पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/१८७

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२४८० बुकस बुंद-संज्ञा स्त्री० [सं० बिंदु ] (1) बंद । तरा, टोप । बिंदु । संज्ञा पुं० बुंदेलखंड का निवासी। (२) वीर्य । संशा स्त्री सुंदेलखंड की भाषा । वि० थोड़ा सा । ज़रा सा । बुंदेला-संज्ञा पुं० [हिं० बूंद+एला (प्रत्य॰)] (1) क्षत्रियों का संशा पुं० [सं०] तीर । एक वंश जो गहरवार वंश की एक शाखा माना जाता है। धुंदकी संज्ञा स्त्री० [सं० विदु-+की (प्रत्य॰)] (1) छोटी गोल. ऐसा प्रपिन्द्व है कि पंचम नामक एक गहरवार क्षत्रिय मे एक विदी । (२) किसी चीज़ पर बना या पड़ा हुआ छोटा बार अपने आपको विंध्यवासिनी देवी पर बलिदान चढ़ाना गोल दाग या धब्बा। चाहा था। उस समय उसके शरीर से रक्त की जो बूंदें वेदी धुंदकीदार-वि० [हिं० बुंदकी+फा० दार ] जिस पर धुंदकियाँ पर गिरी थीं, उन्हीं से बुंदेला वंश के आदि पुरुष की पड़ी या बनी हों। जिस पर बूंदों के से चित हों। उत्पत्ति हुई थी। चौदहवीं शताब्दी में बुंदेलखंड प्रांत में बुंदकी वाला। बुंदेलों का बहुत ज़ोर था; और उसी समय कालिंजर और बुदकयारी-संज्ञा स्त्री० [देश॰] वह दंड जो बदमाशों से ज़मींदार कालपी इनके हाथ में आई थी । जब ये लोग बहुत बड़े, लेता है। तब मुसलमानों से इनकी मुठभेद होने लगी। कहा जाता बुंदवाना-संसा पुं० [हिं० सुंद+वान (प्रत्य॰)] छोटी छोटी बूंदों है कि पंद्रहवीं शताब्दी के आरंभ में बाबर ने बुंदेले सरदार की वर्षा । राजा रुद्रप्रताप को अपना सूबेदार बनाया था ।बुंदेलखंड में बुंदा-संज्ञा पुं० [सं० विंदु ] (१) खुलाक के आकार का कान में धुंदेलों और मुसलमानों में कई बार बड़े बड़े युद्ध हुए थे। पहनने का एक प्रकार का गहना । लोलक । (२) माथे वीरसिंह देर और छग्रसाल आदि प्रसिद्ध वीर और मुसल- पर लगाने की बड़ी टिकली जोपनी या काँच आदि की बनती मानों में रखनेवाले इपी बुंदेले वंश के थे। (२) पुँदेला और बड़ी बिंदी के आकार की होती है। (३) बड़ी टिकली वंश का कोई व्यक्ति । (३) बुंदेलखंड का निवासी। . के आकार का गोदना जो माथे पर गोदा जाता है और बुंदारी*-संज्ञा स्त्री० [हिं० बूंद+ओरी (प्रत्य॰)] बुंदिया या श्रृंदी जिसमें बहुत से छोटे छोटे दाने या गोदने के चिह्न होते हैं। नाम की मिठाई । उ०—मतलड छाल और मरकोरी। बुंदिया-संज्ञा स्त्री० दे० “दी"। माँट पेराके और धुंदोरी।-जायसी । युदीदार-वि० [हिं०दा+का दार (प्रत्य॰)] जिसमें छोटी छोटी बंलपटी-संज्ञा पुं॰ [ लश० ] जहाज़ में पिछला पाल । बिंदियाँ बनी या लगी हों। बुआ-संशा स्त्री० दे० "बुआ"। धुंदलखंड-संज्ञा पुं० [हिं० बुदेला संयुक्त प्रांत का वह अंश जिसमें वुक-संशा श्री० [अ० बकरम ] (१) एक प्रकार का कलफ किया जालौन, साँसी, हमीरपुर, बाँदे के जिले पाते हैं। इसके हुआ महीन पर बहुत करारा करता जो बच्चों की टोपियों अतिरिक्त ओपछा, दतिया, पन्ना, चरखारी, बिजावर, में अस्तर देने या अगिया, कुरती, जनानी चादरें आदि छतरपुर आदि अनेक छोटी बड़ी रियासतें भी इसी के बनाने के काम में आता है। यह साधारण बकरम की अंतर्गत है। यह विशेषतः बुंदेले क्षत्रियों का निवास स्थान ।। अपेक्षा बहुत पतला पर प्राय: वैसा ही करारा या कड़ा है, इसीलिये बुंदेलखंड कहलाता है। दे० "बुंदेला" होता है। (२) एक प्रकार की महीन पनी । यहाँ पहले गहरवारों, पविहारों और चंदेलों आदि का संज्ञा स्त्री॰ [अं॰] पुस्तक । किताब । पोथी । राज्य था। पर ११८२ में दिल्ली के पृथ्वीराज ने बुंदेलखंड बुकचा संशा पुं० [ तु० बुकचः (१) वह गठरी जिसमें कपड़े पर आक्रमण करके उसे अपने अधिकार में कर लिया था। बंधे हुए हों। (२) गठरी। १५४५ में शेरशाह सूर ने बुंदेलवर पर आक्रमण किया बुकची-संशा स्त्री० [हिं० बुकचा-+-ई (प्रत्य॰) 1 (9) छोटी गठरी, था, पर कालिंजर पर घेरा डालने में ही उसकी मृत्यु हो विशेषतः कादों की गठरी। (२) दर्जियों की वह थैली गई थी 1 पीछे से यह प्रदेश मुसलमानों के हाथ में चला जिसमें वे सूई, डोरा, कैंची, कपड़े, कागज़ आदि रखते हैं। गया था। अब इसके दो विभाग है, एक अंगरेज़ी शासन के संज्ञा स्त्री० दे. "बकुची"। अधीन और दूसरा अनेक छोटे बड़े राजाओं और जागीर- बुकनी-संशा स्त्री० [हिं० बूकना+ई (प्रत्य०)] (1) किसी चीज़ दारों आदि के अधीन । इस प्रदेश में अनेक पहार और का महीन पीसा हुआ चूर्ण (२) वह चू जिसे पानी में बड़ी बड़ी झीलें है जिनके कारण यहाँ की प्राकृतिक शोभा घोलने से कोई रंग बनता हो । जैसे, गुलाबी गुफनी । प्रशंसनीय है। खुकथा -संशा पुं० [हिं० चूकना ) (1) उबटन । बटना । (२) बँदेलखंडी-वि० [हिं० बुंदेलखंड+ई (प्रत्य॰)] बुंदेलखंड संबंधी। दे. बुफा"। बुंदेलखंड का। | बुकस-संशा पुं० [सं० युका ] भगी। मेहतर । हलालखोर ।