पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/२२

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फिरना २३१५ फिराक क्रि०प्र०—करना । होना। मुगना । धूमना । चलने में रुख बदलना । जैसे,—कुछ दूर फिरना-क्रि० अ० [हिं० फेरना का अर्गक रूप ] (१) इधर उधर सीधी गली में जाकर मंदिर की ओर फिर जाना। चलना। कभी इस ओर कभी उस ओर गमन करना । संयोक्रि०-जाना। इधर उधर डोलना । ऐसा चलना जिसकी कोई एक निश्चित मुहा०-किसी ओर फिरना-प्रवृत्त होना। झुकना | मायल दिशा न रहे। भ्रमण करना । जैसे, (क) वह धूप में दिन होना । जैसे, उसका क्या जिधर फेरो उधर फिर जाता है। भर फिरा करता है। (ख) वह सदा इकट्ठा करने के लिए उ.-तसि मति फिरी अहइ जसि मावी।-तुलसी। जी फिर रहा है । उ०--(क) खेह उदानी जाहि घर हेरत फिरना-चित्त न प्रवृत्त रहना। उचट जाना । इट जाना । फिरत सो खेह । पिय आवहि अत्र रष्टि तेहि अंजन नयन विरक्त हो जाना। डरेह।जायसी । (ख) तृखित निरखि रविकर भव वारी। (९) विरुद्ध हो पड़ना। खिलाफ हो जाना । विरोध पर फिरिहहि मृग जिमि जीव दुखारी।तुलसी । (ग) फिरत उच्चत होना । सबने या मुकाबला करने के लिए तैयार हो सनेह मगन सुख अपने । नाम प्रताप सोच नहि सपने । जाना । जैसे, बात ही बात में वह मुझसे फिर गया। तुलसी । (२) टहलना । विचरना । सैर करना । जैसे मुहा०—(किली पर) फिर पड़ना-विरुद्ध होना । कृद्ध होना । संध्या को इधर उधर फिर आया करो। विगहना। यौ०-घूमना फिरना । (१०) और का और होना। परिवर्तित होना । बदल (३) चक्कर लगाना । बार बार फेरे खाना । लटटू की तरह जाना । उलटा होना । विपरीत होना । जैसे, मति फिरना । एक ही स्थान पर घूमना अथवा मंडल बाँधकर परिधि के उ.--काल पाइ फिरति दसा, दयालु ! सब ही की, नोहि किनारे घूमना । नाचना या परिक्रमण करना । जैसे, लाटू यिनु मोहि कबहूँ न कोउ चहगो वचन, करम हिय कहाँ का फिरना, घर के चारों ओर फिरना । उ०-(क) फिरत राम सौंह किए तुलसीप नाथ के निबाहे निबहंगो। तुलगी। नीर जोजन टख वाका । जैसे फिर कुम्हार के चाका । संयो० क्रि०-जाना। जायसी। (ख) फिर पाँच कोतवाल सो फेरी । काँपै पाँव मुहा०-सिर फिरना-बुद्धि भ्रष्ट होना 1 उन्माद होना । चपत वह पौरी ।—जायसी । (४) ऐठा जाना । मरीका (११) बात पर हद न रहना। प्रतिज्ञा आदि से विचलित जाना । जैसे,—ताली किसी और को फिरती ही नहीं है। होना । हटना । जैसे, वचन से फिरना, कौल से फिरना। (५) लौटना । पलटना । वापस होना । जहाँ से चले थे। संयो० क्रि०-जाना। उसी ओर को चलना। प्रत्यावर्तित होना । जैसे,—(क) वे (१२) सीधी वस्तु का किसी ओर मुबना । झुकना । टेड़ा घर पर मिले नहीं में तुरंत फिरा । (ख) आगे मत जाओ, होना । जैसे, इस फावड़े की धार फिर गई है। घर फिर जाओ। उ०—(क) आय जनमपत्री जी लिखी। देय असीस फिरे ज्योतिषी ।—जायसी। (ख) पुनि पुनि (१३) चारों ओर प्रसारित होना । घोषित होना । जारी विनय करहि कर जोरी । जो यहि मारग फिरिय बहोरी ।। होना । सबके पास पहुँचाया जाना । जैले, गश्ती चिट्ठी दरसन देव जानि निज दासी । लखी सीय सब प्रेम फिरना, दुहाई फिरना । उ.-(क) नगर फिरी रघुवीर पियासी।-तुलसी । (ग) अपने धाम फिरेतब दोऊ जानि । दुहाई।-तुलसी । (ख) भइ ज्योनार फिरी लगवानी । भई कछु साँझ । करि दंडवत परसि पद ऋषि के बैठे उप- । फिर अरगजा कुहुकुह आनी ।-जायसी। (११) किसी घन माझ ।-सूर। वस्तु के ऊपर पोता जाना । लीप या पोतकर फैलाया संयोकि०-आना-जाना ।-पड़ना । जाना । चढ़ाया जाना । जैसे, दीवार पर रंग फिरना, जूते (६) किसी मोल ली हुई वस्तु का अस्वीकृत होकर बेचने- | पर स्याही फिरना । (१५) यहाँ से वहाँ तफ स्पर्श करते वाले को फिर दे दिया जाना । वापस होना । जैसे, जब हुए जाना । रखा जाना । सौदा हो गया तब चीज़ नहीं फिर सकती। फिरबा-संज्ञा पुं० [हिं० फिरना] (1) सोने का एक आभूषण संयो०क्रि०-जाना। ___ जो गले में पहना जाता है । (२) सोने की अंगूठी जो तार (७) एक ही स्थान पर रहकर स्थिति बदलना । सामना को कई फेरे लपेटकर बनाई गई हो। दूसरी तरफ हो जाना । जैसे,—धका लगने से मूर्ति का फिरवाना-कि० स० [हिं० फेरना' का प्रे०] फेरने का काम कराना। मुंह उधर फिर गया।

क्रि० स० [हिं० 'फिराना' का प्रे०] फिराने का काम कराना।

संयो० कि०---जाना। | फिराक-संज्ञा पुं० [अ०] (१) वियोग । विछोह । (२) चिंता। (6) किसी ओर जाते हुए दूसरी ओर चल पड़ना। सोच । खटका । (३) टोह । खोज।