पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/१६०

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विखोंडा २४५३ विगाड़ना को इधर उधर फैलाना । तितर बितर करना । छितराना। संयो० कि०-जाना। छिटकाना । छींटना। | बिगड़ेदिल-संज्ञा पुं० [हिं० बिगड़ना+फा० दिल ] (१) यह जो संयो० कि०-डालना ।—देना । बात बान में विगद वड़ा हो। हर बात में लड़ने झगड़ने- बिखोड़ा-संज्ञा पुं० [हिं० बिख-विप ] सारे भारत में पाई जाने वाला । (२) वह जो बिगड़ा हुआ हो। कुमार्ग पर वाली ज्वार की जाति की एक प्रकार की बबी घास जो! चलनेवाला। शारहों महीने हरी रहती है। यह जब अच्छी तरह बढ़ जाती बिगडैल-वि० [हिं० विगटना+ोल (प्रत्य०) या बिगड़ेदिल ] (1) है, तब चारे के लिये बहुत उपयोगी होती है। पर आर भिक जो बात बात में बिगड़ने लगता हो। हर बात में क्रोध अवस्था में इसका प्रभाव खानेवाले पशुओं पर बहुत बुरा करनेवाला । जो स्वभाव से क्रोधी हो।(२) हठी। जिद्दी। और प्रायः विप के समान होता है। इसमें से एक प्रकार (३) जो बिगड़ा हुआ हो । कुमार्ग पर चलनेवाला । पुरे के दाने भी निकलते हैं जिन्हें गरीब लोग यों ही, पीस रास्ते पर चलनेवाला । खराय चाल-चलनवाला । कर अथवा बाजरे आदि के आटे के साथ मिलाकर खाते ! विगरा-कि० वि० [अ० बगैर | दिनारहित । बगैर । उ०- है। इसकी कहीं खेती नहीं होती, यह खेतों की मेड़ों पर तुमहि सुमिरि सब काज, मिहि होन सुकबीन के। अथवा जलाशयों के आस पास आपसे आप होती है। रचत कछुक रघुराज, बिघन घिगर पूरण करहु । रघु- कालामुच्छ । विग-संज्ञा पुं० दे० "बीग"। बिगरना-कि० अ० दे० "बिगदना"। उ.---बिगरत मन बिगड़ना-कि० अ० [सं० विकृत ] (1) किसी पदार्थ के गुण संन्यास लेन जल नावत आम घरो सो।तुलसी। था रूप आदि में ऐसा विकार होना जिससे उसकी उपयो-बिगगाल, बिगरायल-वि०(१) दे. “विगईल (२)"उ.- गिता घट जाय या नष्ट हो जाय । असली रूप या गुण का हो तो गिरायल और को बिगरो न बिगरिये।-तुलसी । नष्ट हो जाना । खराब हो जाना । जैसे, मशीन बिगदना, (२) दे. "धिगदल (३)"। उ०-कुटिल कुरूपिनी उदास अधार विगहना, दूध बिगड़ना, काम बिगबना । उ.---- एते पर बैठी बेप्या निगराइल बिलासिन के पास है। बिगरत मन सन्यास लेत जल नावत आम घरोसो।- तुलसी । (२) किसी पदार्थ के बनते या गढ़े जाते समय । बिगसना*-क्रि० अ० दे. "विकसना"। उसमें कोई ऐसा विकार होना जिससे वह ठीक या पूरा न: बिगसाना-कि. म. दे. "यिकमाना"। उतरे। जैसे,-(क) यह तस्वीर अब तक तो ठीक बन रही थी, कि० अ० दे० "विकसना"। उ०—सियमुग्व सरन्द पर अब बिगड़ चली है। (ख) देखते हैं कि तुम्हारे ही कमल जिमि किमि कहि जाय। निमि मलीन वह निसि- कारण यह बनती हुई बात बिगड़ रही है । (३) दुरवस्था! दिन यह विगसाय । -तुलगी। को प्राप्त होना । खराब दशा में आना । अच्छा न रह बिगहा-संवा ० ० "बीघा"। जाना । जैसे,—(क) किसी ज़माने में इनकी हालत बहुत बिगही -संशा स्त्री० [ देश» ] क्यारी । बरही । अच्छी थी, पर आजकल ये विगढ़ गए हैं। (ख) बिगड़े बिगाह-संज्ञा पुं० [हिं० विगढ़ना ] (1) बिगड़ने की क्रिया या घर की बात जाने दो। (५) नीति-पथ से भ्रष्ट होना । भाव । (२) खराबी। धुराई। दोष । (३) वैमनस्य । बद-चलन होना । चाल चलन का खराब होना । जैसे, द्वेष । झगड़ा । लड़ाई। आजकल उनका लड़का बिगड़ रहा है, पर वे कुछ ध्यान | बिगाड़ना-क्रि० म० [सं० विकार ] (१) किसी वस्तु के स्वाभा- ही नहीं देते । (५) कुन्न होना । .गुस्से में आकर डॉट उपट विक गुण या रूप को नष्ट कर देना । किपी पदार्थ में ऐसा करना । अप्रसनता प्रकट करना । जैसे,—वे अपने नौकरों : विकार उत्पन्न करना जिससे उसकी उपयोगिता नष्ट पर बहुत बिगड़ते हैं। (६) विरोधी होना । विद्रोह करना। हो जाय । जैसे, फल बिगाड़ना, रसोई विगामना । जैसे,—सारी प्रजा बिगड़ खड़ी हुई। (७) ( पशुओं आदि (२) किसी पदार्थ को बनाते समय, या कोई काम करते का) अपने स्वामी या रक्षक की आशा या अधिकार से समय उसमें कोई ऐसा विकार उत्पन्न कर देना जिसमे बाहर हो जाना । जैसे, घोड़ा बिगड़ना। हाथी बिगवना । वह ठीक या पूरा न उतरे । जैसे,—इतना सब कुछ करके (4) परस्पर विरोध या वैमनस्य होना। लड़ाई मगहा होना।। भी अंत में तुमने ज़रा से के लिये बात बिगाड़ दी। (३) खटकना । जैसे,—आजकल उन दोनों में बिगड़ी है। (५) दुरवस्था को प्राप्त कराना । पुरी दशा में लाना । जैसे,- व्यर्थ व्यय होना । बेकायदा खर्च होना । जैसे,—आज बैठे दुर्व्यसन ही युवकों को बिगाड़ते हैं। (१) नीति-पथ बैठाए ५ बिगड़ गए। से भ्रष्ट करना । कुमार्ग में लगाना । जैसे,-महाजनों ६१४