पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/३७८

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२६६९ भाद वि० [स्त्री० मईनी ) नाशक । विनाशक । संहारकर्ता। : मर्मप्रहार-संज्ञा पुं० [सं०] वह आघात जो मर्म स्थान पर हो। उ.-.-(क) कुंद इंदु सम देह उभारमण करुना अयन । मर्म स्थान की चोट । वैद्यक में इसे प्रण का एक भेव माना जाहिदीन पर नेह करहु कृपा मईन मयन । -तुलमी। है। इसमें रोगी गिरता पड़ता, अटपट बकता, अयराता और (ख) किन गजपति मईन प्रबल सिंह पींजरा दीन । मूर्छित होता है, उसके शरीर में गरमी छटकती है और हरिश्चंद्र। इंद्रियाँ ढीली पड़ जाती है। मईल-संशा पुं० [सं०] प्राचीन काल का मृदंग की तरह का एक मर्मभिद-वि० [सं०] मर्मसिट । मर्मभेदी। उ०-दुष्ट रावण प्रकार का बाजा। इस बाजे का उल्लेख महाभारत में है. कुभकरण पाकारि जित मर्मभिद कर्म परिपाकदाता ।- और आजकल इसका प्रचार बंगाल में पाया जाता है, जहाँ सुलसी । यह विशेषकर मृतकों की अर्थी के माम अथवा हरिकीर्तन | मर्मभेदक-वि० [सं०] मर्म छेदनेवाला । (२) हृदय विदारक । आदि के समय बजाया जाता है। बहुत अधिक हार्दिक कष्ट पहुँचानेवाला । महित-वि० [सं०] (1) जो भईन किया गया हो। मला या मर्मभेदी-वि० [सं० मर्मभेदिन् ] हृदय पर आघात पहुँचानेवाला । मसला हुआ। (२) टुकड़े टुकड़े किया हुआ । (३) नष्ट आंतरिक कष्ट देनेवाला । जैसे,---आपको इस प्रकार की किया हुआ। मर्मभेदी बातें न कहनी चाहिए। मर्म-संज्ञा पुं० [सं० मर्म । (१) स्वरूप । (२) रहस्य। तव । भेद। मर्ममय-वि० [सं०] रहस्यपूर्ण । क्रि०प्र०---देना।—पाना ।लेना। मर्मर-संज्ञा पुं० दे० "मरमर"। यौ०-मर्मज्ञ। मर्मवचन-संज्ञा पुं० [हिं० मम+वचन ] वह वास जिससे सुनने- (३) संधि स्मान । (४) प्राणियों के शरीर में वह स्थान वाले को आंतरिक कष्ट पहुंचे। मर्मभेदी बात । उ.- जहाँ आघात पहुँचने से अधिक वेदना होती है। वैद्यक में मर्मबचन सीता तब बोला । हरि प्रेरित लछिमन मन मांस, शिरा, स्नायु, अस्थि और संधि के सनिपात स्थान गेला।-तुलसी। को मर्म माना गया है और वहाँ प्राणों का निवास स्थान मर्मवाक्य-संज्ञा पुं० [सं०] रहस्य की बात । भेद की या गृह लिम्वा गया है। प्रकृति, स्थान और परिणाम भेद से मर्म बात । पाँच प्रकार के होते हैं और कुल मर्मों की संख्या १०७ | मर्मविद्-वि० सं०] मर्म या तत्व जाननेवाला । मर्मज्ञ । मानी गई है। प्रकृति के विचार से ममों की संख्या इस : मर्मविदारण-संज्ञा पुं॰ [सं०] मर्मरछेदन । ममच्छेद । प्रकार है--मांस मर्म", अस्थि मर्म ८, संधि मर्म २०, मर्मवेदी-वि० [सं०] मर्मज्ञ। स्नायु मर्म २७, शिरा मर्म ४१ । स्थान के विचार से ममों मर्मस्थल-संज्ञा पुं० [सं० } मर्म स्थान । वि० दे० "मर्म"। की संख्या इस प्रकार है-सिकिथ वा पैरों में २२, भुजाओं मर्मस्थान-संशा पुं० [सं०] मर्म स्थल। मर्म । वि० दे० "मर्म"। में २२, उर और कुक्ष में १२, पृष्ठ में १४, ग्रीवा और । मर्मस्पृश-वि० [सं०] हृदय को स्पर्श करनेवाला । हृदय पर ऊर्च भाग में ३७ । परिणाम के विचार से मर्मों की प्रभाव गलनेवाला । मर्मस्पर्शी। संख्या इस प्रकार है--सधः प्राणहर १९, कालांतर मारक | मर्मातक-० [सं०] मन में धुभनेवाला । मर्मभेदक । हृदयस्पर्शी । ३३, वैकल्यकारक ५४, रुजाकारक 4, विशल्यान । मान्धेषण-संज्ञा पुं० [सं०] किसी बात का तत्व या गूढ रहस्य यो०-मर्मच्छेदन । मर्मप्रहार । मर्मभेदक । मर्मभेदी । मर्म जानना । तस्त्रानुसंधान । वचन । मर्मस्पर्शी। मौषिद, मर्माविध-वि० [सं०] मर्म भेदनेवाला । मर्मभेदी । मर्मग-वि० [सं०] मर्मज्ञ। मर्मिक-वि० [सं०] मर्मविद् । मर्मज्ञ । मर्मचर-संशा पुं० [सं०] हृदय । } मर्मी-वि० [हिं० मर्म ] रहस्य जाननेवाला। तत्वज्ञ। मर्मज्ञ । मर्मच्छदक-वि० [सं०] मर्मभेदक । मर्म भेदनेवाला । उ०—(क) ममा मूल गहल मन माना । मर्मी होय सो मर्मच्छदन-संज्ञा पुं० [सं०] (1) प्राणघातन । जान लेना। मर्महि जाना ।-कीर । (ख) मर्मी सजन सुमति कुदारी । (२) अधिक कष्ट देना । बहुत सताना । ज्ञान विराग नयन उर गारी।--तुलसी। मर्मझ-वि० [सं०] जो किसी बात का मर्म या गूढ़ रहस्य आनता मर्य-संज्ञा पुं० [सं० ] मनुष्य । हो। तस्वज्ञ । (२) भेद की बात जाननेवाला । रहस्य | मर्यादा-संज्ञा स्त्री. दे. "मादा"। जाननेवाला। मा -संज्ञा स्त्री० [सं० ] सीमा । मर्मपोड़ा-संज्ञा स्त्री० [सं० ] मन को पहुँचनेवाला क्या । आंत- | मर्याद-संवा स्त्री० सं० मादा] (1) दे. "मादा" । उ.- रिक दुःस्व । भो मयाद बहुत सुख लागा। यह देख सब संशय ६६८