ । जैसे, ऐसा पलंग जिसके चारों पायों पर इस प्रकार का जालीदार माल मसरूका । ( कच.) कपमा लटकाने के लिए चार ऊँची लकड़ियाँ या छह लगे मसरूफ-वि० [अ० ] काम में लगा हुआ। काम करता हुआ । हों। (ऊपर की ओर भी ये चारों लकड़ियाँ या छह लकड़ी मसल-संज्ञा स्त्री० [अ० ] कहावत । कहनूत । लोकोक्ति। की धार पहियों यादों से जोदे रहते है।) मसलन-वि० [अ० ] मिसाल के तौर पर। उदाहरण के रूप में। मसहार*-संज्ञा पुं० सं० मांसाहारिन् ] मांसाहारी । मांस खाने. उदाहरणा। जिस सरह । यथा । जैसे। माला । उ.-(क) घटे नहिं कोह भरे उर छोह । नटे मस- मसलना-क्रि० स० [हिं० मलना ] (1) हाथ से दबाते हुए हार धरे मन मोह।-सूदन । (ख) मसहार छाए नभ रगड़ना। मलना । उ.-(क) स्वास को चार प्रकास बया-: परनि धाय स्यार। सूदन । रिन मंद सुगंध हियो मस्ती है।-सुनाय। (ख) आश मसटर-वि० दे० "मशहूर"।