पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/४२८

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२०७४ जिसमें तावही जो आवेश में माकर या साहसपूर्वक काम करता हो (वस्तु) जो कही और सुपरती लिए 17 छाप हो 1 ।। तावना --किस [• तापम 'पाना । गरम करना । 'उ6-मतने तनक ही मैं तापन ते तावैगो।--मारतेंदु ग्रं, मा०पू०३७६। जलाना । ३ संताप पहुँचाना । दुःख पहुंचाना हुना। तावबंद-सज्ञा बिद] वह मौष जिसके प्रयोग से चांदी का मोटापन तपाने पर भी प्रकट न हो। तावभाव-वि० थोडा सा । जरा सा । इसका सा। तावरण-सा सी० [हिं०] दे० 'तावरी'। , तावरी-सचा मो०० ताप, दि० लाव+री (प्रत्य॰)] १. ताप । दाह। जलन । 30-फिरत हो उतावरी लगत नही वावरी। -~-सुदर० प्र०, भा॰ २, पृ० ४६०। २. धूप । घाम ! पातप ३.बुलार ज्वर हरारत । ४ गरमी से पाया हुमा चक्कर। मूर्धा । क्रि० प्र०-प्रामा। तावरोज-सज्ञा पुं० [हिं० ताव+रा (प्रत्य॰)] १ ताप दाह । जलन । २ सूर्य की गरमी घूप । घाम। पातप। उ०---मैं बमुना पल भरि घर पावति मो को सागो वावरो। तर (शब्द०) ३ गरमी से पाया हुधा पक्कर । पनेर । मूखीं। क्रि० प्र०-माना। ताबला-...समा स्त्री० [हिं० ताव] जल्दी । उतावलापन । हावड़ी। वावा--सपा पुं० [हिं० वाव दे० 'तवा'। २ वह कच्चा खपड़ा या पपुमा जिसके किनारे प्रभी मोहे न गए हों। ३ तवा। वावर-सम्पुं० [सं०] धनुष की डोरी । प्रत्यचा को। तावान-सा पुं० [फा०] १ वह चीज जो नुकसान भरने के लिये दो या ली जाय । क्षतिपुर्ति । नुकसान का मुपावना। २ पयंदा का किन-देना !-लेना। ' ३. यह धन या सामान पादि जो हारा हुमा राष्ट्र विजेता को देता है [को। यौ०–तावाने जग - युद्ध को क्षतिपुति को पराजित राष्ट्र को करनी पाती है। दावाना-क्रि० स० [सं० ताप, हि हारना] पौध में ताप देना। पनि में तपाना । दे० 'तावना। १०-ठुझ लुक करिके गढ़े ठठेरा बार घार ताबाई.वा मूरत के रही मरोसे, पछिला 'धरम नसाई।-धीर श., भा० ३,१०५४ ताविष--सका पुं० [सं०] दे॰ 'तावीए . वाविषो-सक्षा बी० [सं०] १ देवकन्या । २ नवी। ३ पृथिवी। ४ समुद्र (को०)। ५. स्वर्ग (को०)। ६. सोना । सुवर्ण (को०)। पापाज-सबा पुं० [अ० तामवीज] १ यत्र, मत्र.या फवच खो किसी सपुट के भीतर रखकर गले में या बांह पर पहना ""माय । रक्षाकवरं । फवच । ३०-यत्र मंत्र जती करि लागे, करि तावीजगले पहिराए, साबीर सा- ४ । २. सोने, चांदी, ती भादि का चौकोर यामठपहना, गोल या चिपटा सपुट जिसे 'तारों में लगाकर गले याबाह पर पहनतेजतर - 17,rin विशेष-ये संपुट यों ही गहने की तरह भी पहने, बासे. और इनके भीतर यत्र भी रहता है। .."- :-- - मुहा०-तावोज धिना - रक्षा के लिये देवता का मंत्र मादि लिखकर बांधना । कवच बापना। । .. ३ फन पर बना हुमा ईटों या पत्थर का निशान (को०) 1४ मसे का एक मासुपए (को०)। तावीत-सहा खौ[म.] १ स्पष्टीकरण । २. किसी बात का असली पर्थ से हटकर दूसरा प्रर्थ । ३. किसी बात का ऐसा प्रर्य बताना जो लगभग ठीक जान पड़े। ४. स्वप्नफल कहना [को० । तावीप-सञ्ज्ञा पुं० [सं०] १ सोना । स्वर्ण । २ स्वर्ग। ३ समुद्र । तावीपो-संवा श्री० [सं०] दे० 'ताविषो' [को०] । - तारि-सबा पुं० [यूनीटारस] वृष राशि। ताश-सबा पुं० [म.वास (-तश्त या चौडाबरतन)] एक प्रकार का जरदोजी कपड़ा जिसका ताना रेशम का और पाना बादले का होता है। जरवक्त। २. खेलने के लिये मोटे कामजाका पौलुटा टुकड़ा जिसपर रंगों की बूटियां या तसवीरें बनी रहती है । खेलने का पत्ता ! विशेष-खेलने के हाथ में पार ग होते हैं हम, चिड़ी, पान भौर इंट। एक एक रग मे तेरह तेरह पत्ते होते हैं। एक से दस तक तो दूटिगा होती है जिन्हें क्रमच एक्का, दुको (या दुडी), तिकी, चौकी, पजी, छक्का, सप्ता, मट्ठा, नहषा मोर बहसा कहते हैं। इनके अतिरिक्त तीन पत्तों में "क्रममा गुलाम, बीबी और बादशाह की तसवीरें होती है। इस प्रकार प्रत्येक रग के तेरह पत्ते भौर सब मिलाकर बावन पत्ते होते हैं। खेलने के समय खेलनेवालों में ये पत्ते उसटकर पराबर बाट दिप पाते है। साधारण खेल (रगमार) में किसी रग की अधिक बूटियोंवाला पता' उसी रग की कम बूटियोवाले पत्ते को मार सकता है। इसी प्रकार पहले को गुमाम मार सकता है मौर गुलाम को बीबी, बीबी को बादशाह मौरबारमाह को एक्का । पक्का सब पत्तों को-मार - सकता है। ताश से खेल कई प्रकार के होते हैं, जैसे, दंप, गन, गुलामपोर इत्यादि।. - । - वास का खेल पहले किस देश में निकला, इसका ठीक पता नही है। कोई मिन. देवको, कोई काबुल,को, कोई परवी पौर कोई भारतवर्ष को इसका पावि सान बतलाता है। फारस मौर परब में गजीफे का खेल चहत दिनों से प्रचलित है जिसके पत्ते रुपए के प्राकार के गोल मोच होते हैं। इसी ।। से उन्हें ताश कहते हैप्रकार के समययुस्ताना, - । ताच प्रचलित थे, उनके रंगों के नाम पोर ।से, म गजपति, नरपति, गदापति दलपति इत्यादि। इनम मा हायो पावि पर 'सार तसवीरेंबिनी होती पी। पर मानव जो ताथ सेले जाते हैं वे यूप-सेही पाते है। म .