पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/२७५

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भावित २५६८ भाषा कार जिसमें भूत और भावी बातें प्रत्यक्ष वर्तमान की मांति । भाषक-संश पुं० [सं०] बोलनेवाला । फहनेवाला । भाषण वर्णन की गई हो। करनेवाला। वि० जाननेवारा । मर्मज्ञ । उ०-बरनी तासु सुषन पद- भाषश-संज्ञा पुं० [सं०] भाषा जाननेवाला । भाषा का ज्ञाता। पंकज । जो विराग भाविक मनरंजन ।--रघुराज । भाषण-संज्ञा पुं० [सं०] (1) कथन । बातचीत । कहना । (२) भाविन-वि०म० ] (1) जिसकी भावना की गई हो। सोचा व्याख्यान । वस्तृता। हुआ । विचारा हुआ । (२) मिलाया हुआ । (३) शुद्ध क्रि० प्र०--करना ।—देना ।-सुनना ।—सुनाना। किया हुआ। (४) जिपमें किसी रस आदि की भावना दी भाषना-मि० अ० [सं० भाषण ] बोलना। कहना। बात गई हो। जिसमें पुट दिया गया हो। (५) सुगंधित किया करना। हुआ । वाया हुआ । (६) मिला हुआ । प्राप्त । (७) भेंट क्रि० अ० [स. मक्षण ] भोजन करना । खाना । किया हुआ | समर्पित। भाषांतर-संज्ञा पुं॰ [सं०] एक भाषा में लिखे हुए लेख आदि भाविता-नश [सं० भावी का भाव । होनहार । होनी। के आधार पर दूसरी भाषा में लिखा हुआ लेख : अनुवाद । भावित्र-सज्ञा पु०म० : स्वर्ग, मर्त्य और पाताल इन तीनों उल्था । तरजुमा । लोकों का समूह । अलोक्य ।। भाषा-संज्ञा स्त्री० [सं०] (१) व्यक्त नाद की वह समष्टि जिसकी भाविन्या-सा मा. [सं० (1) सीता की एक सखी का नाम ।। सहायता से किसी एक समाज या देश के लोग अपने मनो- उ.-पुण्या पावला नीति अहलादिनी फ्राता। भावि गत भाव तथा विचार एक दूसरं पर प्रकट करते हैं मुख न्या शोभना लंबिनी विद्या शांता ।-विश्राम । (२) होन से उचरित होनेवाले शब्दों और वाक्यों आदि का वह हार । होनी । भावी। समूह जिनके द्वारा मन की बात बतलाई जाती है। भावी-संघा बी० म० भाविन्; (1) भविष्यत् काल । आनेवाला , बोली । ज़बान । बाणी। समय । (२) भविष्य में होनेवाली वह बात या व्यापार विशेष-इस समय सारे संसार में प्रायः हज़ारों प्रकार की जिम्मका घटना निश्चित हो । अवश्य होनेवाली बात । भवि. भाषाएं बोली जाती हैं जो साधारणत: अपने भाषियों को तम्यता । उ----भावी काहू सों न रै। कहँ वह राहु कहाँ छोद और लोगो की समझ में नहीं आती । अपने समाज वह रवि शशि आनि संजोग परें ।-सूर। या देश की भाषा तो लोग बचपन से ही अभ्यरत होने के विशप-याधारणतः भाग्यवादियों का विश्वास होता है कि कारण अच्छी तरह जानते हैं। पर दूसरे देशों या समाजों कुछ घटनाएँ या बातें ऐसी होती है जिनका होना पहले से की भाषा बिना अच्छी तरह सीखे नहीं आती। भाषा- ही किमी अदृश्य शक्ति के द्वारा निश्चित होता है । ऐसीही! विज्ञान के शाताओं ने भाषाओं के आर्य, सेमेटिक, हेमेटिक बात को "भावी" कहते हैं। (३) भाग्य । प्रारब्ध । आदि कई वर्ग स्थापित करके उनमें से प्रत्येक की अलग तकदीर। अलग शाखा स्थापित की है और उन शाखाओं के भी भावुक-संज्ञा पु० मे०] (१) मंगल । आनंद। (२) बहनोई।। अनेक वर्ग उपवर्ग बनाकर उनमें बड़ी बड़ी भाषाओं और (नान्योकि में) (३) सजन । भला आदमी। उनके प्रांतीय भेदों, उपभाषाओं अथवा बोलियों को रखा वि० (१) भावना करनेवाला। सोचनेवाला । (२) जिसके है। जैसे हमारी हिन्दी भाषा भाषा-विज्ञान की दृष्टि से मन में भावों का विशेषतः कोमल भावों का सहज में भाषाओं के आर्य वर्ग की भारतीय आर्य शास्था की एक संचार होता हो। जिस पर कोमल भावों का जल्दी प्रभाव । भाषा है और ब्रजभाषा, अवधी, बुंदेलखंडी आदि इसकी पड़ता हो । (३) उत्तम भावना करनेवाला । अच्छी बातें उपभाषाएँ या बोलियाँ है । पाम पास बोली जानेवाली अनेक मोचनवाला। उपभाषाओं या बोलियों में बहुत कुछ साम्य होता है। भावोत्सर्ग-संज्ञा पुं० [सं० कोध आदि बुरे भावों का त्याग।' और उसी साम्य के आधार पर उनके वर्ग या कुल स्थापित किए जाते हैं। यही बात बड़ी बड़ी भाषाओं में भी है भावोदय-संज्ञा पु. स. एक प्रकार का अलंकार जिसमें जिनका पारस्परिक साम्य उतना अधिक तो नहीं, पर फिर किसी भाव के उदय होने की अवस्था का वर्णन भी बहुत कुछ होता है। संसार की सभी बातों की भाँति होता है। भाषा का भी मनुष्य की आदिम अवस्था के अध्यक्त नाद भाव्य-वि० सं०] (1) अवश्य होनेवाला । जिसका होना बिल से अब तक बराबर विकास होता आया है; और इसी कुल निश्चित हो। भावी। (२) भावना करने के योग्य। विकास के कारण भाषाओं में समा परिवर्तन होता रहता (३) सिन्छ वा साबित करने के योग्य । है। भारतीय आय्यों की वैदिक भाषा से संस्कृत और