पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/२४

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

फ़िहरिश्त २३१७ फुकना निरिश्त-संज्ञा स्त्री० [फा०] सूची। सूचीपत्र । बीजफ।। अमेरिका से भी फीरोजा बहुत आता है। उसकी गिनती फीचना-क्रि० स० [ अनु० फिच् फिच् ] पछारना । कपड़े को रत्नों में है और यह आभूषणों में जहा जाता है। हलके पटक कर साफ करना । धोना। मोल के पत्थर पच्चीकारी में भी काम आते हैं। वैद्य लोग फी-अन्य [अ.] प्रति एक हर एक। जैसे,—(क) फी आदमी। इसका व्यवहार औषध के रूप में भी करते हैं। यह कसैला, दो आने लगेंगे। (ख) फी रुपया दो आना सूद मिलता है। मीठा और दीपन कहा गया है। फीका-वि० [सं० अपक, प्रा० आपिक ] (1) स्वादहीन । सोठा। पर्या--हरिताश्म । भस्मांग । पेरोज । नीरस : बे ज़ायका । जो चखने में अच्छा न लगे । अरुचि- फीरोजी-वि० [फा०] फीरोजे के रंग का । हरापन लिए नीला । कर । उ०—(क) माया तरवर विविध का साख विषय विशेष—इस रंग में कपड़ा इस प्रकार रंगा जाता है। पहले संताप । शीतलता सपने नहीं फल फीका तन ताप।- कपड़े को तूतिये के पानी में रंगते हैं, फिर तूतिये से चौगुना कबीर । (ख) जे जल देखा सोई फीका। ताकर काह चूना मिले पानी में उसे बोर देते हैं और फिर पानी में सराहे नीका 1-जायसी । (ग) प्रभु पद प्रीति न सामझ । निथारते हैं। यह क्रिया तीन बार करते हैं। नीकी। तिन्हहि कथा सुनि लागहि फीकी ।-तुलसी। : फील-संज्ञा पुं० [फा०] हाथी । उ.-झालरि झुकत अलकत (घ) देह मेह सनेह अर्पण कमल लोचन ध्यान । सूर उनको अपे फीलन ३ अली अकबर खाँ के सुभट सराह के । अरि भजन देवत फीको लागत ज्ञान ।—सूर । (२) जो घटकीला उर रोर सोर परत संसार घोर वाजत नगारे नरवर नाह न हो। जो शोख न हो। धूमला। मलिन । उ०—(क) के।--गुमान । चलय नीति मग राम पग नेह निबाहब नीक । तुलसी फीलखाना-संशा पुं० [फा०] हथियार । हस्तिशाला । वह घर पहिरिय सो बसन जोन पखारे फीक ।-तुलसी । (ख) जहाँ हाथी बाँधा जाता हो। चटकन छाड़त घटत हूँ सनन नेह गंभीर । फीको परेन : फीलपा-संज्ञा पुं० [फा० ] एक रोग जिसमें पैर फूल कर हाथी बरु फट ग्यो चोल रंग चीर ।-बिहारी। के पैर की तरह हो जाता है । यह रोग शरीर के दूसरे अंगों क्रि०प्र०-करना ।-पकड़ना !-होना। पर भी आक्रमण करता है। (३) बिना तेज का । कांतिहीन । प्रभाहीन । बे-, फीलपाया-संज्ञा पुं० [फा०] (1)ईटे का बना हुआ मोटा खंभा रौनक । मंद । जैसे, चेहरा फीका पड़ना । उ०-दुलहा : जिस पर छत ठहराई जाती है। इसे पीलपाया भी कहते दुलहिन मिलि गए फीकी परी घरात ।-कबीर । (४) हैं। (२) दे. "फीलपा" । प्रभावहीन । व्यर्थ । निष्फल । उ०-(क) प्रभु सों कहत. फीलवान-संशा पु० [फा० ) हाथीवान । सकुचात ही परो जिनि फिरि फीको । निकट बोलि बलि । फीली-संज्ञा स्त्री० [मं० पड ] पिंडली । घुटने के नीचे एडी तक बरजिये परिहरि क्यार. अब तुलसी दास जर जी को।- का भाग । उ०—सिंह की चाल चलै डग ढीली रोवा तुलसी । (ख) नीकी गई अनाकनी फीकी पड़ी गुहारि। बहुत जाँघ औ फीली।-जायसी। मनो तज्यो तारन विरद बारिक बारन तारि ।-विहारी। फील्ड-संशा पुं० [अं॰] (१) खेत । मैदान। (२) गेंद खेलने फीता-संज्ञा पुं० [ पूर्त० ] (१) नेवार की पतलीधजी, सूत, आदि का मैदान।। जो किसी वस्तु को लपेटने या बांधने के काम में आता है। फीस-संशा श्री० [ अं०] (1) कर। शुल्क । (२) मेहनताना । उ.-खेलत चंग से चित्त चली ज्यों धधी रघुराज के प्रेस उजरत । जैसे, डाक्टर की फीस, स्कूल की फीस । के फीता ।-रघुराज । (२) पत्तला किनारा वा कोर । क्रि० प्र०-लगना। फीफरी -संघा स्त्री० दे० "फेफरी"। ऊँकना-क्रि० स० [हिं० फूंकना 1 (1) फूंकने का अकर्मक रूप । फीरनी-संज्ञा स्त्री० [ फा फिरनी ] एक प्रकार की खीर जो दूध (२) जलना । भस्म होना। में चावल का बारीक आटा पकाकर बनाई जाती है। इसे . संयो० कि०-जाना। मुसलमान अधिक खाते हैं। (३) नष्ट होना । बरबाद होना । व्यर्थ खर्च होना । जैसे, फीरोजा-संशा पुं० [फा० मि० सं० परेज, पेरोज ] एक प्रकार का इतना रुपया फुक गया । (४) मुंह की हवा भरकर नग या बहुमूल्य पत्थर जो हरापन लिए नीले रंग का । निकाला जाना। होता है। संशा पुं० (१) बाँस, पीतल आदि की नली जिसमें मुंह की विशेष-इसमें अलमीनियम फासफेट और कुछ लोहे और . हवा भरकर आग पर छोड़ते हैं। फुकनी । (२) प्राणियों ताँबे का योग होता है। अच्छा फीरोजा फारस की पहाथियों के शरीर का वह अवयव जिसमें मुत्र रहता है। यह पेड़ के में होता है जहाँ से रूम होता हुआ यह युरोप गया। पास होता है।