पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/४५८

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तीर्थसैनी' सोसर' तीर्थसेवी-वि० [सं० तीर्थयेविन ] धार्मिक भाव से तीर्थ में रहने- विशेष-संगीत में ५ स्वरों--ऋपभ, गाधार, मध्यम, धैवत वाचा [को॰] । पौर निषाद के तीव्र रूप होते हैं । वि.२० 'कोमन' । तीर्थसेबी-सबा पुं० बगुला (को॰) । सीत्र--सम पुं० १.लोहा । २ इस्पात।। नदी का किनारा । तीर्थाटन-मा पुं० [सं०] तीर्थयात्रा। ४ विव। महादेव । तीर्थक-सका पुं० [सं०] १.तीर्थ का प्र हाण । परा।२ रोड़ों के तीकंठ-सा पुं० [सं० तीवकराठ] सरव। बमीफद। पोल । अनुगर धौवधर्म का विद्वेषी ब्राह्मण । ३ तीर्थकर । तीनकंद-सका पु० [सं० तीवकाम ] सूरन [को०] । सीर्थिया-सक पुं० [सं० वीर्य+हिं० इया (प्रत्य॰)] तीर्थंकरों को तीव्रगंधा-सौ . [ सं तीव्रगन्धा ] पजवायन । यवानी । मानसेवामा, जैनी। तीनगंधिका–ो [सं० तीव्रगन्धिका ] दे० 'तीव्रगया। तीर्थीभूत-वि० [सं०] १. पवित्र । शुर। २. पूज्य [को। तीव्रगति-वा ली., पुं० [सं०] वायु । हवा । तीर्थोदक-- पुं० [स.] तीर्थ का पवित्र बल [को०] । तीब्रगति:--विटेज पारवाना [को०)। तीय-सका पु० [सं०] १ रु. का नाम । २ सहपाठी। तीव्रगामी-वि० [सं० दौमापिन् ] [ वि०बी० तीवामिनी 1 देव तीर्य-वि० तीर्थ । सबधित (को०] । यविवाषा । ज पार का। तीन-सा पुं० [सं० दोणं] दे० 'तीय। वोत्रज्वाखा-सा औ••] १ का फष निरोग तील -सहा पुं० [हिं०] दे० तिम'। उ०-लरिदीप रबरसे कार में दाव हो पाता है। मीरपरगे चाईनाव बिय माँठी पमिना मनवा कहीवाई। तीनता-सबा बी० [सं०] तीव्र का भाव । तीक्ष्णता । तेषी। -रामानं५०, पृ. १५ दीचाप । प्रसरता। तीलखा-सहा . [देश॰] एक प्रकार की विधिया। तीव्रपति- पु .] सूर्य [को०] । वीला-पु. [फा. और] तिमानिसपा का तोबष-w• [सं० दीनबन्ध] तमोगुण को । तोली-सहा बी० [फा०ती( - माण)] १ मा तिनका । रोका. तीनवेदना-- पुं० [सं०] अत्यधिक पोश। भयकर दुख [को० । पापावि का पतला, परदा बार। रपे में दरको तीनसंवेग-वि० [सं०] द निश्चयवाचा । मटर को। ही वापजिसमें नरी पहनाई जाती है। तीलियों को तोत्रसब-सका पुं० [सं०] १ दिन में होनेपाखा एक प्रकार का पह। पापी बिसर जुलाहे सुन साफ करते हैं। ५ पादों का तीता--जी-सं०] 1, पज स्वरकीबार थुविषों में पहली वह पोनार जिससे वे रेशम लपेटवे। इसमें बोहे का श्रुति । २ मयकारिणी। पुरासानौ प्रमवायन । ३. राई। एक बार होता है जिस पल सिरे पर लोकाएक गोल ४ पौडर दूस।। तुझसो । ५ बड़ी मालगनी ।। कूटको । का लगा रहा। ..तरवीक्षा तीव+- बी• [ से० स्वो ] स्त्री। पौरत। तीव्रानंद-- पुं० [• दीवान] महादेष । बिव [को०] । तीवाल-सी [f] २० 'टीव' । ४०-दीवर पप समय ' तीत्रानुराग-प.सं.] 1 षियों के अनुसार प्रहारका पापमुपचारिपोई तबा-वायी (प.)। पतिवार परस्त्रो पा पर पुष प्रत्यंत मनुरामला तीवना- पुं० [सं० हेमन( - भ्यमन)] . पकवाव । २ सवार अपना काम की वृद्धि पिये पनीम, कस्तुरौ वापि वाया। दरबारी। २ अरपधिप्रेम (को०)। तीनर-पु. [सं.] १ समुद्र । २ व्याया। विकारी धोवर। तीस- वि• विपति, पा. औसा बोनिया में नगर मछुपा । ४. एक वयसकर पत्या धाति । पारपोर तोप पड्थे हो। जोस बिगुना। विशेष-पहावैवर्त पुराण के प्रमुगार राजपूत माता मोर बीप मोर । थपिप पिमा पर्थ मा परापर मत राषपूत यौर-वीस बिन पा और बिर - पश। हमेवा। समार माता और पूर्ण पिता पमं से पवछ पोर at =बहुत बीर। शहापुर (म्पग्य) । तीवर पौर धीवर को एकही मामते पति अनुसार तौर-- . बस की तिरी सध्या को पकों में इस प्रकार पिसी तौर को स्पर्ष रथे पर स्वार र दो भानश्यका होती है। वीस ---१० [१] पामसको । उ०-रषिविपन बाटिका तीस दम तीव्र-वि० [सं०] १ प्रतिशय । प्रत्यत । २ तीक्ष्ण । तेव । ३. छाहरसि तक ।--१० रा०, २५ । ३ । बहुत गरम । ४ नितांत । येहद । ५ कटु । करवा । दुसह । प्रमहा 1 न सहने योग्य । ७ प्रचड । ८ सीखा तीसनाgt-कि० मा [हिं०] दे० 'टीसना'। वेगयुक्त । तेज । १० कुछ ऊँचा मोर मरने स्थान से बढ़ा तीसर'.--वि० [हिं०] दे० 'तीसरा। उ०-तर शिव तीसर नयन हमा (स्वर)। उघारा। चितवत काम भयउ जरि धारा ।-मानस, १८७।