पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/३७४

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महतवान २६६५ मरू रंद्र ने गर्भ काटकर एक से उनचास टुकड़े कर डाले थे, जो | मरुद्वार-संशा पुं० [सं०] (1) धूआँ । (२) आग। उनचास 'भरद्' दुए। वेदों में मरुद्गण का स्थान अंतरिक्ष मद्विप-संज्ञा पुं० [सं०] ऊँट । लिखा है, उनके घोड़े का नाम पृशित बतलाया है तथा मरुद्वीप-संज्ञा पुं० [सं० ] वह उपजाऊ और सजल हरा भरा उन्हें इंद्र का सखा लिखा है। पुराणों में इन्हें वायु कोण स्थान जो मरुस्थल में हो। ओसिज।। का दिक्पाल माना गया है। (२) वायु । वात । हवा। मरुद्धधा-संज्ञा स्त्री० [सं०] पंजाब की एक नदी का वैदिक नाम । (३) प्राण । (४) हिरण्य । सोना । (५) एक साध्य का मरुद्वेग-संज्ञा पुं० [सं०] एक देश्य का नाम । नाम । (६) मे दर्य । (७) वृहद्रथ राजा का एक नाम। मरुधन्धा-संशा पुं० [सं० मरुधन्वत ] (1) मरुस्थल । निर्जत (4) मरुआ । (९) ऋत्विक । (१०) गठिवन । (11) प्रदेश । (२) इंदीवर नामक विद्याधर के पुत्र का नाम । असवर्ग। (१२) दे. "मरुत्त"। माधर-संज्ञा पुं० [सं०] मारवाद देश । उ०-प्यासे दुपहर मस्तवान*-संज्ञा पुं० दे० "मरस्यान्"। जेठ के थके सबै जल सोधि । मरुधर पाय मत्तीरह मारू मरुत्कर-संज्ञा पुं० [सं.] राजमाप । उड़द । कहत पयोधि ।-बिहारी। मरुत्त-संज्ञा पुं० [सं०] पुराणानुसार एक चक्रवर्ती राजा जो मरुभूमि-संज्ञा स्त्री० [सं० ] यालू का निर्जल मैदान जहाँ कोई चंद्रवंशी महाराज करंधर के पुत्र अधीक्षित का पुत्र था। वृक्ष वा वनस्पति आदि न उगती हो । रेगिस्तान । इसने अनेक कार बड़े बड़े यज्ञ किए थे जिनमें समस्त यज्ञ- मरुभूरुह-संज्ञा पुं० [सं० ] करील का पंछ । पात्र मोने के बनवाए थे। इसके प्रभावती, पौवीरा, मरुन्माला-संशा पुं० [सं०] पृका नाम की लता। असवर्ग । सुकेशा, केकयी, सैरंधी, वसुमती और सुशोभना नाम की मरुर-संशा पुं० [सं० मूर्वा ] गोरचकरा । सात रानियाँ थीं, जिनमें अठारह लपके उत्पन्न हुए थे। मारना-क्रि० अ० [हिं० मगरना ] 'मरोरना' का अकर्मक भागवत में इसे यदुवंशी और करंधर का पुत्र लिखा है। रूप । ऐंठना ! बल खाना । उ०—(क) तीखी दीठ तूरख सी मरुस्तक-संज्ञा पुं० [सं०] मरुआ नामक पोधा। पतूम्ब सी अहरि अंग उम्प सी मरुरि मुन्य लागति महम्य महत्पति-संज्ञा पुं० [सं०] इंद्र। सी।-(ख) मारत अंगन अमर स्तरंग केश महरत नाथ मरुत्पथ-संज्ञा पुं० [सं०] आकाश । देव जीति के जगत है।-देव । मरुत्पल-संशा पु० [सं०] इंद्र। मरुल-संशा पुं० [सं०] जंगली बत्तक की एक जाति का नाम । मरुत्प्लव-संशा पुं० [सं०] सिंह । शेर । कारंडव। मरुत्फल-संज्ञा पुं० [सं.] ओल्या । मरुव-संज्ञा पुं० [सं०] महआ। मरुत्वती-संज्ञा स्त्री० [सं०] धर्म की पत्नी का नाम । यह प्रजा- मरुवक-संज्ञा पुं० [सं०] (1) एक कैंटीले पेड़ का नाम जिग्ये पति की कन्या थी। मैनी कहते हैं। (२) मरुआ। नागदौना । (३) तिल का मरुत्वान्-संज्ञा पुं० [सं० मरुत्वत् का प्र० ५० रूप] (1) इंद्र। पौधा । (४) व्याघ्र । बाघ । (५) राहु । (२) महाभारत के अनुसार देवताओं के एक गण का नाम मरुवा-संशा पुं० दे० "मरुआ"। जो धर्म के पुत्र माने जाते हैं। (३) हनूमान् । मरुसंभव-संज्ञा पुं० सं०] एक प्रकार की छोटी मूली। मरुत्सख-संज्ञा पुं० । सं० ] (1) इंद्र । (२) अग्नि । मरुसंभवा-संशा स्त्री० [सं०] (१) महेंद्रयारणी । (२) एक प्रकार मरुत्सहाय-संज्ञा पुं० [ स०] अग्नि। का खैर जिसका पेड़ बहुत छोटा होता है। (३) छोटा मरुस्सुत-संज्ञा पुं० [सं०] (१) हनुमान । (२) भीम । धमास । क्षुद्र जवाम । (४) एक प्रकार का कनर । मकरस्तोम-संज्ञा पुं० [सं० ] एक प्रकार का एकाह यज्ञ । मरुसा -संज्ञा पुं० दे. "मरसा"। मरुथल-संज्ञा पुं० दे० "मरुस्थल"। 'मरुस्थल-संशा पुं० [सं० ] याल का मैदान जिसमें निर्जल होने मरुदांदोल-संज्ञा पुं० [सं०] (1) धौंकनी । (२) प्राचीन काल के कारण कोई वृक्ष वा वनस्पति न उगती हो । मरुभूमि । की एक प्रकार की धौंकनी जो हरिन वा भैंस के चमदे से रेगिस्तान। बनती थी। मरुस्था-संज्ञा स्त्री० [सं०] छोटा धमास । मस्त्रविष्ट-संज्ञा पुं० [सं० ] गुग्गुल । गूगुल।

मर*-वि० [सं० मेरु वा हिं . मरना ] कठिन । दुरूह । उ0-

मरुदेव-संज्ञा पुं० [सं०] ऋषभदेव के पिता का नाम । कल्प समान रैन तेहि बाड़ी। तिल तिल मरु जुग जुग पर मरुद्रथ-संज्ञा पुं० [सं०] घोड़ा। - गाढ़ी।-जायली। मद्रम-संशा पुं० [सं०] (1) विट खदिर । (२) बबूल। महा०---मरू करि के चा मरू करि* कठिनाई से । ज्यों त्यों मरुद्धर्म-संक्षा पुं० [सं०] आकाश । करके । बहुत मुश्किल से । उ.--(क) ता करें तो अबलों