पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/४४६

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तिलकंठी २०१० सिलक कामो यो०-तिलकुट । तिलपट्टा। तिलमुग्गा । तिलशकरी। या त्रिपुद्र लगाते हैं। शाक्त लोग रक्त चदन फा पाडा टी २ छोटा मण या भाग जो तिल के परिमाण का हो।। लगाते हैं। वैष्णवों में तिलक का माहात्म्य वहत अधिक ब्रह्मपुराण में वं पुड़ तिलक की बड़ी महिमा गाई मुहा०-तिल की पोझल पहाड - फिसी छोटी बात के भीतर बर्ड. भारी बात। तिल का तार करना=किसी छोटी बात है। वैष्णव लोग तिलक लगाने के लिये द्वादश मग मा को बढ़त बढ़ा देना। छोटे से मामले को बहुत बड़ा करना है.-मस्तक, पेट, छाती, कठ, (दोनो पापवं) दोनों का या दिखाना। तिल का ताड़ बननामतिरजित होना। दोनों वाह, कधा, पीठ और कटि। तिलक प्राचीन काल उ०-श्रद्धा के उत्साह वचन, फिर काम प्रेरणा मिल के । शृगार के लिये लगाया जाता था, पीछे से उपासना का गि समझा जाने लगा। भ्रांत मयं धन भागे पाए बने ताड थे तिल के |--कामायनी, पु० ११०1 सिलपापले बाल = कुछ सफेद पोर कुछ काले क्रि० प्र०-धारण करना । -धारना ।—लगाना ।-सारना वाल । खिचड़ी वाल। तिल चाटना = मुसलमानों के यहाँ २ राजसिंहासन पर प्रतिष्ठा राज्याभिषेक । गद्दी। विवाह में विवाई के समय दूल्हे का दुलहिन के हाथ पर रखे यो०-राजतिलक । हुए काले तिलों का चाटना । क्रि० प्र०-सारना = राज्य पर पभिषिक्त करना। गद्दी विशेष---यह टोटका इसलिये होता है जिसमें बहा सदा अपनी राजसिंहासन को प्रतिष्ठा देना। 30-मिला पाइजब पनु स्त्री के वश में रहे। तुम्हारा। जाहि राम तिलक तेहि सारा-मानस, ५:५४ तिल तिल = पोडा घोड़ा। उ.-परि स्वामि धर्म सुरग। ३ वियाह संवध स्थिर करने की एक रीति जिसमें कन्या प पदि ग्है तिस तिल पग । -ह. रासो, पु० १२३ । तिल के लोग वर के माथे में दही मसत पादिका टीका लगा धरने की जगह न होना- जरा सी भी जगह खाली न रहना । पोर कुछ द्रव्य उसके साथ देते हैं । टीका । पूरा स्थान छिका रहना । तिल बांधना = सूर्यकांत शीशे से क्रि०प्र०-चढ़ना-चढ़ाना। होकर पाए हुए सूर्य के प्रकाश का केंद्रीसुत होकर बिंदु के मुहा०-तिलक देना= तिलक के साथ (धन) देना । जैसे, रूप में पटना। तिल भर- (१) जरा सा। पोड़ा सा। उसने कितना विलक दिया। विलक भेजना= तिलक उ.-रहा पढ़ाउद तोरव भाई। तिल मर भूमि न सकेउ सामग्री के साथ वर के घर तिलक चढ़ाने लोणी को भेजना। छुड़ाई।-तुलसी (शब्द॰) । (२) क्षण भर । योडी देर । ४ माथे पर पहनने का लियों का एक गहना । टोका। ५ शिर (किसी ) तिलो से तेल निकालना- किसी से किसी प्रकार मणि। धेष्ठ व्यक्ति । किसी समुदाय के बीच घेष्ठ या उत्त रुपया लेकर वही उसके काम में लगाना। पुरुष। ३ काले रंग का छोटा दाग जो घरीर पर होता है। 10- विशेष--इसका समास के मन में प्रयोग नहुषा मिलता है चिबुक कूप रसरी मलक तिल सुपरस ग देल । भारी वयस पैसे, रघुकुलतिलक। गुलाब की सीचत मन्मथ छल । रसलीन (शब्द०)। ६ पुन्नाग की जाति का एक पेड जिसमें छत्ते के भाकार के विशेष-सामुद्रिक में तिलों के स्थान भेद से अनेक प्रकार के - वप्तत ऋतु मे लगते हैं। शुभाशुभ फल बतषाए जाते हैं। पुरुष के शरीर में दाहिनी विशेष-यह पेड़ शोभा के लिये बगीचों में लगाया जाता है पोर पोर स्त्री के शरीर में बाई पोर का तिल प्रच्या माना इसकी लकडी मोर छाल दवा से काम माती है। जाता है। हथेली का तिल सौभाग्यसूचक समझा जाता है। ७ मुज का फूल या घूमा। ८. लोध्र वृक्ष । बोष का पेड़। ४. फासी बिंदी के माकार का गोदना जिसे स्त्रियां शोमा के लिये मरुवक ! मरुवा। १०. एक प्रकार का अश्वत्थ । ११. ए गाल, ठुड्डो मादि पर गोदाती हैं। जाति का घोड़ा । घोडे का एक भेद । १२ तिल्ली जो पेट कि०प्र०--पनाना। लगाना। भीतर होती है। पलोम। १३ सौवचंल लवण । सोच ५ पाँख की पुतली के बीचो बीच फी गोल विदी जिसमें सामने नमक । १४ संगीत में ध्रुवक का एक भेद जिसमें एक एक पड़ी हुई वस्तु का छोटा सा प्रतिबिंब दिखाई पड़ता है। पर पचीस पचीस अक्षरो के होते है। १५ किसी प्रय तिलकंठी-सशा श्री. [सं. तिलकराठी] विष्णुकाची। काली की अयंसूचक व्याख्या । टीका । १६ एक रोग (को०)।१७ कौवाठोंठी। पीपल का एक प्रकार या भेद (को०)।१८ तिल का पौषा तिलक'-सा पुं० [सं०] १. वह चिह्न जिसे गीले चधन, केसर मादि या फूल (को०)। वि मस्तक, पाहमादि अगों पर सांप्रदायिक सकत या शोभा तिलकर-सवा . [तु० तिरलीक का सक्षिप्त रूप ] १. एक प्रकार के लिये लगाते हैं। टीका। ३०-छापा तिलक बनाइ करि का ढोला ढाला जनाना कुरता जिसे प्राय मुसलमान लिया दगध्या लोक अनेक ।-कबीर पं०, पृ. ४६ । सूपन के ऊपर पहनती हैं। उ.--तनिया न तिलक, सुपनिया विशेष-भिन्न भिन्न संप्रदायो सिलक मिन मिष्त भाकार के पगनिया न घामें घुमराती बार सेजिया सुखन की।- होते है। वैष्णव खड़ा तिखक या ऊवं पुड़ लगाते हैं जिसके भूषण ( चन्द.)। २. शिलमव । सप्रदायानुसार अनेक प्राकृति भेद होते है। शैव भाडा तिलक तिलक कामोद-सका पुं० [सं०] एक रागिनी जो कामोद पोर