पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/३७२

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

मराना २६६३ मरीचि मुहा०--मरातिब तै करना=किसी विषय के सारे झगड़ों का तस्ता जो उसके पेंदे में गूढे के नीचे बेड़े बल में लगा निवटेरा करना। रहता है। मदिया । (३) पृष्ठ । तह । (४) मकान का खरा तल्ला। उ०- संज्ञा स्त्री० [हिं० मारना ] लोहे की एक छोटी हथौड़ा अति उतंग सुदर शशिशाला सात मरातिषबारे।-रघुराज । जिससे धातुओं पर खुदाई का काम करने वाले करम को (५) वजा। झंडा । उ-जामवंत हनुमंत नल नील ठोंकते हैं। मरातिब साथ । छरी बीली शोभिजै दिक्पालन के हाथ । मर्ग-संज्ञा स्त्री० [सं० मारी ] (9) वह रोग जो स्पर्श दोष ने -केशव । फैलता है और जिसमें एक साथ बहुत से लोग मरते है। यौ०-माही मरातिब एक प्रकार की ध्वजा जो मुसलमान मारी। राजाओं की सवारी के आगे हाथियों पर चलती है। ये ध्वजाएँ। संज्ञा स्त्री० [हिं० मारना ] एक प्रकार का भूत । लोगों का संख्या वा प्रकार में सात होती हैं, जिन पर क्रमशः सूर्य, विश्वास है कि यह किसी ऐसी दुष्ट स्वभाववाली स्त्री का पंजा, तुला, नाग, मछली, गोल तथा सूर्यमुखी के चिह प्रेतात्मा होती है जो किसी रोग, आधात अथवा किसी अन्य कारणवश पूर्णायु को न पहुँचकर अल्पायु में मरी मगना-क्रि० स० [हिं० मारना का प्रेर०] (१) मारने के लिये प्रेरणा हो। भरही। करना । मरवाना । उ०-(क) पिता तुम्हार राज कर संज्ञा स्त्री० [देश॰] वंशी मागूदाने का वेब । यह भारतवर्ष भोगी। पूजै विप्र मराव जोगी।-जायसी । (ख) पंच ! तथा लंका, सिंगापुर आदि द्वीपों में उत्पन्न होता है। कहै सित्र सती विवाही। पुनि अवडेरि मरायेन्हि साही। यह पेड़ देखने में बहुत सुदर मालूम होता है। इसमे ताई। ---तुलसी । (२) किसी को अपने ऊपर आघात करने के | निकाली जाती है जिसे लोग पीते हैं और जिसमे गुरु भी लिये प्रेरणा करना वा करने देना । (३) गुदा भजन कराना। बनाते हैं। इसकी कोमल बालों वा मंजरी की तरकारी (बाजारू)। बनाई जाती है । इसके पुराने स्कंध में के गूदे से सागूदाना मराय-संज्ञा पुं० [सं०] (१) एकाहयश । (२) एक प्रकार का साम। निकलता है जो पानी में पकाकर खाया जाता है वा पीय मगयल*-वि० [हिं० मारना+आयल (प्रत्य॰)] (1) जो किसी कर जिसकी रोटियों बनाई जाती है। और रेशे से कैंची, सं कई बार मार खा एका हो। पीटा हुआ । उ०---सठहु : बुश, रस्सी और जाल बनाए जाते हैं। इसकी लकड़ीमा- सदा तुम्ह मोर मरायल । कहि अस कोपि गगन पथ बुत और टिकाऊ होती है। इसे भेरवा भी कहते हैं। धायल। तुलसी । (२) नि:सव । सत्वहीन । जैसे, मरा- मगेचि-संज्ञा पुं० [सं०] (1) एक ऋषि का नाम । पुराणों में यल अन्न, मरायल पौधा। (३) मरियल निर्यल। निर्जीव । इन्हें ब्रह्मा का मानसिक पुत्र लिखा है, एक प्रजापति (४) घाटा । टोटा। माना है और समर्पियों में गिनाया गया है। किसी किसी मि०प्र०-आना-पड़ना। पुराण में इनकी स्त्री का नाम 'कला' और किसी किसी में मरार-संज्ञा पुं० [सं०] खलिहान । 'संभूति' लिया है। (२) एक मरुत् का नाम । (३) एक मराल-संज्ञा पुं० [सं०] [स्त्री० मराली ] (1) एक प्रकार का अस्तव ऋषि का नाम जो भृगु के पुत्र और कश्यप के पिता थे। जो हलकी लालाई लिये सफेद रंग का होता है। (२) घांगा। (४) दनु के एक पुत्र का नाम । (५) प्रियत-वंशी एक (३) हाथी । (१) कारंडव नामक पक्षी । (५) हंस । उ० राजा का नाम । (६) एक प्राचीन मान जो छः सरेणु के स्वफ मन मानस मराल से पावन गंग तरंग-माल से |---- बराबर होता है। (७) एक दैत्य का नाम । तुलसी। (६) अनार की वाटिका । (७) काजल (4) संज्ञा स्त्री० [सं० ] (1) किरण । उ०-(क) अति सुकुमारी बादल । (९) दुष्ट । स्खल। वृषभान की दुलारी सो कैसे सहै प्यारी मरी मारतय मरिंद*-संज्ञा पुं० (1) दे. "मलिंद"। (२) दे० "मरंद" की। -सरलाबाई । (ख) किति सुधा दिग भित्त पखारत मरिखम-संज्ञा पुं० दे. "मलखम"। चंद मरीचिन को करि कूचो। मतिराम । (ग) रघुनाथ मरिच-संज्ञा पुं० [सं०] मिश्चि । पिय बस करिबे को चली बाल मुख की मरीधि जल दिल्पि मरिचा-संशा पुं० [सं० मरिच ] बड़ी लाल मिरिच। मदि के लई।-रघुनाथ। (२) भा। कांति । ज्योति । विदे. "मिरिच"। उ०-कीधौं मृगलोचन मरीचिका मरीचि किधों रूप कं. मरिया-संज्ञा स्त्री० [हिं० मदना ] (1) वह रस्सी जो खाट में रुचिर रूचि शुचि लोंदुराई है। केशव । (३) मरीचिका। पायताने की ओर उंचन लगाकर उपर से एक पट्टी से दूसरी मृगतृष्णा । उ०-बीच मरीचिनु के मृग लौ अब धाद न रे पट्टी तक बाने की तरह बाँधी जाती है। (२) नाव में वह | सुन काहू मरिंद के।-देव ।