पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/१७४

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विलाई २४६७ विल्ली ख़रीद सकती हो।--राधाकृष्णदास । चौकी सी होती है जिस पर उभरे हुए छेद बने होते हैं। बिलाई-संज्ञा स्त्री० [हिं० बिल्ली ] (1) बिल्ली। बिलारी। उ० उभारों से रगड़ खाकर कटे हुए कतरे छेदों के नीचे गिरते नवनि नीच के अति दुखदाई । जिमि अंकुश धनु उरग जाते हैं। . बिलाई। तुलसी। (२) कुएँ में गिरा हुआ बरतन या बिलोकना-कि० स० [सं० विलोकन ] (१) देखना । (२) जाँच रस्सी आदि निकालने का काँटा जो प्राय: लोहे का बनता करना । परीक्षा करना। है। इसके अगले भाग में बहुत सी अंकुसियां लगी रहती हैं विलोकनि*-संज्ञा स्त्री० [सं० विलोकन ] (1) देखने की फिया । जिनमें चीज़ फँसकर निकल आती है। (३) लोहे वा लकड़ी | चितवन । (२) दृष्टिपात । कटाक्ष । की एक सिटकनी जो किवादों में उनको बंद करने के लिए बिलोड़ना-क्रि० स० [विलोइन ] (१) मथना । पानी की सी लगाई जाती है। पटेला। चातु को चारों ओर से खूब हिलाना । (२) अस्तव्यस्त कर बिलाईकंद-संज्ञा पुं० दे. “विदारीकंद"। देना । गहुबड करना। बिलाना-क्रि० अ० [सं० विलयन ] (1) नष्ट होना । विलीन बिलोन-वि० [सं० वि+लावण्य ] बिना लावण्य का। कुरूप । होना । न रह जाना । उ.-कबहुँ प्रवल चल मारुत जहँ बदसूरत । उ०-लोन बिलोन तहाँ को कहै। लोनी सोर तहँ मेघ विलाहिं।-तुलसी। (२) छिप जाना । अदृश्य कंत जेहि चहै । —जायसी। हो जाना। गायब होता। उ.-जेवत अधिक सुबासिक वि० [सं० वि+रवण ] अलोना । बिना नमक का । मुँह में परत बिलाय । सहस स्वाद सो पात्र एक कौर जो विलोना-क्रि० स० [सं० बिलोइन ] (1) मथना । किसी वस्तु खाय । —जायसी। विशेषतः पानी की सी वस्तु को स्वथ हिलाना । जैसे, बिलार-संज्ञा पुं० [सं० विशाल ] [भी बिलारी ] बिल्ला। दही बिलोना (घी निकालने के लिए)। (२) ढालना। मार्जार । गिराना । उ०—तुलसी मदोत्र रोइ रोइ के बिलोवै आँसु बिलारी-संक्षा स्त्री० [हिं० विलार ] बिल्ली । मंजारी। बार बार कह्यो में पुकारि दादीजार सों। तुलसी। बिलारीकंद-संक्षा पुं० [सं० विदाराकंद ] एक प्रकार का कंद। बिलोरना-क्रि० स० [सं० विलाइन ] (1) दे. "बिलोड़ना"। दे. "बिदारीकंद"। (२) छिन्न भित्र कर डालना। अस्तव्यस्त कर डालना। बिलाव-संज्ञा पुं० दे० "बिलार"। उ.---घोरि डारी केसरि सुबेसरि बिलोरि ढारी चूनरि बिलावर-संज्ञा पुं० दे. “बिल्लौर"। चुवाति रंगरैनी ज्यों--पद्माकर । बिलावल-संज्ञा पुं० [सं०] एक राग जो केदारा और कल्याण के बिलोलना-क्रि० स० [सं० बिलोलन ] डोलना । हिलना । योग से बनता है। इसे दीपक राग का पुत्र मानते हैं। उ०—डोलति अडोल मन खोलति न बोलति कलोलति यह सवेरे के समय गाया जाता है। बिलोकति न तोलति असति सी।-देव । बिलासना-क्रि० स० [सं० विलसन ] भोग करना। भोगना। बिलोवना-क्रि० स० दे. “बिलोना"। बरतना । उ-चित्त सुनाल के अन लसे लहु कंठव कष्ट · बिलौर-संक्षा पुं० दे० "बिल्लौर"। बिलास बिलाये।-केशव । बिल्कुल-क्रि० वि० दे० “बिलकुल"। बिलिबी-संशा स्त्री० [ मलाया ०, बलिया ] एक प्रकार की कमरख : विल्मुक्ता-वि० [अ० ] जो घट बढ़ न सके । जैसे, लगान- का फल या उसका पेड़ । बिल्मुक्ता । विलियर्ड-संजा पुं० [0] एक अँगरेज़ी खेल जो गोल अंटों संज्ञा पुं० (१) वह पट्टा जिसकी शर्तों के अनुसार लगान और लंबी लंबी छड़ियों द्वारा बदी मेज़ पर खेला जाता है। घटाया बढ़ाया न जा सके। (२) वह लगान जो घटाया यौ०-विलियई रूम वह घर जहाँ यह खेल खेला जाता । बढ़ाया न जा सके। बिल्ला-संवा पुं० [सं० विडाल ] [ श्री. विली] मार्जार । दे. विलिया-संशा स्त्री० [हिं० बला कीरा ] कटोरी। "बिल्ली"। संज्ञा स्त्री० [देश॰] गाय बैल के गले की एक बीमारी। संज्ञा पुं० [सं० पटल, हि० पला, बला ] चपरास की तरह की बिलूर-संशा पुं० दे० "बिल्लौर"। पीतल की पतली पट्टी जिसे पहचान के लिए विशेष विशेष बिलैया -संज्ञा स्त्री० [हिं० बिल्ली ] (1) बिल्ली। (२) पेठा, कद्, प्रकार के काम करनेवाले (जैसे, चपरासी, कुली, लैसंखदार, मूली आदि के महीन महीन होरे से लच्छे काटने का एक खांचेवाले) बाँह पर या गले में पहने रहते हैं। औज़ार । कवू कश। बिल्ली-संज्ञा स्त्री० [सं० विडाल, हिं० बिलार ] (1) केयल पंजों के विशेष—यह वास्तव में लोहे की एक (चारपायों की)! बल चलनेवाले पूरा तलवा ज़मीन पर न रखनेवाले मांसा-