पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/२४३

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२५३६ भजक-संज्ञा पुं० [सं०] (१) भजन करनेवाला । भजनेवाला ।। (२) सिपाही । सैनिक । (३) प्राचीन काल की एक वर्ण- (२) विभाग करनेवाला । संकर जाति। भजन-संज्ञा पु० [सं०] (1) भाग । खेर । (२) सेवा । पूजा। संज्ञा पुं० दे. "भटनास"। . (३) बार बार किसी पूज्य या देवता आदि का नाम लेना। भटकटाई, भटकटैया-संज्ञा स्त्री० [सं० कंटकारी, हिं० कटेरों या स्मरण । जप । (५) वह गीत जिसमें ईश्वर अथवा किसी कटाई ] एक छोटा और काँटेदार क्षुप जो बहुधा औषध के काम में देवता आदि के गुणों का कीर्तन हो। आता है। इसके पत्तों पर भी काँटे होते हैं। इसके फूल भजना-कि स० [सं० भजन ] (1) मेवा करना । (२) आश्रय बैंगनी होते हैं और फूल का जीरा पीला होता है। कहीं कहीं लेना । आश्रित होना । उ॰—(क) विधिवश हठि अवि सफेद फूल की भी भटकट या मिलती है। इसमें एक प्रकार वेकहि' भजई।--सुलपी । (ख) तमोहठ आनि भजी किन के छोटे फल भी लगते हैं जो पहले कर वे रहते हैं, पर मोहि ।-केशव(३) देवता आदि का नाम रटना। पकने पर पीले हो जाते हैं । वधक में इसे सारफ, करवी, स्मरण करना । अपना। घरपरी, रूखी, हलकी, अग्निदीपक तथा खाँसी, ज्वर, कफ, कि० अ० [सं० प्रजन पा० वजन ] (8) भागना । भाग घात, पीनस तथा हृदय रोग की नाश करनेवाली माना है। जाना । उ०-भजन कयौ तातें भज्यो भज्यो न एको बार। पर्या-कंटकारी । कुली । क्षुद्रा। कासनी । कंटतारिका । दूरि भजन जातें कही सोते भज्यो गॅवार -बिहारी। स्पृही । धावनिका । व्याघ्री। दुःस्पर्शा। दुषधर्मिणी । कट- (२) पहुँचना । प्राप्त होना । उ०—चित्रकूट तब राम जू श्रेणी । प्रचोदिनी। सिंही। भंटाकी । धावनी । बहुकटा। तज्यो । जाय यज्ञथल अग्नि को भज्यो ।केशव ।। चित्रफला । भजनानंद-संज्ञा पुं० [सं० ] वह आनंद जो परमेश्वर का नाम भटकना-कि० अ० [सं० भ्रम ? ] (1) व्यर्थ धर उधर घूमते स्मरण करने में प्राप्त होता है। भजन से मिलनेवाला फिरना । उ०--अरे बैठि रहु जाय घर कत भटकत बेकाज । आनंद । चितवन टोना को अरे होना नहीं इलाज ।-रसनिधि । भजनानंदी-संशा पु० [सं० भजनानंद+ई (प्रत्य॰)] वह जो दिन (२) रता भूल जाने के कारण इधर उधर घूमना । (३) रात भजन करने में ही मगन रहता हो। भजन गाकर । भ्रम में पड़ना । उ०-सावरी मूरति सों अटकी भटकी सी सदा प्रसन्न रहनेवाला। वधू बट की भी मांवरी। दत्त । भजनी-संज्ञा पुं० हिं० भजन+ई (प्रत्य॰)] भजन गानेवाला। भटकाना-क्रि० स० [हिं. भटकना का सक० रूप ] (1) ग़लत . उ०—करन लगै जप जेहि समय तब भरि मोद अनंत। रास्ता बताना । ऐसा रास्ता बताना जिसमें आदमी भटके। भजन सुनै भजनीन सों निर्मित निज बहु संत ।-घुराज ।। (२) धोखा देना । भ्रम में डालना। भजनीय-वि० [सं०] (1) सेवा करने योग्य । (२) आश्रय लेने | भटकैया -संज्ञा पुं० [हिं० भटकना+ऐया (प्रत्य॰)] (1) भटकने- योग्य । (३) भजने के योग्य । वाला । (२) भटकानेवाला । भजाना-क्रि० अ० [सं० प्रजन हिं. भजनान्दोकना ] दौड़ना। भटकौहाँ* 1-वि० [हिं० भटकना+ओहाँ (प्रत्य॰)] भटकानेवाला। भागना । उ०-भौन को भजाने अलि, छटे लट केश के। भुलावे में डालनेवाला । उ०-सुम भटफौह बचन पोलि भूषण । हरि करत रिसौंहैं।-अंबिकादत्त । क्रि० अ० [सं० प्रजन, हिं . भजना का सक० रूप ] भगाना। भटतीतर-संज्ञा पुं० [हिं० भट=बड़ा+तीतर ] प्रायः एक फुट दूर कर देना । उ.--(क) पिय जियहि रिक्षा दुखनि लया एक प्रकार का पक्षी जो उत्तर-पश्चिम भारत में पाया भजाब, विविध बजावै गुण गीता । केशव । (ख) सर जाता है। इसकी मादा एक बार में तीन अंडे देती है। बरमत रख कर जलद मद दूरि भजाव।-गोपाल। लोग प्राय: इसके मांस के लिये इसका शिकार करते हैं। भजियाउरी-संज्ञा स्त्री० [हिं० भाजी+चावर (चावल)] चावल, भटधर्मा-वि० [सं०] वीर धर्म का पालन करनेवाला । सवा . दही, घी आदि एक साथ पकाकर बनाया हुआ भोजन । बहादुर। जिसमें नमक भी पड़ता है। इसे उशिया और भिजियाउर भटनास-संज्ञा स्त्री० [देश ] एक प्रकार की सता जो चीन, जापान भी कहते है। उ०-मा जाउर भजियाउर सीझी यय । और जावा में बहुत अधिकता से होती है और भय बरमा, ज्यौनार ।-जायसी। पूर्वी बंगाल, आसाम तथा गोरखपुर-बस्ती आदि में भी भज्य-वि० [सं० ] (1) विभाग करने के योग्य । (२) सेवा करने | जिसकी से.ती होने लगी है। इसमें एक प्रकार की फलियाँ के योग्य । (३) भजने के योग्य । लाती हैं और उन्हीं फलियों के लिये इसकी खेती की भट-संज्ञा पुं॰ [सं०] (1) युद्ध करने या लबनेवाला । योचा। जाती है। फलियों के दानों की दाल भी बनाई जाती है।