पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/४६६

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समदी २११० तुरंग - - - - - हसि हाथी हमैं सप कोऊ देत, कहा रीमि हसि हाथी एक तुरंगक-सबा पुं० [सं० तुरङ्गफ] १ बड़ी तोरई। २ घोठा (को०)। तुमहिय देत हो।-भूषण न०, पृ. ३६ । तुरंगकांव-सचा धी• [00 तुरङ्गकाम्ता] घोडी [को०] । तुमही-सर्व० [तुम+ही (प्रत्य॰)] तुमको । यौ०---तुरंपकांतामुख- वाडवारप । तुमाना-क्रि० स० [हिं० तमना का प्रे० सप] तूमने का काम तुरंगगंधा-सया बी० [सं० तुरलगन्धा] प्रश्वगंधा। मसगध [को०] । कराना। दवी या जमकर बैठी हुई हई को पुलपुली करके तुरंग गौड़-सा पुं० [स. तुरङ्ग+गौर] गौड़ राग का एक भेद । फैलाने के लिये नोचवाना । यह वीर या रोद्र रस का राग है। तमार--सक्ष पुं० [हिं०] १० 'तुमार'। उ०-ये अलहिं सब तरंगद्विषणी-सहा श्री [सं० तुरनद्विपणी] भैस । महिपी (को०) । हथियार हुप गय लोग बाग तुमार।-जोखा पा०, पृ०४४। तरंगपिणी-सक्षा को सं० तुरनपिणी] भैस । महिषो। तुमारा -सर्व० [हिं० ] . 'तुम्हारा | उ.-ताते चलिहै तुरंगप्रिय-ससा पुं० [सं० तुरनप्रिय] जो । यद । महार तुमारा। इतना वधन धर्म कहं हारा |--कधीर सा०, तुरंगब्रह्मचर्य-सभा पुं० [सं० तुरङ्गाहापयं] वह ब्रह्मपयं जो स्त्री पृ०४५५। न मिलने सर हो [को०] । तुमुखी- सी० [देश॰] एक प्रकार की चिड़िया। तुरंगम-वि० [सं० तुरङ्गम] बल्दी चलनेवाया। तमर- पु. [सं०] १ दे० 'तुमुल' । २. वप्रिया को एक जाति तरंगमर- पु. १. घोड़ा। २ चित्त। ३ एक वृत्त का नाम बिसका उल्लेच मत्स्य पुराण में है। जिसके प्रत्येक घर में दो नवरा पोर दो गुरु होते हैं। इसे तमुन-सा पुं० [सं०] १ सेना का कोलारस सेना की धूम । तुम और तुमा भी कहते हैं। उ०—न नम गह बिहारी। सहाई को हलचल । २ सेना को मिउंद । गहरी मुठभेड़ । ३ फहत प्रति पियारी। - (पन्द०)। बहेड़े का पेड़। तुरंगमो-सहावी. [सं० वरङ्गमी] १. मसग । २ घोड़ी [फो०] । तमुल-वि० [सं०] १ हलचल उत्पन्न करनेवाला । २ शोरगुल से तरंगमीर-सा पुं० [सं० तुमजमिन] घुडसवार । अश्वारोही [को०] । युक्त। ३ भयकर । तीव्र । उ०-संग दादुर झीगुर बदन तुरंगमुस-सा पुं० [सं० तुरजमुन] {धी तुरयमुखी] (धोका धुचि मिलि स्वर तुमुल मचावहीं।--बार प्र०, भा०१, सा मुंहवाला) किन्नर । 30-गावै गीत तुरगमुख, जलरख पु० २९८ । ४. पनेक ध्वनियों, मेव ध्वनित (को०)। वन पटिपार--कौ० प्र०, भा० ३, पृ. 1 ५ qध (को०)। ६ घबराया हुमा ।मा (को०)। तुरगमेध--सा पुं० [सं० तुरङ्गमेघ] पश्वमेप (को॰] । तुम्हा--सर्व० [हिं०] दे० 'तुम'। उ.-अब तुम्ह सुवा कोन्ह है फैरा। गाद न जाइ पिरीतम कैरा-बायसी ग्र० (गुप्त), 'तुरंगयम-सा • [सं० तरङ्गयम] यो । यव [को०। पु० २७२। तुरंगयायी-सम पुं० [सं० तुरङ्गयायिन पुरसवार [को०)। तुम्हार-सहि. तुम] तुम्हारा। उ०-मारह सामि सुलच्छना तुरंगरक्ष-सका पुं० [सं० तुरङ्गरक्ष] साईस (को०] । जीउ वसै तुम्ह नाव ।-जायसी म०, पृ०१०१। तुरंगलीक्षक-यणा पुं० [सं० तुरङ्गलीलक] सगीत एक ताल मे (को०] । तुम्हरा-सवं० [हि. ] दे० 'तुम्हारा' । उ०-दुष्ट दमन तुम्हरो तुरगवक्त्र-सा पुं० [सं० तुरङ्गवस्त्र] (घोरे का सा मुंहवाला) भवतार । हे पद्भुत व्रजराज कुमार ।-नव० ग्र०, पृ ३१२ । किन्दर । तम्हारा-सर्व हि. तुम ] स्त्री० तम्हारी 1'तम' का सबंध तुरंगवदन-संशा पुं० [सं० तरङ्गवदन ] ( घोरे का सा मुंहवाला ) कारक का कप । उसका जिसबै वोलनेवाला बोलता है। जैसे, किन्नर। तुम्हारी पुस्तक कहाँ है?" तुरंगशाला-सहा दो-[सं० तुरङ्गशाला] पोरसार । पस्तवल । मुहा०-तुम्हारा सिर = दे० सिर' तुरंगसादी- पुं० [सं० तुरङ्गसादिन] घुरसवार [को०] । तुम्हें-सर्व० [हिं० तुम ] 'तुम' का वह वित्तियुक्त रूप जो उसे तुरंगस्कंध--सबा पुं० [सं० तुरङ्गस्कन्ध] १. घोड़ों की सेना। २ कर्म पौर संप्रदान में प्राप्त होता है । तुमको। घोड़ों का समूह [को०] । तुर्या-पवं० [हिं०] दे० 'तू'। उ०—नाहोता बनम गौ तप करे तुरंगस्थान-सका पुं० [सं० तुरङ्गस्थान) धुरसाव । यस्तबन [को॰] । तिसरी बोपी होई !-पी० रासो, पृ०४४। तुरगारि-सबा पुं० [सं० तुरङ्गारि ] 1. करे। करवीर । २ तुया -सा पुं० [हिं०] दे॰ 'तो' 1 30-ज उतपत ते ठुया। मैसा (को०)। -गोरख०, पृ० १५६ । तुरंगिका-एका पी० [सं० तुरङ्गिका] देवदामी । घघरमैन । बदाष । तुरंग'---वि० [सं० तुरङ्ग ] जल्दी चलनेवाला। तुरंगारुढ-सका ० [सं० तुरङ्गाद] घुड़सवार । अश्वारोही को। वरंग'-- ० १. घोडा। उ०---रड तुरग तुरग मन. वहरि तुरगी'-सबा श्री० [सं० तुरनी] १. भश्वगंधा। मसगप। २ तुरंग तुरग ।-मनेकार्य०, ५० १३३ । २ चित्र । ३ सात घोड़ी (को०)। की सस्या। तुरगी- पुं० [सं० तुङ्गिन] घुडसवार [को०] ।