पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/१४९

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बारीका २४४२ बाल हो। महीन। पतला । जैसे, बारीक तार या तागा, | मात्रा निश्चित नहीं है। देश देश में प्रयोजनानुसार अंतर बारीक कपड़ा । (२) बहुत ही छोटा। सूक्ष्म । जैये, रहता है पर साधारण रीति से बारूद बनाने में प्रति बारीक अक्षर । (३) जिसके अणु बहुत ही छोटे या सैकड़े ७५ से ७८ अंश तक शोरा, १० घा १२ गंधक और सूक्ष्म हों। जैसे,—(क) बारीक आटा । (ख) इस दवा को ! १२ से १५ तक कोयला पड़ता है। ये तीनों पदार्थ अच्छी खूब बारीक पीसकर लाओ। (४) जिसकी रचना में तरह महीन पीस छानकर एक में मिलाए जाते हैं। फिर दृष्टि की सूक्ष्मता और कला की निपुणता प्रकट हो । जैसे,-: तारपीन का तेल वा स्पिरिट डालकर चूर्ण को भली भांति उस मंदिर में पत्थर पर बहुत बारीक काम बना है। (५)। मलना पड़ता है। इसके पीछे उसे धूप से सुखाते हैं। जिसे समझने के लिये सूक्ष्म बुद्धि आवश्यक हो। जो तमाशे की बारूद में कोयले की मात्रा अधिक डाली जाती बिना अच्छी तरह ध्यान से सोचे समझ में न आए। जैसे, है। कभी कभी लोहधुन भी फूल अकळे बँधने के लिये वारीक बात। डालते हैं। भारतवर्ष में अब बारूद वंदूक के काम की बारीका-संज्ञा पुं० [फा. बारीक ] बालों की वह महीन कलम ! कम बनती है। प्रायः तमाशे की ही बारूद बनाई जिससे चित्रकारी में पतली पतली रेखाएँ खींची जाती हैं। जाती है। बारीकी-शा स्त्री० [ 10 ] (1) महीनपन । पतलापन । (२) । मुहा०-गोली बारूद-(१) लड़ाई की सामग्री । युद्ध का सामान। साधारण दृष्टि से न समझ में आनेवाला गुण या विशेषता। (२) सामग्री । आयोजन । खुबी । जैसे, मज़मून की यारी की। बारुदखाना संज्ञा पुं० [हिं० बारूद-+-फा० खाना ] वह स्थान जहाँ मुहा०-बारीकी निकालना ऐसी बात निकालना जी साधारण गोला बारूद आदि लड़ाई का सामान रहता है। दृष्टि से देखने पर समझ में न आ सके । सूक्ष्म उद्भावना | बारूदानी-संज्ञा स्त्री० दे. "बालवानी"। करना। बारे-कि० वि० [फा०] अंत को। वारीखाना-संज्ञा पुं० [हिं० बरी+फा खाना ] नील के कार- ' बारे में अन्य [ फा बारः+हिं० में ] प्रसंग में। विषय में। खाने में वह स्थान जहाँ नील की बरी या टिकिया सुखाई: संबंध में । जैसे, मैं इस बारे में कुछ नहीं जानता। जाती है। बारोमीटर-संज्ञा पुं० दे० "बैरोमीटर"। वारीस*-संज्ञा पुं० दे० "वारीश" । बालंगा-संशा पुं० [फा०] जीरे की तरह का काले रंग का एक बारुणी, बारुनी--संज्ञा स्त्री० दे० "वारुणी"। खोज जो बहुत पुष्टिकर माना जाता और औपध के काम बारू*-संश पुं० दे. "बालू"। उ०-बारू भीत बनाई रचि में आता है। इसे पानी में डालने से बहुत लासा निकलता पचि रहत नहीं दिन चार । तैसे ही यहि सुख माया के. है। तुम बालंगू। सूतमलंगा। उरझयो कहा गवार ?---तेगबहादुर । बाल-संज्ञा पुं० [सं०] [स्त्री० बाला ] (१) बालक । लड़का। बारूत *-संज्ञा स्त्री० दे० "बारूद" । वह जो सथाना न हो। वह जो जवान न हुआ हो। बारूद-संज्ञा स्त्री० [ तु० बारूत ] एक प्रकार का चूर्ण या बुकनी विशेष-मनुष्य जन्मकाल से लेकर प्रायः १६ वर्ष की अवस्था जो गंधक, शोरे और कोयले को एक में पीसकर बनती है तक बाल या बालक कहा जाता है। और आग पाकर भक से उब जाती है। तोप बंदूक इसी (२) वह जिसको समझ न हो । नासमझ आदमी । (३) से चलती है। दारू। फिसी पशु का बच्चा। (५) सुगंधवाला नामक गंधद्रव्य । विशेष-ऐसा पता चलता है कि इसका प्रयोग भारतवर्ष संज्ञा स्त्री० दे. "बाला"। और चीन में बंदूक आदि अग्न्यन और ज़माशे में बहुत वि० (1) जो सयाना न हो। जो पूरी याद को न पहुँचा पुराने ज़माने से किया जाता था । अशोक के शिलालेखों हो। (२) जिसे उगे या निकले हुए थोड़ी ही देर हुई हो। में अग्गिबंध वा अग्निस्कंध शब्द तमाशे (आतशबाजी) : जैसे, बालरवि । के लिये आया है। पर इस बात का पता आज तक संज्ञा पुं० [सं० ] सूत की सी वस्तु जो दूध पिलानेवाले विद्वानों को नहीं लगा कि सब से पहले इसका आविष्कार जतुओं के चमड़े के ऊपर निकली रहती है और जो अधि. कहाँ कब और किसने किया है। इसका प्रचार युरोप में कतर जंतुओं में इतनी अधिक होती है कि उनका चमड़ा चौदहवीं शताब्दी में मूर (अरब) लोगों ने किया और सोल ढका रहता है। लोम और केश । हवीं शताब्दी तक इसका प्रयोग केवल बंदूकों को चलाने विशेष-नाखन, सींग, पर आदि के ही समान बाल भी में होता रहा। आज कल अनेक प्रकार की बारूदे मोटी | कड़े पड़े हुए स्वफ के विकार ही हैं। उनमें न तो संवेदन- महीन, सम विषम रवे की बनती है। संयोजक द्रव्यों की सूत्र होते हैं, न रक्तवाहिनी नालिया। इसीसे ऊपर से बाल