पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/४३४

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दिगना २०७४ तिसर सिगनाकि. स. [देश देखना। नजर सलना। भापना । तिचिया-संज्ञा पुं० दिरा०] पहाज पर के वे पादमी जो पाकर में (दलाली)। नक्षत्रो को देखते हैं (लग०)। तिगना- वि० [हिं०] दे० 'तिगुना'। विच्छ -वि० [सं० तीक्षण ] दे० 'तीक्षण'। तिगुना-वि० [सं० त्रिगुण] [ वि०खी तिगुनी ] तीन चार पधिक। तिच्छन-वि० [सं० तीक्ष्ण ] दे० 'ती'! टोन गुना। विच्छना -वि० [हिं०] दे० 'वीक्षण'| उ.--कनक कापना तिगुचना-कि० स० [हिं०] दे० 'तिगना' । भेद ज्ञान में तिच्छना। परे हो रे पटू ऊषो से हरि हैं सत्र तिगून--सधा पुं० [हि. तिगुना] १. सिगुना होने का भाव। २ के लन्छना 1--पलटू, भा० २,५०७७।। भारभ में जितना समय किसी चीज माने या बनाने में तिजरा-समा पु०सं० त्रि+ज्वर तीसरे दिन मानेवाला ज्वर । मगाया जाय, मागे बजकर वह चीज उसके सिंहाई समय में विषारी। गाना । साधारण से तिगुना। बल्दी पावा या बजाना । वि० दे० 'चौगून'। तिजाँसा--सा पु.हि. तीला (= तीसरा)+मास (महीना)] सिग्मंसपुर-सवा सं० [हिं० दे० 'तिग्मांशु'। उ०-मिहिर तिमिरपुर वह उत्सव षो किसी स्त्री को तीन महीने का गर्म होने पर प्रभाकर उस्नरस्मि तिग्मस |--पनेकार्थ, पृ.१०२। उसके फुटुंब सोग करते है। तिग्म-वि० [सं०].. तीण राणा प्रखर 18.-खोज तिजहरी-सहा पुं० [हिं०] तीसरा पहर। गए ससार नया तुम मेरे मन में, क्षण भर । जन सस्कृति का तिजरिया- jo [हि० वीवा (तीसरा) पर तीसरा तिम स्फीत सौंदर्य स्वप्न दिखलाफर -ग्राम्या, पृ०४७ ॥ पहर । पपराह्न। २ ता I OR करनेवासा (को०)। तिजहरी-सा पु० [हिं० तीषा (= तीसरा)+मार (= महीना)] यौ०-तिग्मकर। सिग्मदीधिति । तिम्ममन्यु। तिग्मरपिम । तीसरा पहर । अपराह्य । तिग्मांशु । तिजार-या पुं० [सं०त्रि+ज्वर ] तीसरे दिन भानेवामा स्वर। ३ प्रचर । उन (को०)। विजारत--धन सो [.वाणिज्य ! नेप। म्यापार तिग्म-संवा ०१ वच । २ पिप्पली ।--(अनेकार्थ)। ३. पुरुवपीय रोजगार । सौदागरी। एकधिय।-(मत्स्य)। ४. ताप (को०)। ५. तीषणता। तिजरी-सबा खी० [हि तिजार तीसरे दिन जारा देकर तोकापन (को०)। पानेवाला ज्वर। सिग्मकर-सा पुं० [सं०] सूर्य । तिजिया-म पुं० [ हितीपा (= तीसरा)] वह मनुष्य विसका तिम्मकेतु- पु. [१०] ध्रुववंषीय एक राजा जो वत्सर पौर तीसरा विवाह हो। सुवीची पुत्र थे। (मापवत)। तिजिल~स पुं० [सं०] १ चंद्रमा । २ राक्षस (को० । सिग्मभ-पा. [. सिग्मवम् ] पग्मि (को०)। विग्मता-सा श्री. [सं०] तीक्ष्णता। वैष । उता । प्रचंडसा। विनइना--कि. म. [सं. त्यजन तपना ।छोड़ना । उ०पर -परतत्रता में घाषारणों को निल पोर दरिद्र बना म्हारहीरा अपच, नहीं सो गोरी तिजहूँ पराण-पी. दिया है इनमें वह तिमता, षो विषयी माति में होती है रासो, पु० ३३॥ । कमी पा ही नहीं सकती प्रेमघन०, भा० २, पृ० २८१। तिजोरी-सोपं. देवरी लोहे की मजबूत छोटो भासमारी, जिसमें काप, गहुने प्रादि सुरक्षित रखे जाते हैं। तिग्मतेज'-वि० [सं. तिग्मवेषस् 11.ती तीखा। २.पैठने- वाला । प्रविष्ट होनेवापा। ३. उन। प्रचा। ४ तेजमा विद्रो- श्री० [सं० वि -तीन)] ता का वह पत्ता जिसमें वेषस्थी फो०] । तीन वृटिया हो। तिग्मतेजपु. सूर्य को०] मुद्दा०-विधी करना-गायब करना। डा से षामा । तिमी तिम्मदोधिति--01] सूर्य। होना-(1) चुपके से चले जाना । मायब होना । (२) सिग्मद्यति, विग्मभास-सका पु. [ से०] सूर्य [को०)। भामबाना. तिग्ममन्यु-सका पुं० [सं०] महादेव । निव। विडीबिड़ी- विदेश.] तितर ग्तिर। छितरापा हुपा। प्रस्त. तिग्ममयूखमालो-- ० [सं० तिग्ममयूधमालिन् ] सूर्य (को०] । स्पस्त। तिग्मयातना-सक्षा स्त्री॰ [सं०] प्रचड या असह्य पीड़ा [को०] । सिद्धा-सा वि० [हिं० दे० 'रिडो'। उ०- पालउ प्रवर तिम्मरश्मि-शा पुं० [१०] सूर्य। सण्ठ कई फाकर कह तिहअम्बिका साव (talk)ढोला०, दु.,६९. ! तिम्माशु-या [सं०] सूर्य। तिण -सर्व० [हिं०] दे० 'तिन' उ.---पई दिसि दामिनि विपरा-सा पु. [सं० विघट ] मिट्टी का चौडे मुंह का बरतन सधन धन, पोउ तजो तिण वार | ढोला०, दु. ३७ । जिसमें दूध दही रखा जाता है। मटकी। विण [सं० तृष] तृण । तिनका ।