पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/१७३

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

चिलगाना बिला क्रि० प्रक-मानना। पल में ।—माकर । (३) किसी के प्रेमपाश में फँस बिलगाना-कि० अ० [हिं० बिलग+भाना (प्रत्य०) ] अलग होना। कर कहीं रुक रहना। उ.-माधव बिलमि बिदेस रहे। पृथक होना । दूर होना उ.-निज निज सेन सहित बिलगाने ।-तुलसी। बिलमाना-कि० स० [हिं० बिलमना का सक० रूप ] रोक रखना। क्रि० स० (१) अन्लग करना । पृथक करना । दूर करना । ठहरा रखना। अटका रखना। उ०--(क) कहेसि को उ.--(क) ज्यो सर्कश मिले मिकता महँ बल ते न कोउ मोहि बातन बिलमावा । हत्या केर न तोहि डेरावा ।- बिलगावै।-तुलप्पी । (ख) भलेड पोच सब विधि उपजाये। जायसी । (ख) ठाने अठान जेठानिन ह सब लोगन हू गनि गुन दोष वेद बिलगाये ।-तुलसी । (२) छाँटना । अकलंक लगाये। सासु लरी गहि गाँस खरी ननदीन के चुनना। बोल न जात गनाये । एती सही जिनके लिए मैं सखि ते बिलगी-संज्ञा पुं. देश. ] एक प्रकार का संकर राग । कहि कोने कहाँ बिलमाये । आये गरे लगि प्रान पै कैसेहूं बिलगु-संशा पं० दे० “बिलग" । उ०-स्वामिनि अभिनय कान्हर आजु अजौं नहिं आये। छमय हमारी । बिलगु न मानब जानि गवारी। तुलसी। , बिललाना -क्रि० अ० [सं० विलाप अथवा अनु०] (1) विलम्ब बिलच्छन-वि० दे० "विलक्षण"। कर रोना। विलाप करना । उ०-औंधाई सीपी सुलखि बिलछना-कि० अ० [सं० लक्ष ] लक्ष करना । ताड़ना । बिरह बरी बिललात । बीचहि सूखि गुलाब गो छींटी हुई बिलटी-संज्ञा स्त्री. [ अंबिलेट ] रेल के द्वारा भेजे जानेवाले न गात ।—बिहारी । (२) व्याकुल होकर असंबद्ध, माल की वह रसीद जो रेलवे कंपनी में मिलती है। जिस बातें कहना। स्थान मे माल भेजा जाता है, उस स्थान पर यह रसीद बिलवाना-क्रि० स० [सं० विलय ] (१) किसी वस्तु को मिलती है। पीछे से यह रसीद उस व्यक्ति के पास भेज खो देना । नष्ट करना । बरबाद करना । (२) किसी वस्तु दी जाती है, जिग्पके नाम माल भेजा जाता है। निर्दिष्ट : को दूसरे के द्वारा नष्ट कराना । बरबाद कराना । दूसरे को स्थान पर याही रसीद दिग्वलाने पर माल मिलता है। बिलाने में प्रवृत्त करना। इसमें माल का विवरण, तौल, महसूल आदि लिखा संयो० कि०-डालना-देना। रहता है। (३) ऐसे स्थान में रखवाना या रखना जहाँ कोई देख बिलनी-मंशा स्त्री० [हिं० बिल ] काली भौरी जो दीवारों या न सके। छिपाना अथवा छिपाने के काम में दूसरे को किवाकी पर अपने रहने के लिए मिट्टी की बॉबी बनाती प्रवृत्त करना। है। यही वह भृगी है जिसके विषय में यह प्रसिद्ध है कि . संयां कि०-देना। वह किम्मी कीड़े को पका कर भृगी ही बना डालती बिलसना-क्रि० अ० [सं० विलसन ] विशेष रूप से शोभा है। भ्रमरी। देना । बहुत भला जान पड़ना । उ०-(क) त्यो पदमाकर संशा to ऑग्व की पलक पर होनेवाली एक छोटी बोले हसे हुलसै विलसै मुखचंद्र उज्यारी। -माकर । फुसी । गुहौजनी। (ख) विलसत बेतस बनज बिकासे ।-तुलसी। बिलपना-मि० अ० [सं० विलाप ] विलाप करना। रोना।। त्रि० स० भोग करना। भोगना । उ०—(क) सजन बिलफेल-क्रि. वि. अ.] इस समय । अभी । संप्रति । सीव विभीषन भो अजहूँ दिलसै बर बंधुबधू जो। तुलसी। वर्तमान अवस्था में। जैसे,—बिलाल १००) लेकर काम (ख) इंद्रासन बैठे सुख बिलसत दूर किये भुवभार ।-सूर। चलाइए; फिर और ले लीजिएगा। बिलसाना+-क्रि० स० [हिं० बिलसना ] (1) भोग करना । बिलबिल्टाना-क्रि० अ० [ अनु० ] (1) छोटे छोटे कीड़ों का बरतना । काम में लाना । उ.- दान देय खाही बिल- इधर उधर रंगना । जैसे,—उसके घाव में कीड़े बिल साही । ता को धन मुनी यश गाही।-सघल । (२) दूसरे बिलाते हैं। (२) व्याकुल होकर बकना । असंबद्ध प्रलाप को बिलसने में प्रवृत्त करना । दूसरे से भोगवाना। करना । (३) कष्ट के कारण व्याकुल होकर रोना चिल्लाना| बिलरता-संश पुं० दे० "बालिश्त"। (४) भूग्व से बेचैन हो उठना । बिलहरा-संशा पुं० [हिं० दल ? ] बाँस की तीलियों या खस आदि बिलम-संशा स्त्री० दे० "बिलंब"। का बना हुआ एक प्रकार का संपुट जिसमें पान के लगे बिलमना-क्रि० अ० [सं० विलंब] (१) विलंब करना। देर हुए बीड़े रखे जाते हैं। करना । (२) ठहर जाना । रुकना। 30-बच में बिलमै : बिला-अन्य० [अ० ] पिना । बौर । उ०-आज अपनी ज़रा बिराजे विष्णुथल में। सुगंगा ज के जल में अन्हाए एक सी मेहर की निगाह से इस बादशाहत को बिला कीमत