पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/१८४

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बीता बीमा मनु सोए इक साथ । मूका मेलि गहै जुछिन हापन छोरे उठाना । धुनना । उ०—(क) भोर फल बीनये को गए हाय ।-बिहारी। (२) दूर होना । जाता रहना । छूट फुलवाई है। सीसनि टेपारे उपवीत पीत पट कटि दोना जाना । निवृत्त होना । उ०—(क) सत्र विधि सानुकूल वाम करन सलोने में सवाई है। सुलसी । (ख) नैन किल- लखि सीता। भा निसोच उर अपडर बीता।--सुलसी । (ख) किला मीत के ऐसे कछू प्रवीन । हिय समुद्र ते लेत है बीन मुनि बाल्मीकि कृपा सातों ऋषि राममंत्र फल पायो। तुरत मन मीन।-रसनिधि । (ग) सुदर नवीन निज करन उलटा नाम जपत अघ बीत्यो पुनि उपदेश करायो।-सूर । सी बीन बीम येला की कली ये आजु फोन छीन लीन्हीं है। (३) संघटित होना । घटना । पड़ना । उ०—(क) -प्रताप । (२) छाँटकर अलग करना। छांटना । कैसे करि आवत श्याम इती। मन क्रम बचन और कि० स० दे० 'बींधना"। नहि मेरे पदरज त्यागि हती। अंतर्यामी यही न जानत कि० स० दे० "बुनना"। जो मो उरहि विती । ज्यों ज्यों कजुवारि स्प बीधि हार बीफ-संज्ञा पुं० [सं० वृहस्पति ] वृहस्पतिवार । गुरुवार । गुथ सोचतु पट कि चिती।—सूर । (ख) मन बच क्रम पल बीवी-संज्ञा स्त्री॰ [फा०] कुलवधू । कुलीन स्त्री। (२) पनी । ओटन भावत छिन युग बरस समाने। सूरश्याम के स्त्री। 30-चित्त अनचैन आँसू उमगत नैन देखि बीबी कह वश्य भए ये जेहि बीते सो जाने।-सूर । (ग) बैठो सजि बैन मियाँ कहियत काहि नै?-भपण । (३) स्त्रियों के लिये सुंदरि सहेलिन समाज बीच बदन पै चारुता चिराक की आदरार्थक शब्द । (४) अविवाहिता लड़की । कन्या वितै रही।-प्रताप । (आगरा)। बीता-संज्ञा पुं० दे० "बित्ता" । बिवेरेना-संशा पुं० [ सिंहाला ] एक प्रकार का वृक्ष जो दक्षिण बीथित*-वि० [सं० व्यथित ] दुःखित । पीड़ित । उ०- भारत के पश्चिमी घाटों में बहुत होता है। इसकी लकड़ी पातकी पपीहा जलपान को न प्यायो काह बीथित बियो का रंग पीला होता है और यह इमारत और नायें बनाने गिनि के प्रानन को प्यासो है। ---माकर । के काम में आता है। इस लकड़ी में जल्दी धुन या कीड़ा बीधना*-कि० अ० [सं० विद्ध ] फंसना । उलझना । उ.- आदि नहीं लगता। (क) हंसा संशय छूटी कुहिया । गैया पिए बछरुवं बीभत्स-वि० [सं०] (१) जिसे देखकर घृणा उत्पन्न हो। दुहिया । "धरती बरसे बादल भीजे भीट भया पैराऊ । घृणित । (२) क्रूर । (३) पापी। हंस उड़ाने ताल सुखाने चहले बीधा पाऊ।-कबीर । संज्ञा पुं० (१) काव्य के नौ रसों के अंतर्गत सातवाँ रस । (स्व) नैना बीधे दोऊ मेरे । श्याम सुंदर के दरस परम में इसमें रक्त मांस आदि ऐसी बातों का वर्णन होता है जिनमे इत उत फिरत न फेरे ।---सूर । (ग) कौन भाँति रहि है अरुचि और घृणा तथा इंद्रियों में संकोच उत्पन्न होता है। बिरद अब देखबी मुरारि । बीधेमोसों आय के गीधे गीधहि इसका वर्ण नील और देवता महाकाल माने गए हैं। तारि।--बिहारी । (घ) इंदिरा के मंदिर में सुनिए अनंद जुगुप्सा इसका स्थायी भाव है, पीब, मेद, मज्जा, रक्त, भरे बीधे भव फंद तहाँ कैसे जाइयतु है।-पद्माकर । मांस या उनकी दुर्गंधि आदि विभाव हैं; कप, रोमांच, कि० स० दे. "बींधना"। आलस्य संकोच आदि अनुभाव है और मोह, मरण, आग, बीधा-संज्ञा पुं० [सं० विधान ] यह तय करना कि इस गाँव व्याधि आदि व्यभिचारी भाव हैं। उ.-..-१६त मंत्र अरु की इतनी मालगुजारी सरकारी होगी । मालगुजारी यंत्र अंत्र लीलत इमि जुग्गिनि । मनहूँ गिलत मद मत्त निश्चित करना। गरुप तिय अरुण उरुम्मिनि । हरबरात हरषात प्रथम परसत बीन-संशा स्त्री० [सं० वीण ] एक प्रसिद्ध बाजा जो सितार की पल पंगत । जहें प्रताप जिति जंग रंग अंग अंग उमंगत । तरह का पर उससे बड़ा होता है। इसमें दोनों ओर बहुन जहँ पद्माकर उतपत्ति अति रन स्कन नहिय बहत । चस्व बड़े बड़े तूंबे होते हैं, जो बीच के एक लंबे डाँड़ से मिले चकित चित्त घरबीन चुभि धक धकाइ एंडी रहत । होते हैं। इसमें एक सिरे से दूसरे सिरे तक साधारणत: ५ या ७ तार लगे होते हैं जिनमें से प्रत्येक में आवश्यकता- बीभत्सित-वि० [सं०] निंदित । घृणित । नुसार भिन्न भिन्न प्रकार के स्वर निकाले जाते हैं। यह बीभत्सु-संज्ञा पुं० [सं०] (1) अर्जुन। (२) अर्जुन वृक्ष । बाजा बहुत उच्च कोटि का माना जाता है और प्रायः बीम-संज्ञा पुं॰ [सं०] (1) जहाज़ के पात्र में लंबाई के बल में बहुत बड़े बड़े गर्वयों के काम का होता है। दे. लगा हुआ बड़ा शहतीर । आमा । (२) जहाज़ का "मीणा"। मस्तूल । (लश.)। बीनना-क्रि० स० [सं० विनयन ] (9) छोटी छोटी चीज़ों को बीमा-संज्ञा पुं० [फा० बीम भय ] (1) किसी प्रकार की ६२०