पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/१२८

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२४२१ बाधा तथा खेती के औज़ार आदि बनाने के काम में आती है। की खोरि । ऐसा जियरा ना मिला जो लेइ फटकि पछोरि । इसकी छाल से चमड़ा भी सिझाया जाता है। यह आसाम -कबीर। और मध्य-प्रदेश में पहुत अधिकता से होता है। इसे धौरा क्रि० अ० [सं० वा-बोलना ] कहना । बोलना । और बांदार भी कहते हैं। बागवान-संज्ञा पुं० [फा०] वह जो बाग की रखवाली, प्रबंध वाकसा-संज्ञा पुं० दे० "यक्स" । और सजावट आदि करता हो। माली। बाकसी-क्रि. अ० [ अंक बैकमेल ] जहाज़ के पाल को एक ओर | बागवानी-संज्ञा स्त्री० [फा०] (3) बाग़बान का पद । माली से दूसरी ओर करने का काम ।। की जगह । (२) बागवान का काम । माली का काम । बाका-संज्ञा स्त्री० [सं० वाक ] वाणी । बोलने की शक्ति। बागर-संज्ञा पुं॰ [देश० ] (1) नदी किनारे की वह ऊँची भूमि बा-वि० [अ० ] जो बच रहा हो । अवशिष्ट । शेष । उ० जहाँ तक नदी का पानी कभी पहुँचता ही नहीं। उ.- मन धन हती विसात जो सो सोहि दियो बताय। बाकी अविगत गति जानी न परै । . . . . . . . . . . 'बागर ते बाकी बिरह की प्रीतम भरी न जाय ।---रसनिधि । सागर करि राखे चहुँ दिसि नीर भरै। पाहन बीच कमल क्रि० प्र०-निकलना ।-बचना ।-रहना। बिकसाही जल में अगिनि जरै।-सूर । संज्ञा स्त्री० (१) गणित में वह रीति जिसके अनुसार किसी (२) दे० "धाँगुर"। एक संख्या या मान को किसी दूसरी संख्या या मान में | बागल*-संज्ञा पुं० [सं० बक ] बगलायक । उ०—(क) बिन से घटाते हैं। दो संग्याओं या मानों का अंतर निकालने विद्या सों नर सोहत यों। बहु हेयन में एक बागल ज्यों। की रीति । (२) वह संख्या जो एक संख्या को दूसरी -रघुनाथदास । (ख) जिन हरि की चोरी करी गए राम संख्या में से घटाने पर निकले। घटाने के पीछे बची हुई गुन भूलि । ते विधना बागल रचे रहे उरचमुख भूलि।- संख्या या मान! कबीर। क्रि० प्र०—निकालना। बागवान-संज्ञा पुं० दे० "बागबान"। बाकी-अव्य० [अ० बाकी ] लेकिन । मगर । परंतु। पर ।। ( बोलचाल ) उ०—रन-धन हतो बिसात जो सो तोहि बागा-संज्ञा पुं० [फा० बाग ] अंगे की तरह का पुराने समय दियो बताय। बाकी बाकी विरह की प्रीतम भरी न जाय । का एक पहनावा जो घुटनों तक लगा होता है और जिस —रसनिधि । में छाती पर तीन बंद लगते हैं। जामा । संशा स्त्री० [देश॰] एक प्रकार का धान । उ०—पाही सो बागी-संशा पुं० [अ० ] वह जो प्रचलित शासन-प्रणाली अथवा सीधी लाची बाकी। सुभटी बगरी घरहन हाकी।- राज्य के विरुद्ध विद्रोह करे। विद्रोही । राजद्रोही। जायसी। | बागीचा संज्ञा पुं० [फा०] छोटा बाग । उपवन । उद्यान । बाकंभा-संज्ञा पुं० [हिं० कुंभी ] कुंभी के फूल का सुखाया हुआ बागु-संज्ञा पुं॰ [देश॰] पक्षी या मृग आदि फंसाने का जाल केसर जो खाँसी और सर्दी में दवा की तरह दिया जाता है। जिसे वागौर भी कहते हैं। बाखरि -संज्ञा स्त्री० दे० "बखरी"। उ०-जानति हौं गोरसबागेसरी-संज्ञा स्त्री० [सं० वागीश्वरी ] (१) सरस्वती । (२) को लेको वाही बावरि मांझ-सूर । संपूर्ण जाति की एक रागिनी जो किसी के मत से माल.. बाग-संज्ञा पुं० [अ० j वह स्थान जहाँ शोभा और मनोविनोद कोश राग की स्त्री और किसी के मत से भैरव, केदार, आदि के लिये अनेक प्रकार के छोटे बड़े पेड़-पौधे लगाए गौरी और देवगिरी आदि कई रोगों तथा रागिनियों के मेल गए हों। उद्यान । उपवन । बाटिका । से बनी हुई संकर रागिनी है। संज्ञा स्त्री० [सं० वल्गा ] लगाम । बाघंबर-संज्ञा पुं० [सं० व्याघ्रांबर ] (1) बाघ की खाल जिग्ने मुहा०-बाग मोदना-किसी और प्रवृत्त करना । किसी और लोग विशेषतः साधु, स्यागी और अमीर, बिछाने आदि के धुमाना। उ०- महमूद ग़ज़नवी ने अपने लश्कर की बाग काम में लाते हैं। (२) एक प्रकार का रोएँदार के बल जो हिंदुस्तान की तरफ़ मोदी। शिवप्रसाद । दूर से देखने पर बाघ की खाल के समान जान पड़ता है। बागडोर-संज्ञा स्त्री० [हिं० बाग+डोर रस्सी ] (1) वह रप्सी : बाघ-संज्ञा पुं० [सं० व्याघ्र ] शेर नाम का प्रसिद्ध हिंसक जंतु । जो घोड़े की लगाम में बाँधी जाती है और जिसे पकाकर विशेष-दे. "शेर"। साईस लोग उसे टहलाते हैं। (२) लगाम । बाघा-संशा पुं० [हिं० बाघ ] (1) चौपायों का एक रोग। इसमें बागना-कि० अ० [ सं० बक-चलना ] चलना । फिरना । पशुओं का पेट फूल जाप्ता है और साँस रुकने से वे मर घूमना । हलना । उ०-देश देश हम बागिया ग्राम प्राम | जाते हैं। (२) कबूतरों की एक जाति का नाम । ६०६