पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/१११

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बसनि २४०४ बसाना निवास करना । रहना । जैसे,—इस गाँव में कितने मनुष्य बसर-संज्ञा पुं० [फा० ] गुज़र । निर्वाह । । कालक्षेप । असते हैं। उ.-(क) जो खोदाय मसजिद में बसत है कि० प्र०—करना ।—होना । और देख केहि केरा ?--कबीर । (ख) मोहि खोजत पट । बसह-संज्ञा पुं० [सं० वृषभ, प्रा. बमह ] बैल । उ०-(क) कर मास याति गए तबहुँ न आयो अंत । अजयनिता के नयन त्रिशूल, अरु डमरु बिराजा । पले बसह 'चदि बाजहि प्रान बिच तुमही श्याम अर्सत ।-सूर । (२) जनपूर्ण बाजा–तुलम्पी । (ग्व) अमरा शिव रवि शशि चतुरानन होना । प्राणियों या निवासियों से भरा पूरा होना । आयाद , हय गय बयह हंस मृग जावत । धर्मराज बनराज अनल होना । जैसे, गाँव बसना, शहर बसना । दिव शारद नारद शिव सुत भावत । -सूर । संयांकि०-जाना। । बसा-संज्ञा स्त्री० दे० "वसा"। मुहा०-घर बसना-कुटुंब महित सुग्यपूर्वक स्थिति होना ।। संज्ञा स्त्री० [देश॰ ?] (1) बरें। भिड़। वरटी । उ०- गृहस्था का बनना । उ०—नारद बचन न मैं परिहर हूँ। बसउ | बसा लंक बरनी जग मीनी । तेहि ते अधिक लंक वह भवन, उजरउ नहि उरहूँ। तुलसी । घर में बसना | खीनी ।—जायसी । (२) एक प्रकार की मछली। गृहस्थी में रहना । 30-सुनत बचन विहँसे रिषिय | बसात-संशा पुं० दे० "बिसात" । गिरिसंभव तव देह । नारद कर उपदेस सुनि कहहु बसेउ बसाना-क्रि० स० [हिं० बमना ] (1) बसने देना । बसने के को गेह।—तुलसी । लिये जगह देना । रहने को ठिकाना देना । जैसे,—राजा (३) टिकना । ठहरना । अवस्थान करना । डेरा करना।। ने उस नए गाँव में बहुत से बनिये बसाए। जैसे,—ये तो साधु हैं रात को कहीं बस रहे। संयोकि०-देना।-लेना। संयो० क्रि०-जाना।-रहना। (२) जनपूर्ण करना । आबाद करना । जैसे, गाँव बसाना, मुहा०—मन में घसना-ध्यान में बना रहना । स्मृति में रहना। शहर बसाना 1 उ०—(क) केहि सुकृती केहि घरी बसाए । उ.-पीस मुकुट कदि काछनी कर मुरली उर माल इहि धन्य पुण्यमय परम सुहाए। तुलसी । (ग्व) नाद ते तिय थानिक मो मन बसौ सदा बिहारीलाल।--विहारी। जैवरी ते साँप करि घाल घर श्रीथिका असावति बनन

  • (e) बैठना।

की।-केशव कि०अ० [हिं० बासना] बासा जाना । सुगंध से पूर्ण हो जाना। संयोक्रि०—देना ।--लेना। सुगंधित होना । महक से भर जाना । जैसे, तेल बस गया। मुहा०-घर बसाना--गृहस्थी जमाना । सुग्यपूर्वक कुटुंब के संयो० क्रि०-जाना। साथ रहने का ठिकाना करना । संज्ञा पुं० [सं० क्सन कपका ] (1) वह कपड़ा जिसमें कोई ! (३) टिकाना । ठहराना । स्थित करना । जैसे,—रात को वस्तु लपेटकर रखी जाय । वष्ठन । बेठन । (२) थैली। (३) इन मुसाफिरों को अपने यहाँ बसालो। वह लंबी जालीदार थैली जिसमें रुपया पैसा रखते हैं। मुहा०-मन में बसाना-चित्त में इस प्रकार जमाना कि बार (४) वह कोठी जिसमें रुपये का लेन देन होता हो। ध्यान में रहे । हृदय में अंकित कर लेना । उ०-व्यासदेव (५) । बासन बरतन । भाँदा।। जब शुकहि सुनायो। सुनि कै शुक सो हृदय बसायो।-सूर। बसनि -संज्ञा स्त्री० [हिं० बसना] रहन । निवास । वास।। *क्रि० अ० बसना । ठहरना । रहना । उ.-बालक उ.--बिदप ताको दरसावत जहँ जोगिन की बरनि । अजाने हठी और की न मानै बात बिना दिए मातु हाथ -देवस्वामी। भोजन न पाय है । माटी के बनाय गज बाजी रथ खेल यसवास-संशा पुं० [हिं० बसना+वास ) () निवास । रहना । . माते पालन बिछौने ताप नेक न बसाय है। हनुमान । उ०—(क) मथुरा में बसवास तुम्हारो।-सूर । (ख) जो क्रि० स० [सं० वेशन, पू० हि बैसाना ] (१) बिठाना । तुम पुहुप पराग छादि के करौ प्राम बसवास । तो हम (२) रखना । उ-बधुक सुमन पढ़-पंकज अंकुस प्रमुख सूर यही करि देव निमिख न छाँदै वास ।-सूर । (२) चिह्न बनि आयो । नूपुर जनु मुनिवर कलहंसनि रचे नीम रहन । रहने का ढंग । स्थिति । उ०-ऐसे बसवास ते देबाह बन्मायो।—तुलसी। उदास होय केशोदास केशव न भजै, कहि, काहे को : *क्रि० अ० [हिं० वश ] वश चलना । जोर चलना । काबू खगतु है।-केशव । (३) रहायस । रहने का औल या चलना अधिकार या शक्ति का काम देना। उ०--(क) घट में सुभीता। निवास योग्य परिस्थिति । ठिकाना । उ०-अब रहे सूस नहीं कर सोंगहा न जाय । मिला रहै औ ना मिलै बसवास नहीं लखौं यहि तुव ब्रज नगरी । आपु गयो यदि : तासों कहा बसाय ।-कवीर । (ख) काटिय तासु जीभ जो कदम धीर लै चितवत रहि सिगरी।-सूर । बसाई । सबन ऍदि नतु चलिय पराई । —तुलसी। (ग)