पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/१०९

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बलूची २४०२ बल्लारी इनमें हुई पुराने हैं। दे. "बलूच"। इस देश के प्राचीन बल्कस-संज्ञा पुं० [सं०] वह तलछट या मैल जो आसव इतिहास के संबंध में बहुत सी दंतकथाएँ प्रचलित हैं। उतारने में नीचे बैठ जाती है। गंधार और कांबोज के समान यह देश भी हिदुओं का : बल्कि-अन्य० [ 10 ] (1) अन्यथा । इसके विरूद्ध । प्रत्युत । ही था, इसमें तो कोई संदेह नहीं। ऐसी कथा है कि यहाँ जैसे,--उसे मैंने नहीं उभारा बस्कि मैंने तो बहुत रोका। पहले शिव नाम का कोई राजा था जिम्ने सिंधुदेशवालों . (२) ऐसा न होकर ऐसा हो तो और अच्छा । बेहतर के आक्रमण से अपनी रक्षा के लिये कुछ पहाड़ी लोगों है। जैसे,—कि तुम्हीं चले जाओ, यह सब बग्वेदा ही को बुलाया। अंत में पहादियों के सरदार कुंभर ने आकर दूर हो जाय। सिंधवालों को हटाया और क्रमशः उस हिंदू राजा को बल्य-वि० [सं०] बलकारक । भी अधिकारच्युत कर दिया । यह कुंभर कौन था, इसका संज्ञा पुं० शुक्र । वीर्य । पता नहीं। ईसा की आठवीं शताब्दी में अरबों का आक्र-बल्या-संज्ञा स्त्री० [सं०] (1) अतिबला । (२) अश्वगंधा । (३) मण इस देश पर हुआ और यहाँ के निवासी मुसलमान प्रसारिणी । (४) शिम्रीडी। चंगोनी । हुए । आजकल बलूच और पहुई दोनों सुनी शास्रा के ; बल्ल-संक्षा पुं० दे० "वल्ल"! मुसलमान है। बल्लकी-संज्ञा स्त्री० दे० "वल्लकी"। बलुची-संज्ञा पु. [ देश. ] बलूचिस्तान का निवासी। बल्लभ-संज्ञा पुं० दे० "वल्लभ"। चटूत-संशा पुं० [अ० ] माजूफल की जाति का एक पेड़ जो बल्लम-संज्ञा पुं० [सं० वल, हिं० बल्ला ] (1) छड़ । बल्ला । (२) शों में होता है। योरप में यह बहुत होता. सोंटा । डंडा । (३) वह सुनहरा या रुपहला डंडा जिसे प्रति- है। इसके अनेक भेद होते हैं जिनमें से कुछ हिमालय पर हार या चोबदार राजाओं के आगे आगे लेकर चलते हैं। भी, विशेषत: पूरबी भाग (सीकिम आदि) में होते हैं। यौ०----असा बल्लम । हिंदुस्तानी बलूत बंज, मारू या पीता-सुपारी के नाम से : (१) बरछा। भाला । प्रसिद्ध है जो हिमालय में सिंधु नद के किनारे से लेकर बल्लमटेर-संक्षा पुं० [अ० वालंटियर ] (१) स्वेच्छापूर्वक सेना में नेपाल तक होता है। शिमले, नैनीताल, मसूरी, आदि में । भरती होनेवाला । (२) स्वेच्छा सेवक । इसके पेर बहुत मिलते हैं। लकड़ी इसकी अच्छी नहीं बलमबर्दार-संज्ञा पुं० [हिं० बल्लम+फा. बार ] बह नौकर जो होती, जल्दी टूट जाती है। अधिकतर धिन और कोयले राजाओं की सवारी या बरात के साथ हाथ में बालम के काम में आती है। घरों में भी कुछ लगती है। पर दार्जि लेकर चलता है। लिंग और मनीपुर की ओर जो बृक नाम का बलत होता | बलव-संज्ञा पुं० [सं० ] (1) चरवाहा । ग्वाला । (२) भीम का वह है उसकी लकड़ी मज़बूत होती है। योरप में बल्लत का आदर नाम जो उन्होंने विराट के यहाँ रसोइये के रूप में अज्ञात. बहत प्राचीन काल से है।इंगलैंड के साहित्य में इस वास करने के समय में धारण किया था। (३) रसोडया। तलाज का वही स्थान है जो भारतीय साहित्य में वट या । बल्ला-संज्ञा पुं० [सं० वल लट्ठा या डंडा [ स्त्री. अल्प० बल्ली ] आम का है। (१) लकड़ी की लकी, सीधी और मोटी छ, या लट्ठा । बलूल-वि० [सं० ] बलयुक्त। डंडे के आकार का लंबा मोटा टुकड़ा। शहतीर या बलैया-संशा स्त्री० [अ० बला, हि० बलाय । ] बला । बलाय। डंडा । जैसे, साखू का बल्ला । (२) मोटा डंडा । दंड। मुहा०--(किसी की) दलैया लेना. (अर्थात् किसी का रोग, उ.-कल्ला करे आगू जान देत लेत बल्ला त्यागे टौंसत दु:ख अपने ऊपर लेना) मंगल कामना करते हुए प्यार करना । प्रबल्ला मल्ला धायो राजद्वार को।-रघुराज । (३) बाँस दे० 'बलाय लेना" । बलैया लेता है बलिहारी है ! इस या डंडा जिससे नाव खेते हैं। डाँडा । (४) गेंद मारने बात पर निछावर होता हूँ। चया कहना है । पराकाष्ठा है। का एकड़ी का डंडा जो आगे की भोर चौड़ा और चिपटा बहुन ही नदचढ़ कर है (सुंदरता, रूप, गुण, कर्म आदि देख होता है। बैट। मुन कर इसका प्रयोग करते है । यद्यपि 'बलि जाना' और यौ०-गेंद बल्ला । 'बलैया लना' व्युत्पत्ति के विचार से भिन्न है पर दोनों मुहा० संज्ञा पुं० [सं० वलय ] गोबर की सुखाई हुई पहिये के हिलमिल से गए है) उ.-लाज बाह गहे की, नेवाजे आकार की गोल टिकिया जो होलिका जलने के समय की संभार सार, साहब न राम सो, बलया लीजै सील उसमें डाली जाती है। की।-तुलसी। बल्लारी-संज्ञा स्त्री० [देश० ] संपूर्ण जाति की एक रागिनी बल्कल-संज्ञा पुं० दे० "बल्कल"। जिसमें केवल कोमल गांधार लगता है।