पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/३५

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२३२८ फुला-मंशा पुं० [हिं० फूलना ) (1) खीला । लावा। (२) वह संयो० कि०-देना। कदाह जिसमें गन्ने का रस पकाया या उबाला जाता है। (४) असावधानी से इधर उधर छोड़ना या रखना। बे- (३) एक रोग जो प्रायः पक्षियों को होता है। इससे पक्षी परवाई से डाल देना । जैसे,—(क) किताबें इधर उधर फल जाता है और उसके मुहँ में काँटे निकल आते हैं जिसमे . फैकी हुई हैं सजा कर रख दी। (ख) कपड़े योंही फेंक वह मर जाता है। (५) आँख का एक रोग जिसमें काली कर चले जाते हो, कोई उठा ले जायगा। (५) बेपरवाई से पुतली पर साद दाग या छींटा सा पड़ जाता है। फूली। कोई काम दूसरे के ऊपर डालना। खुद कुछ न करके दूसरे के फुली-मंशा श्री | हिं० फल | (१) सफेद दाग जो आँख की सुपुर्द करना। अपना पीछा छुड़ाकर दूसरे पर भार डाल पुतली पर पड़ जाता है। इससे मनुष्य की आँख की दृष्टि देना । जैपे,-वह सय काम मेरे ऊपर फेंक कर चला जाता कुछ कम हो जाती है और यदि वह सारी पुतली भर पर है। (६) भूल से कहीं गिराना या छोड़ना। भूल कर पास या उसके तिल पर होता है तो दृष्टि बिलकुल मारी जाती से अलग कर देना । गँवाना । खोना । जैसे,—यचे के है। (२) एक प्रकार की यजी। (३) एक प्रकार की रूई हाथ से अँगूठी ले लो, कहीं फेंक देगा। जो मथुरा के आसपास होती है। संयोगक्रि०—देना । फूया-मजा या दे. "फूफी"। (७) जुए आदि के ग्वेल में कौड़ी, पासा गोटी आदि आदि फूस-मंगा jo | म तप, पा. भूम, फम ] (1) सूखी हुई लंबी का हाथ में लेकर इसलिए ज़मीन पर डालना कि उनकी घाम जो कायर आदि छाने के काम में आए। 30-(क) स्थिति के अनुसार हार जीत का निर्णय हो। जैसे, पांसा कायर का घर फूस का भभकी बहूँ पछीत । शूरा के कछु फंकना, कौड़ी फंकना () तिरस्कार के साथ स्यागना । डर नहीं गचगीरी की भीत।-कधीर। (ख) कबीर प्रगटहि ग्रहण न करना। छोड़ना । परित्याग करना । उ०-कंचन राम कहिचान राम न गाय । फूस क जोड़ा दूर कर बहुरि फैकि काँच कर राख्यो। अमरित छाडि मूद विप चाख्यो । नलागलाय ।-कधीर । (२) सूखा तृण । खर । साल्टू । (५) अपव्यय करना। फजुल खर्च करना । तिनका। जैसे-ऐसे काम में क्यों व्यर्थ रुपया फंकते हो। (१०) फूहड़-वि० मे.. पर गोवर+परगना] (१) जिसकी चाल ढाल उछालना । ऊपर नीचे हिलाना डुलाना । झटकना पट- वेढंगी हो । जिसका ढंग भहा हो। जो किसी कार्य को कना । जैसे, (क) बच्चे का हाथ पैर फेंकना । (ख) सुचारू रूप से न कर सके। जिसे कुछ करने का ढंग न हो। मिरगी में हाथ पैर फंकना। (११) ( पटा) चलाना । बेशऊर । (इस शब्द का प्रयोग अधिकतर खियों के लिए (पटा ) ले कर घुमाना या हिलाना दुलाना । तोता है)। 30--फूहर वही सराहिए परसत टपकै लार। फैकरना*-क्रि० अ० [ अनु० फेंफें+करना ] (1) गीदड़ का -गिरिधर । (२) जो देखने में बेढंगा लगे। महा। रोना या योलना । उ०--कटु कुठाय करटा रटहि फंकरहि फूहरा-वि० दे० "फूहर"। फे कुभांति । नीच निसाचर मीघु बप अनी मोह मद माति । फूहा-संज्ञा पुं॰ [देश॰] मई का गाला। –तुलमी। (२) फूट फूट कर रोना। चिल्ला चिल्ला कर रोना। फूही-संशा श्री. | अनु(१) पानी की महीन बूंद । (२) फेंकाना-क्रि० स० [फेंकना' का प्रे० ] फेंकने का काम कराना । ___महीन बूंदों की झड़ी। फेंगा-संज्ञा पुं० दे० "फिंगा"। फेंक-संशा श्री [ हिं . फेकना । फेंकने की क्रिया या भाव। फेंट-संशा स्त्री० [हिं० पेट या पेटी ] (1) कमर का घेरा । कटि फेंकना-नि० स० [सं० प्रेषण, प्रा० पेखण ] (1) झोंक के साथ का मंडल। उ०-फेंट पीतपट, साँवरे कर पलास के एक स्थान से दूसरे स्थान पर डालना। इस प्रकार गति पात । हंसत परस्पर बाल सब बिमल बिमल दधि खात । देना कि दूर जा गिरे। अपने से दूर गिराना । जैसे, तीर -सूर। (२) धोती का वह भाग जो कमर में लपेट कर फंकना, देला फेंकना, पत्थर फेंकना । उ०-~-बलरामजी बांधा गया हो। कमर में बाँधा हुआ कोई कपड़ा। पटुका । ने उसकी दोनों पिछली टाँगे पकड़ फिरायकर ऊँचे पेड़ पर . कमरबंद । उ०—(क) वायबे को कछु भाभी दीनी श्रीपति फेंका । लल्लू । मुख ते बोले । फेंट उपर ते अंजुलि तदुल बल करि हरि जू मुहा०-घोड़ा फेंकना-घोड़ा सरपट दौड़ाना । खोले।-सूर । (ख) इयाम सखा को गेंद चलाई। श्री- (२) कुश्ती आदि में पटकना । दूर चित गिराना। (३) दामा मुरि अंग बचायो गेंद पयो कालीदह जाई।धाय एक स्थान से लेजाकर और स्थान पर डालना । जैसे, (क) गयो तब फैट श्याम की देहु न मेरी गेंद मंगाई।—सूर । यहाँ बहुत सा कूदा पड़ा है, फेंक दी। (ख) जो सरे आम (ग) लाल की फेंट सों लैं के गुलाल लपेटि गई अब हो उन्हें फेंक दो। लाल के गाल सों।-रघुनाथ ।