पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/३२

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फूटा २३२५ नर नारि।-सूर । (१७) पानी का इतना खौल जाना कि उसमें छोटे छोटे बुलबुलों के समूह दिखाई देने लगे। पानी का खदखवाने लगना । (16) किसी भेद का खुल जाना। गुह्य बात का प्रगट हो जाना । जैसे,—कहीं बात फूट गई तो बड़ी मुश्किल होगी। उ-संतन संग बैठि बैटि लोक लाज खोई। अब तो बात कृटि गई जानत सब कोई।। (१९) रोक या परदे का दबाव के कारण हट जाना । बाँध, . मेव आदि का टूट जाना । जैसे, बाँध फटना । (२०) : पानी या और किसी पतली चीज़ का रस कर इस पार से , उस पार निकल जाना । जैसे,--यह कागज़ अच्छा नहीं है। इस पर स्याही फूटती है । (२१) जोड़ों में दर्द होना। फूटा-वि० [हिं० फूटना ] [ स्त्री० फूटी ] भग्न । टूटा हुआ फूटा हुआ। जैसे, फूटी कौड़ी। फूटी आँख । संज्ञा पुं० (१) वह बालें जो टूटकर खेतों में गिर पचती । है। (२) जोड़ों का दर्द। फूत्कार-संज्ञा पुं० [सं० ] मुँह से हवा छोड़ने का शब्द । क । फुफकार । जैसे, सर्प का फूत्कार । फूफा-संज्ञा पुं० [हिं० फूफी ] फूफी का पति ।बाप का बहनोई। फूफी-संज्ञा स्त्री० [ अनु० । वा सं० पितृश्वसा, पा० पितुच्छा, प्रा० : पिउच्छा ] बाप की बहिन । बृआ। फूफू-संज्ञा स्त्री० दे० "फूफी"। फूल-संज्ञा पुं० [सं० फुल्ल ] (1) गर्भाधानवाले पौधों में वह: ग्रंथि जिसमें फल उत्पन्न करने की शक्ति होती है और जिसे उद्भिदों की जननेंद्रिय कह सकते हैं। पुष्प । कुसुम । सुमन । विशेप-बड़े फलों के पाँच भाग होते हैं—कटोरी, हरा पुट, दल ( पंखड़ी), गर्भकेसर और परागकेसर । नाल का वह चौका छोर, जिसपर फूल का सारा ढाँचा रहता है, कटोरी कहलाता है। इसी के चारों ओर जो हरी पत्तियाँसी होती हैं उनके पुट के भीतर कली की दशा में फल बंद . रहता है। ये आवरण पन्न भिन्न भिन्न पौधों में भिन्न भिन्न आकार प्रकार के होते हैं। घुटी के आकार का जो मध्य | भाग होता है उसके चारों ओर रंग रिंग के दल निकले होते हैं जिन्हें परखड़ी कहते हैं । फूलों की शोभा बहुत कुछ इन्ही रंगीली पंखड़ियों के कारण होती है। पर यह ध्यान : रखना चाहिए कि ल में प्रधान वस्तु बीच की पुरी ही है जिस पर परागकेसर और गर्भकेसर होते हैं। क्षुद्र कोटि के पौधों में पुट, पंखड़ी आदि कुछ भी नहीं होती, केवल खुलीवुडी होती है। बनस्पति शास्त्र की दृष्टि से तोडीही वास्तव में फूल है और बाकी तो उसकी रक्षा या शोभा के लिए हैं। दोनों प्रकार के केसर पत्तले सूत के आकार के : होते हैं । परागकेसर के सिरे पर एक छोटी टिकिया सी होती है जिसमें पराग या धूल रहती है। यह परागकेसर ५८२ पुं० जननेंद्रिय है। गर्भकेसर बिलकुल बीज में होते हैं जिनका निचला भाग या आधार कोश के आकार का होता है जिसके भीतर गभीड बंद रहते हैं और ऊपर का छोर या मुंह कुछ चौड़ा सा होता है । जब परागकेसर का पराग झड़कर गर्भकेसर के इस मुँह पर पड़ता है तब भीतर ही भीतर गर्भकोश में जाकर गांड को गर्भित करता है, जिससे धीरे धीरे वह बीज के रूप में होता जाता है और फल की उत्पत्ति होती है। गर्भाधान के विचार से पौधे कई प्रकार के होते हैं-एक तो वे जिनमें एक ही वेद में स्त्री० फूल और पुं० फूल अलग अलग होते हैं। जैसे, कुम्हड़ा, कद्दू, तुरई, ककड़ी इत्यादि । इनमें कुछ फूलों में केवल गर्भकेसर होते हैं और कुछ फूलों में केवल पराग- केसर । ऐसे पौधों में गर्भकोश के बीच पराग या तो हवा से उड़कर पहुँचसा है या कीड़ों द्वारा पहुँचाया जाता है। मक्के के पौधे में पुं० फूल ऊपर टहनी के सिरे पर मंजरी के रूप में लगते हैं और जीरे कहलाते हैं और स्त्री० फूल पौधे के बीचो बीच इधर उधर लगते हैं और पुष्ट होकर बाल के रूप में होते हैं। ऐसे पौधे भी होते हैं जिनमें नर मादा अलग अलग होते हैं। नर पौधे में परागकेसरवाले फूल लगते हैं और मादा पौधे में गर्भकेसरवाले। बहुत से पौधों में गर्भकेसर और परागकेसर एक ही फूल में होते हैं। किसी एक सामान्य जाति के अंतर्गत संकरजाति के पौधे भी उत्पन्न हो सकते हैं। जैसे किसी एक प्रकार के नीबू का पराग दूसरे प्रकार के नीबू के गर्भकोश में जा पड़े तो उससे एक दोगला नीव उत्पन्न हो सकता है। पर ऐसा एक ही जाति के पौधों के बीच हो सकता है। फूल अनेक आकार प्रकार के होते हैं। कुछ फूल बहुत सूक्ष्म होते है और गुच्छों में लगते हैं। जैसे, आम के, नीम के, तुलसी के। ऐसे फूलों को मंजरी कहते हैं। फूलों का उपयोग बहुत प्राचीन काल से सजावट और सुगंध के लिए होता आया है। अब तक संसार में बहुत सा सुगंध द्रव्य (तेल, इन आदि) फूलों ही से तैयार होता है। सुकुमारता, कोमलता और सौंदर्य के लिए फूल सब देश के कवियों में प्रसिद्ध रहा है। मुहा०-फूल आना-फूल लगना फूल उतारना-फूल तोड़ना । फूल धुनना फूल तोड़कर इकट्ठा करना । फूल झड़ना मुँह से प्रिय और मधुर बातें निकलना । उ०—झरत फूल मुंहते यहि केरी।-जायसी । क्या फल झड़ जायेंग?- क्या ऐसा सुकुमार है कि अमुक काम करने के योग्य नहीं है? फूल लोदना फूल चुनना । फूल सा अत्यंत सुकुमार, हलका या सुंदर । फूल सूंघ कर रहना-बहुत कम खाना । जैसे, वह खाती नहीं तो क्या फूल सूंघ कर रहती है?