पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/१६२

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बिच विछाना संशा पुं० गणेश । गजानन । उ.--विधनहरन मंगलकरन जानवर जो प्राय: गरम देशों में अँधेरे स्थानों में, जैसे सदा रहहु अनुकूल। लकड़ियों या पत्थरों के नीचे, विलों में, रहता है । इसके बिच*-क्रि० वि० दे० "बीच"। आठ पैर और आगे की ओर दो सूर होते हैं। इनमें ये बिचकाना-क्रि० अ० [ अनु० ] (1) किसी को चिढ़ाने के लिये हर एक सूद आगे की ओर दो भागों में, चिमटी की तरह (मुंह) टेढ़ा करना। बिराना। (मुँह) चिढ़ाना। (२) विभक्त होता है। इन्हीं गुंडों से यह अपने शिकारों को (मुंह) को, (स्वाद बिगड़ने के कारण) टेढ़ा करना । (मुँह) पकड़ता है। इसका पेट लंबा और गाव-दुमा होता है बनाना। जिसके बाद एक और दूसरा अंग होता है जो दुम को बिचच्छन-वि० दे० "विचक्षण" । तरह बराबर पतला होता जाता है। यह अंग मुदकर बिचरना-क्रि० अ० [सं० विचरण ] (1) इधर उधर घूमना । जानवर की पीठ पर भी आ जाता है । इसके अतिम भाग चलना फिरना । (२) पर्यटन करना। यात्रा करना। में एक ज़हरीला डफ होता है जिसमे वह अपने शिकार सफर करना। को मार डालता है। अपने हानि पहुँचानेवालों को भी बिचलना-क्रि० अ० [सं० विचलन ] (1) विचलित होना । इधर यह इसी डंक से मारता है जिसके कारण सारे शरीर में असह्य उधर हटना । (२) हिम्मत हारना । (३) कहकर इनकार वेदना और जलन होती है जो कई कई दिन तक थोड़ी कर जाना । मुकरना। बहुत बनी रहती है। कहीं कहीं 4-10 इंच तक के विरुद्ध बिचला-वि० [हिं० बीच+ला (प्रत्य॰)] [ी विचली ] जो बीच भी पाए जाते हैं जिनके डंक मारने से आदमी मर भी जाते में हो। बीचवाला । बीच का । जैसे, बिचला लड़का, हैं। इसके संबंध में लोगों में अनेक प्रकार की किंवदंतियाँ बिचली किताब। प्रसिद्ध है। कुछ लोग कहते है कि यदि विचारों और बिचलाना*-वि० स० । सं० विचलन ] (1) चलायमान करना। से आग के बीच में फंस जाय तो वह जलना नहीं पसंद विचलित करना। डिगाना । (२) हिला देना । (३) तितर करेगा; बल्कि जलने से पहले अपने डंक से ही अपने आपको बितर करना। मार डालेगा। कुछ लोग कहते हैं कि इसके शरीर में से बिचवान, बिचवानी-संज्ञा पुं० [हि, बाच+वान ] बीच में पड़न किपी प्रकार निकाला हुआ अर्क इसके डंक के विष फो वाला । बीच-बचाव करनेवाला । मध्यस्थ। उ.-बिनय करें अच्छा कर सकता है। और इसीलिये लोग जीते विच्छ को पंडित विचवाना । काहे नहिं जेवहि जजमाना ।-जायगी। पकड़ कर तेल आदि में डाल कर छोड़ देते हैं और बिच्छ्र बिचारना-कि० अ० [सा विचार+ना (प्रत्य॰)1 (1) विचार के मर जाने पर उस तेल में डंक के विप को दूर करने का करना । सोचना । गौर करना । (२) पूछना। प्रश्न करना। गुण मानने लगते हैं। पर इन सब किंवदंतियों में कोई (इस अर्थ में इसका प्रयोग प्राय: "प्रश्न" शब्द के साथ पार नहीं है। (२) एक प्रकार की घास जिसके शरीर में लू होता है।) जाने से बिच्छू के काटने की सी जलन होती है। (३) बिचारा-वि० दे० "बेधारा"। काकतुंटी का पौधा या उसका फल । (क०) बिचारी संज्ञा पुं० [सं० विचारिन् ] विचार करनेवाला । उ०- बिच्छप-संशा पुं० दे. "विक्षेप"। मारग छाँदि कुमारग सों स्त बुधि विपरीति विचारी बिछना-कि० अ० [सं० विस्तरण ] (1) बिछाना का अकर्मक रूप। हो।—सूर । (विस्तर आदि का) विकाया जाना । फैलाया जाना । (२) बिचाल*-संज्ञा पुं॰ [सं० विचाल ] (1) अलग करना । (२) किमी पदार्थ का ज़मीन पर विग्वेरा जाना। छितराया जाना। अंतर । फर्क। (३) (मार पीट कर) ज़मीन पर लिटाया या गिराया जाना । बिचेत*वि० [सं० विचेतस् ] (१) मूर्छित । बेहोश । अचेत। संयोकि०-जाना। (२) बदहवास । बिछलना-क्रि० अ० दे. "फिसलना"। बिच्छित्ति-संज्ञा स्त्री० [सं०] श्रृंगाररस के १३ हावों में से एक बिछलाना-कि. अ. दे. "फिसलना"। जिसमें किंचित् श्रृंगार से ही पुरुष को मोहित कर लिया बिछवाना-कि० स० [हिं० बिछाना का प्रे० ] बिछाने का काम जाना वर्णन किया जाता है। उ०-येंदी भाल तमोल दूसरे से कराना। दूसरे को बिछाने में प्रवृत्त करना। मुख सीस सिलसिले बार । गाँजे राजै खरी साजे सहज , बिछाना-संज्ञा पुं० दे० "बिछौना"। सिंगार। बिहारी। बिछाना-क्रि० स० [सं० विस्तरण ] (1) (विस्तर या कपड़े आदि बिच्छी-संज्ञा स्त्री० दे० "बिछू"। को) ज़मीन पर उतनी दूर तक फैलाना जितनी दूर तक फैल बिच्छ-संज्ञा पुं० [सं० वृश्चिक ] (1) एक प्रसिद्ध छोटा ज़हरीला सके । जैसे, बिछौना विछाना, दरी बिछाना । (२) किसी