पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/४४

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

जनित जनैया जनित-वि० [सं०] १ उत्पन्न । जन्मा हमा। उपजा हुमा। जनून-पु. [म० जुनून] [वि० जनूनी] पागलपन । सनक ! उन्माद । २ उत्पन्न किया हुआ। खन्त [फो०। जनिता'--सा पुं० [सं० जनित ] पैदा करनेवाला। उत्पन्न करने- जनूनी-वि० [म. जुनूनी] पागल । उन्मादी[को०] । वाला। पिता। जनूव--सबा पुं० [१०] [वि० जनूबी ] दक्षिरण ! दक्खिन (फो०] । जनिता-सशस्त्री० [सं० बनित उत्पन्न करनेवाली। माता। जनयी-वि० [भ] दक्षिण संबधी । दक्खिनी । दक्षिण का [को०। प्रसूति । उ०-उद्दित पधान सुम गातनह, जेम जलधि पुन्निम जनंद-सधा सं० जनेन्द्र ] राजा। बढ़हि हलसत हीय जे प्रीय त्रिय, जिम सुजोति जनिता जने-संज्ञा पुं॰ [सं० जन् 1 व्यक्ति । भादमी। प्राणी। उ०-हममें चढ़हि।-पृ० रा०,१।१८४। दो बने का सामा तो निभसा ही नहीं 1----प्रेमघन०, मा० २, जनित्र-पश पुं० [सं०] १ जन्मस्थान । जन्मभूमि । २. मुल। पू० ८२।। प्राधार (को०)। यौ०-जने जने । जैसे, नाक की बरात में जने जने ठाकुर । जनित्री-सहा स्री० [सं० ] उत्पन्न करनेवाली। माता । मा। जनेऊ-समा पुं० [सं० यज्ञोपवीत, प्रा. जन्नोवईय, अथवा स० जन्म] जनित्व-सहा पुं० [ 8 ] पिता [फो०] } यज्ञोपवीत । ब्रह्मसूत्र । उ०-वामन को जनम जनेऊ मेलि जनित्वा-सा सी [सं०] माता । जानि मि, जीम ही बिगारिवे को याच्यो जन जन मे। जनिमा-सज्ञा स्त्री० [सं० जनिमन् ] १. उत्पत्ति । जन्म । २ -अकबरी०, पृ० ११५ सतान । सतति [फो०] । मुहा०-जानेऊ का हाय-पटेबाजी या सलवार का एक हाथ जननीलिका-ससा श्री० [सं०] नील का बड़ा पेह । जिसमें प्रतिद्वनी की छाती पर ऐसा पाघात लगाया जाता है जैसे जनेऊ पड़ा रहता है। इसे जनेव या अनेवा का हाथ भी जनियाँ-मा स्त्री० [स० जानि ] प्रियतमा। प्राणप्यारी । कहते है। प्रिया। प्रेयसी! २ यज्ञोपवीत सस्कार । ३०-छोन्ह जनेक गुरु पितु माता। जनी' साक्षी० [सं० जन] १ दासी । सेविका । अनुचरी। उ.- --मानस, १२२०४। पाइ, जनी, नाइन, नटी प्रगट परोसिनि नारि --केपाव प्र., प्र, जनेत-सक्षा ली [सं० जन+हिं० एत (प्रत्य०)वरयामा । वरान । भा० १, पु०६८।२ स्त्री। ३ उत्पन्न करनेवाली । माता । ४. उ०-बीच बीच घर वास करि, मग लोगन सुख देत । अवध जन्माई हुई । कन्या। लरकी। पुत्री । उ.-प्यारी छवि की समीप पुनीत दिन, पहुँची पाय जनेत । तुलसी (शब्द०) । रासिवनी । जाहि विलोकि निमेष न लागत श्री धृषभानु जनेवा-सक्षा पुं० [सं० बनयिता या जनिता] पिता । धाप।- बनी।-भारतेंदु म०, मा० २, पृ.४५ । जनीवि०बी० उत्पन्न की हुई। पैदा की हुई जनमाई हुई। जनेरा-संका पुं० [हिं० जुपार] एक प्रकार का घागरा जिसके पेड़ जनी'सा श्री० [सं० जननी ] एक प्रकार की प्रोषधि जिसे पपंटी घहत लंबे होते है। इसमे पालें भी बहुत लमी पाती हैं। या पानटी मी कहते हैं। जोन्हरी । विशेष--यह पीतल, वर्णकारक, कसली, कड़वी, हलकी, अग्नि- जनेव-सचा पुं० [हिं० जनेक ] दे॰ 'जने। दीपक, रुचिकारक तथा रक्त, पित्त, कफ, रुपिरविकार, कोड़, जनेवा-संक्षा पुं० [हिं० जनेक ] १. लकही पादि मे बनाई या पडी दाह, वमन, तृषा, विष, खुजली और प्रण का नारा करनेवाली हुई लकीर या धारी। २ एक प्रकार की ऊंची धास जिसे घोडे कही गई है। बहुत प्रसन्नता से बाते है। ३ वाएँ कधे से दाहिनी कमर तक जनीयर--सा पुं० [ देश० ] एक पेड का नाम । शरीर का वह प्रश जिसपर जनेक रहता है। ४. तलवार या जनु'-क्रि० वि० [हिं० जानना ] [ पन्य रूप-अनि, जनुक, जनू, खोडे का वह वार जो जनेऊ की तरह काट करे। ३०० जानो पादि] मानो। २.-(क) छुटत गिलोला हुथ्य से 'जनेक का हाप' । पारत चोट पयल्ल । कमलनयन अनु कामिनी करत कटाछ जनेश--सामा पुं० [सं०] राजा । नरेश । भूपति । यल्ल !-पु. रा०, १७२८ । (ख) कामकंदला मई जनेष्ट-वि० [सं०] [विली जनेष्टा ] जनप्रिय । लोकप्रिय कोना वियोगिनि । दुर्वल जन्न वसं को रोगिनि ।-माधवानल०, जनेष्टा-सा श्री० [सं०] १. हल्दी। २. घमेली का पेह। ३ पृ. २०३। पपड़ी । पपंटो। ४. वृद्धि नाम की भोषधि । जनु-सा श्री० [सं०] जन्म । उत्पत्ति । जनेस - सना पुं० [सं० जनेश ] दे० 'जनेश' 11.-गौतम की जनुक-कि० वि० [हि० जनु+के (प्रत्य०) ] जैसे । मानो। तीय तारी मेटे अघ भूरि भारी, लोचन मतिथि भए जनक जन -संकजुनून] पागलपन | उन्माद । उ०-इतना पहा बनेस।-सुलसी प्र०, पृ० १६० । मौर कर लिल्लाह ए दस्ते पन-भारतेंदु ग्र०, भा० २, जनैया-वि० [हि० जानना ऐया ( प्रत्य ] जाननेवाला । पृ०२४६. पानकार । 30-(क) बदले को बदलो ले जाह। उनको एक जनू-मस्त्री० [सं०] उत्पत्ति । जन्म [को०] । हमारी है तुम बड़े जनैया माई -सर०, १०४०.१।