पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/२५३

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भरपाई २५४६ भरिया भरपाई-क्रि० वि० [हिं० भरना+पाना (भर पाना ) ] पूर्ण रूप भरराना-क्रि० अ० [ अनु० ] (1) भरर शम्न के साथ गिरना। मे । भली भाँति । उ.---आपुन वज्र समान भए हरि अपराना । (२) पिल पड़ना। टूट पड़ना । उ०—भररान माला दुखित भई भरगई।-सूर।। भीर भारी । बहरान प्रीव सारी।-सूदन । संज्ञा स्त्री० (१) भर पाने का भाव । जो कुछ बाकी हो, वह कि० स०(१) भरर शब्द के साथ गिराना । (२) दूसरों को पूरा पूरा पा जाना । (२) वह रमीद जो पूरी पूरी वसूली पिलने अथवा टूट पड़ने में प्रवृत्त करना । हो जाने पर दी जाय । कुल वानी चुक जाने पर दी जाने । भरल-संज्ञा स्त्री० [ देश.] नीले रंग की एक प्रकार की जंगली वाली रसीद । भेद जो हिमालय में भूटान से लदाख तक होती है। भरपूर-वि० [हिं० भरना+पूरा (१) जो पूरी तरह से भरा । भरवाई-संज्ञा स्त्री० [सं० भारवाही ] बोझ उठाने की दौरी । वह हुआ हो। पूरा पूरा । (२) जिसमें कोई कमी न हो। डलिया या टोकरी जिसमें बोझ रखा जाता है। परिपूर्ण संशा स्त्री० [हिं० भरवाना ) (1) भरवाने की क्रिया या कि० वि० (1) पूर्ण रूप से । अच्छी तरह पूरा करके। (२) भाव । (२) भरवाने की मजदूरी। भली भाँति । भरवाना-क्रि० स० [हिं० भरना का प्रे० रूप ] भरने का काम संज्ञा पुं० समुद्र की तरंगों का चढ़ाय। ज्वार भाटा का | दूसरे से कराना । दूसरे को भरने में प्रवृत्त करना। उलटा । (लश.) | भरसक-क्रि० वि० [हिं० भर-पूरा+सक-शक्ति ] यथा शक्ति। भरभराना-कि० अ० [ अनु० ] (१) (रोआँ) खड़ा होना।। जहाँ तक हो सके। (इम अर्थ में इसका प्रयोग केवल "रोओं" शब्द के साथ , भरसन*-संशा स्त्री० [सं० भर्सना ] डाँट । फटकार । उ०—मित्र होता है।) (२) व्याकुल होना। घबराना । उ०-भर चिसहि हैसि हेरि मश्रु तेजहि करि भरसन । भराय देग्वे बिना देग्ये पल न अधायँ । रसनिधि नेही नैन : भरसाई-संज्ञा पुं० दे० 'भाद।" ये क्यों समुपाये जाय।-रसनिधि । भरहरना-कि० अ० दे० "भरभराना"। उ०—जाको सुयश भर जा-संज्ञा पुं० दे० "मदर्भूजा"। सुनत अरु गावत पाप वृद जैहैं भजि भरहरि । -सूर । भरभेटा-संज्ञा पुं० [ हिं . भर+भटना ] सामना । मुक्काबला। भरहराना-कि० अ० दे० "भहराना"। मुठभेद । उ०—मारे नाइका को जाको देवर डेराते हुते भर्गति*-संज्ञा स्त्री० दे० "भ्रांति" । उ.---अपनी अपनी जाति गयो पंध ही में परितामु भरभेदा है। रघुरात्र । सों सब कोई वसह पाँति । दादू सेवक राम का ताको नहीं भरम -संश। ५० [सं० भग] (1) भ्रांति । संशय । संदेह । भरांति ।-दादू । धोग्वा । (२) भेद । रहस्य । भराई-संशा सी० [हिं० भरना ] (1) एक प्रकार का कर जो पहले महा०-भरम गवाना अपना भेद खोलना । अपनी याद बनारस में लगता था और जिसमें से आधा कर उगाहने- देना । भरम बिगाड़ना=भंडा फोटना । रहस्य खोलना । । वाले राजकर्मचारी को मिलता था और आधा सरकार में भरमना-क्रि० अ० [सं० भ्रमण ] (1) घूमना । चलना।। जमा होता था । (२) भरने की क्रिया या भाव । (३) भरने फिरना । (२) मारा मारा फिरना । भटकना । (३) धोने की मज़दूरी। में पड़ना। भरा पूरा-वि० [ हिं . भरना+पूरा ] (१) जिसे किसी बात की संज्ञा स्त्री० [सं० भ्रम } (1) भूल । गलती । (२) धोखा। कमी न हो। संपन्न । (२) जिसमें किसी बात की कमी या भ्रांति । भ्रम। न्यूनता न हो। भरमाना-क्रि० स० [हि. भरमना का म० रूप] (1) भ्रम में । भराव-संज्ञा पुं० [हिं० भरना+आव (प्रत्य॰)] (1) भरने का डालना । चक्कर में डालना। बहकाना । उ०-कोउनिरखि भाव । भरत । (२) भरने का काम । (३) कसीदा कादने रही चारु लोचन निमिष भरमाई ।सूर प्रभु की निरखि में, पत्तियों के बीच के स्थान को तागों से भरना। सोभा कहत नहिं आई।-सूर । (२) भटकाना । व्यर्थ भरित-वि० [सं० ] (1) जो भरा गया हो। भरा हुआ । (२) इधर उधर घुमाना । उ०-माधोज मोहि काहे की लाज। जिसका भरण या पालनपोषण किया गया हो। पाला पोसा जन्म जन्म योही भरमान्यो अभिमानी बेकाज-सूर। कि० अ० चकित होता। हैरान होना । अचंभे में आना। भरिया-वि० [हिं० भरना ] (1) भरनेवाला । पूर्ण करनेवाला । उ.-पूर इग्राम छषि निरखि कै युवती भरमाहीं।-सूर। (२) ऋण भरनेवाला । कर्ज चुकानेवाला । भरमार-संशा स्त्री० [हिं० भरना+मार अधिकता बहुत ज्यादती । संथा पुं. वह जो बरतन आदि दालने का काम करता हो। अत्यंत अधिकता। रलाई करनेवाला । गलिया। सव हुआ।