पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/२६९

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

भारतनंद भाराक्रांता गम्निमान् , नागप, माम्य, गंधर्व और वरुण ये नौ रचा हुआ श्रीतमूर और गृह्यसूत्र है। विभाग बतलाए गए हैं और लिखा है कि प्रजा का भरण भारद्वाजी-संभात्री० [सं०] एक नदी का नाम । पोषण करने के कारण मनु को भरत कहते हैं। उन्हीं भरत भाग्ना*-कि० स० | दि० भार (1) बोझ लादना । भार के नाम पर इस देश का नाम "भारतवर्ष" पड़ा। कुछ लोगों डालना । बोमना । लादना । (२) दबाना । भार देना । का मत है कि दुष्यंत के पुत्र भरत के नाम पर इस देश उ०-आपुन तरि तरि और न तारत । असम अचेत परवान का नाम "भारत" पड़ा। इसी प्रकार भित भिन्न पुराणो प्रगट पानी में बनचर डारत । इहि विधि उपलै सुतरु पात में इस संबंध में भिन्न भित्र बात दी हैं। ज्यों तदपि सेन अति भारत। बृद्धि न सकतु मनु रचना भारतनंद- धाम.ताल के पाठ मुख्य भेदों में से एक रचि राम प्रताप विचारत । —सूर । भेद का नाम । (संगीत) भारभारी-वि० [सं० भारभारिन् ] बोझ उठानेवाला । बोझ दोने- भारति-संज्ञा पुं० [सं० भारती ] (1) सरस्वती। (२) वाणी । वाला। उ.-मति भारति पंगु भई जो निहारि, बिचारि फिरी भारभुत्-वि० [सं०] भार धारण करनेवाला । बोझ दोनेवाला । उपमान सबै ।--तुलमी । . भारथ-संज्ञा पुं० [सं०] भारद्वाज नामक पक्षी । भरदल । भारती-संसामा [स० ।(1) वचन । वाणी । (२) परस्वनी। (३) भारयष्टि-संज्ञा पुं० [सं०] बहंगी। एक पक्ष का नाम । (३) एक वृत्ति का नाम । इसके द्वारा भारव-संज्ञा पुं० [म. धनुप की रस्पी । ज्या ।। रौद्र और वीभल्प रम्प का वर्णन किया जाता है। यह राधु भाग्वाह-वि० [सं०] (1) भार ले जानेवाला। (२) बहँगी दोने- वा संस्कृत भाषा में होता है। (५) ग्रामी। (६) संन्या. वाला। पियों के दश नामों में से एक । (७) एक नदी का नाम। भारवाहक-वि० [सं० ] बोझ ढोनेवाला । भारतीतीर्थ-संज्ञा पु० [सं० | एक तीर्थ का नाम । संभा पुं० मोटिया। भारतीय-वि० [सं०] भारत संबंधी। भारत का । जैम, भार- भारवाहन-सं-पु. [सं.] बोझ होने का किया या भाव । तीय चित्रकला, भारतीय दर्शन आदि। भाग्वाहिक-वि० [सं०] भारवाहक । भार दानवाला। भारतुला-सं.: स्त्री० [सं०] वास्तु विद्या के अनुसार स्तंभ के नौ स. एमोटिया । मजदूर । भागों में से पांचवों भाग जो वाँच में होता है। भारवाही-वि० | से, भाग्वाहिन् । बी० मारवाहिनी । भारवाह। भारथ*-सहा पु० [हिं० भारत (१) दे. "भारत"। (२) बोझ दोनेवाला। युद्ध। सजा त्रा० [सं०] नाली। संग्राम । उ०-भारथ होय जून जी ओधा । होहि महाय भारवि-संज्ञा पु० [सं०एक प्राचीन कवि जो किरातार्जुनीय आय सब जोधा ।-जायसी । नामक महाकाव्य के रचयिता थे। भारथी-संगा पुं० [सं० भारत ] योद्धा । सिपाही। उन्-भवउ विशेप-भारवि के जन्म और निवास स्थान आदि के संबंध अपूर्व पीय कढ़ कोपी। महाभारथी नाउँ अलोपी। में अभी तक कोई पता नहीं लगा। कहते है कि ये अपने जायमी। गुरु की गौएँ लेकर हिमालय की तराई में चराने जाया करते भारदंड-संज्ञा ५० [सं०(1) एक प्रकार का साम। (२) भार. थे। वहीं प्राकृतिक शोभा देखकर इनमें कविता करने की यष्टि । बहँगी। स्फूति हुई थी। सहा पुo हि. भार+2 ] एक प्रकार का दंड । (कसरत) भारहारी-संज्ञा पुं॰ [सं० भारहारिन् । पृथ्वी का भार उतारने. इसमें दंड करनेवाला साधारण दंड करते समय अपनी पीठ वाले, विष्णु । पर एक दूसरे आदमी को बैठा लेता है। वह पुरुष उसके भाग-वि० [सं० भार ] दे॰ "भारी"। उ०-(क) रहे तहाँ पैरों की नली पर पांव जमाकर हायों मे उसकी कमर की निसिचर भट भारे। ते सब सुरन्ह समेत सँहारे।-सुलसी। करधनी वा बंधन पकड़कर झुका रहता है और दंड करने. (म्ब) जे पद पा सदाशिव के धन सिंधुसुता उतरे नाहि वाला उसका बोझ सँभाले हुए साधारण रीति से दंड करता टारे । जे पद पच परसि अति पावन सुरमरि दरस करत जाता है। अघ भारे।-सूर। भारद्वाज-संशा पुं० [सं०] (१) भरद्वाज के कुल में उत्पन्न पुरुष। संज्ञा पुं० (१) दे० "भावा"। (२) दे० "भार"। (२) द्रोणाचार्य । (३) मंगल ग्रह । (४) भरदूल नामक भाराक्रांता-संज्ञा स्त्री० [सं०] एक वर्णिक वृत्ति का नाम जिसके पक्षी । (५) वृहस्पति के एक पुत्र का नाम । (६) एक देश प्रत्येक चरण में न भ न रस और एक लघु और एक गुरु का नाम । (७) हही। (0) एक ऋषि का नाम जिनका होते हैं और चौथे, छठे तथा सातवें वर्ण पर यति होती है।