पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/५३०

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यहना थाका यहना -क्रि० स० [हिं० याह] पाह लेना। पता लगाना । माविया, बांह की जोती वाट। थामा नाच घर हंसह खेलण उ.---पथा थाह पहो नहिं जाई। यह धीरे वह थीर रहाई । लागी खाट ।-ढोला., दू० ५४१ । -कबीर (शब्द०)। थावला-सज्ञा० [सं० स्थल, हिं० थल ] वह घेरा या गड्डा जिसमें थहरना-क्रि० स० [पनु.] कॉपना। पहराना । उ०-उत गोल कोई पोषा लगा हो। थाला। मालवाल । १०-सतालो के कपोलन मति लोल प्रमोल लली मुक्ता थहरै।-प्रेमपन, मोझा के घर तुलसी का थांवला होता है। प्रा. भ. प., मा० १, पृ० १३२ । पृ०२०। थहराना-क्रि० स० [ मनु थर पर J१ दुबखता या भय से भगों था-कि.प.[सं० स्था ] है सब्द का भूतकाल । एक शब्द जिससे का कापना। कमजोरी या डर से बदन का कापना। भूतकाल में होना मूचित होता है। रहा । जैसे,—वह उस २. कापना। समय वहाँ नहीं था। थहाना-क्रि० स० [हिं० थाह ] १. गहराई का पता लगाना। विशेष—इस शब्द का प्रयोग भूतकाल के भेदों के रूप बनाने में थाह लेना । 30--(फ) सूर कही ऐसो को त्रिभुवन मावै भी सयुक्त रूप से होता है। जैसे, माता या, माया था, मा सिंघु यहाई।सूर (शन्द०)।(स) तुलसी तीरहिके रहा था, इत्यादि। पले समय पाइनी थाह । षाद न जाइ यहाइमरी सर सरिता थाइम-वि० [सं० स्थाय? ] याई। स्थायी। उ०-हावनि बढ़ प्रवगाह -तुलसी (शब्द०)। भावनि करति मनसिज मन रुपजाइ । दाइल वह थाइल करत संयो० क्रि०-दामना !-देना ! लेना। पाइल पाइ बजाइ।--१० सप्तक, पृ० ३६५। २.किसी की विद्या बुद्धि या भीतरी अभिप्राय प्रादि का पता थाई'-वि० [सं० स्थायिन, स्थायी ] बना रहनेवाला। स्थिर- लगाना। रहनेवाला। न मिटने या जानेवाला । बहुत दिनों तक चलने वाला। थहारना-क्रि० स० [हिं० ठहराना] जहाज को ठहराना । थाई२--सपा पु०१. बैठने की जगह । बैठक। मथाई । २. गीत का थाँग-सका श्री० [हिं० थान ] पोरों या आकुमों का गुप्त स्थान । प्रथम पद जो गाने में बार बार कहा जाता है। ध्रवपद । पोरों के रहने की जगह । २ खोज । पता । सुराग (विशेषत स्थायी। चोर या खोई हुई वस्तु मादि का )। क्रि० प्र०-लगाना । थाईभाष-सहा पुं० [सं० स्थायी भाव] दे॰ 'स्थायी भाव'। उ०--रति ३ भेद । गुप्त रूप से स्वगा हुमा किसी बात का पता । जैसे,- हाँसी मरु सोक पुनि क्रोध उछाह सुजान । भय निंदा विस्मय सदा, थाईभाव प्रमान ।-केशव ग्र०, मा० १, पु० ३१। बिना योग के पोरी नहीं होती। ४. सहारा। पाश्रम स्थान । उ०-पति उमगीरी पान प्रीति नदीम अगाध जल । पार था --सचा धु० [सं० स्थान, हिं. ठाउ, ठाव ] उ.---ऊँपो गढ़ माझ ये प्रान, दरस थांग बिन नाहि फल । बज० ग्र०, मपरपर था। भमर प्रजोनी सपि तखत पाउ।प्राण, पु० २५२। योगी-सचा पुं० [हिं० थांग ] १ चोरी का माल मोल लेने या थाक'-प्रशा पुं० [सं० स्था] १ गांव की सरहद । प्रामसीमा। २ अपने पास रखनेवाला मादमी। २ चोरों का भेदिया। चोरों थोक । ढेर । समूह। पटाला। राशि । उ०—मधु, मेवा, को चोरी के लिये ठिकाने मादि का पता देनेवाला मनुष्य । पकवान, मिठाई, घर घर त लै निकसी थाक !-नद प्र०, ३ चोरी के माल का पता लगानेवाला भादमी। जासुस । पु० ३६० । ३ सीमा। हद । उ-मेरे कहाँ थारु गोरस ४ चोरों का अड्डा रखनेवाला मादमी। चोरों के गोल को नवनिधि मदिर यामहि ।-तुलसी (शब्द०)। का सरदार। थाकार-पक्षा स्त्री० [हिं० थकना ] थकावट । थागीदारी-सचा बी० [हिं० योग+फा० दार] यांग का काम । क्रि० प्र०-~लगना । 'थाटा-वि० [देश॰] शीतल । प्रसन्न । ठढा । उ.--पैड पैड ज्यारा थाकना--क्रि० प्र० [सं० स्था, बग० थाका शक्ति न रहना। पिसण त्यारा कड़वा बण । जग जानू देबै जले नहि थांटा या जाना । शिथिल होनी । रुकना। उ०-थाको गति अगन नेण । -चौकी० प्र०, भा• ३. पृ०७६ । की, मति परि गई मद सुखि झामरी सी हके देह लागी थाणा-सा पुं० [सं० स्थान, प्रा. था] स्थान। ठिकाना ! पियरान :-हरिश्वद्र-(शन्द०)।'२ रुकना। ठहरना । उ.--थारणो मायौ राय मापणी।-वी० रासो, पु. १०७ । उ.--जग जलवूड़ तहाँ लगि ताकी। मोरि नाव खेवक दिनु थाको ।--जायसी (शब्द०)। ३ स्तमित होना। ठगा सा थाभ-समा पु० [सं० स्तम्म ] १. खभा । २. यूनी । पौड़ । उ०- होना । माश्चर्यचकित होना। उ०--रतन भमोलक परख थाम नाहि सठि सके न यूनी। जायसी प्र०, १० १५७ । कर रहा जौहरी थाक ।दरिया० बानी, पु०१८। योभना-कि० स० [हिं० थोम ] दे० 'यामना'। थाका ----महा पु०[ देश०] दे० 'थक्का'। उ०--थाफा होय रुचिर । थामा- पु.[सं० स्वम्म ] समा। स्वभ । उ.-कोई सज्जण के हा!-कबीर सा.,पृ. १५७८ । थाका