पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/४२३

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वाप्य ककरण, कोकिलारक, वादकाकूल, कद, सालकन्द ] तास मूमी । मुससी २०६३ वासवर वाप्य-संघा पुं० [सं०] तृपा नामक नता से बनाया हुमा वस्त्र ताली पत्र. ताड़ का पेड़ या फल । १..नेता विल्यास जिसका व्यवहार वैदिक काल में होता था। (अनेकार्थः) ११ हाथियों के कान फटफटाने का बम्द । १२. तायें-वि० [सं०] १. तारने योग्य । उद्धार करने योग्य । २. संवाई की एक माप । बित्ता। १३. तामा। १४. तसबार पार करने योग्य । ३. जीतने योग्य [को०] । की मूठ। ११. एक नरक । १६. महादेव । १७. दुर्गा के सिंहासन का नाम । १५. पिंगत में उमण दुसरे भेदका तार्य-संगापुं० नाव मादि का भाड़ा [को०] । नाम जो एक गुरु और एक लघु का होता है-51 १९. वालंकमा पुं० [सं० तालक] दे० 'तडक [को०] । वाड़ की ध्वजा (को०)। २..ऊँचाई का एक परिमाण (को०)। वान'-संवा ० [सं०] १ हाय का तल । करतल । हथेली । २. २१. एक नृत्य (को०)। यह सन्द जो दोनों हथेलियों को एक दूसरी पर मारने से मार, वाल-संश पुं० [सं० तल्ल] वह नीची भूमि या संवा बौड़ा उत्पन्न होता है। करतध्वनि | वाली। उ०-लुक, गड्डा जिसमें बरसात का पानी जमा रहता है। बताय । चुटकुस, प्रतिगीत, वाद्य, ताल, नृत्य, होइठे मछ।-वर्ण- पोखरा। तालाब । उ.--कौन तास मोर कोन द्वारा कहें रस्नाकर, पृ.२। ३ नापने या गाने में उसके काम मोर होइ हसा करे बिहारा । कबीर मं.पु.५५५ । क्रिया का परिमाण, जिसे बीप बीच में हाथ पर हाय वाल@3-सपुं० [हिं० तार ] उपाय । दाँव । ३०-वास विकट मारकर सूचित करते जाते हैं। उ०—मागणहारी सीख दी निगमा सबल न सागै तान ।-बाँकी. प्र., मा.१, ढोला तिणहिप ठाल!-दोला०, दू. २०६ । पु.६६। विशेष-संगीत के संस्कृत प्रपों मे ताल दो प्रकार के माने गप ताल न गप ताल -संवा पु-[सं० ताल ] क्षण। समय । उ०-डाढी गुणी में हैं-मागं और देशो। भरत मुनि के मत से मार्ग ६.है-- बोमाविया, राजा विणही ताल । ढोसा, दु.१०५। परत्पुट, पाचपुट, पपितापुत्रक, उद्घट्टक, संनिपात, वाल"--वि० सी० [सं० उत्ताल ] ऊंपी। 30-याकुम पी निस्सीम ककरण, कोकिलारव, राजकोलाहल, रंगविद्याधर, श्वघोप्रिय, सिंधु को ताल तरंगें।-अनामिका, पृ.५६ । पार्वतीनोपन, राघूड़ामरिण, जयधी, वादकाफुल, कल्प, नलकुधर, दपंण, रतिषीन, मोक्षपति, धौरंग, सिंहविक्रम, वालकंद-संवा पुं० [सं० सालकन्द] तास ममी। मससी। दीपक, मल्लिकामोद, गजलील, चरी, कुहक्क, विजयानद, वालक -समापुं० [अ० तमस्तुक] दे० 'तमस्सुकाउ.-होतो वीरविक्रम, टैंगिक, रंगामरण, धोकोति, वनमानी, चतुर्मुख, एक बालकन मोहिं कछू तालक पैदेखो पात तुमहें को कसी सिंहनंदन, नदीस, चंद्रबि, द्वितीयक, जयमगस, गमवं, सघुताई है। हनुमान (इन्द०)। तालकर-संच पु० [सं०] १. हवाम । २. तामा। ३. गोपीचंद पोष, हरवल्सम, भैरव, गतप्ररयागत, मल्सनाली, भैरव- ४. ताड़ का पेड़ या फस (को०)।५परहरको मस्तक, सरस्वतीकठाभरण, क्रीडा, निःसारु, मुक्तावसो, रंग- तालक -मव्य० [हि..] दे० 'वसक'। उ.-त्रिकटी संधि राज, भरतानद, पादितास, सपर्कष्टक इसी प्रकार १२० नासिका तालक, सुष्मान पाय समाई।-प्राण., पृ०१४॥ देशी वाल गिनाए गए हैं। इन तालों नामों में भिन्न भिन्न तालकट-सका पुं० [सं०] वृहस्साहिता अनुसार दक्षिण का एक प्रयों में विभिन्नता देखी जाती है। इन नामों में से भाजकल देव जो कदापिर बीजापुर के पास का वासीकोट हो। त हैं। संगीत में ताल देने के लिये तबले, मृदंग तासकाम-समा पुं० [सं०] हरा रंग [को०] । ढोल और मंजोरे प्रादि का व्यवहार किया जाता है। सालकाम-वि० हुए को] - . क्रि०प्र०—देना । -बजाना। तालकी-सधा स्त्री० [सं०] ताड़ी। तासरस। यौर-तालमेल । सालकटा-संगापु [हिं० तान + फूटना ] झाझ पजाकर भवन मुहा०-ताल बेताल =(१) जिसका वाल ठिकाने से न हो। मादि गानेवाला। (२) अवसर या बिना मवसर के। मौके । बेमौके । वाल से ल से तालकेतु-सा ५० [सं०] १ वह जिसकी पताका पर ताड़ के पेड़ माल क ., , बेताल होना-ताल के नियम से बाहर हो जाना । उसड का चिह्न हो। २. भीष्म । ३. बसराम । जाना । ( गाने बजाने में)। तालकेश्वर-सका पुं० [सं०] एक पोषण जो कुष्ट, फोड़ा फंसी ४.अपने जंघे या बाह पर जोर से हथेली मारकर उत्पन्न प्रादि में दी जाती है। किया हमा शब्द । कुस्ती मादि सड़ने के लिये जब किसी विशेष-दो माशे हरताल में पेठे के रस, पीकुमार के रस मौर को लमकारते हैं, तब इस प्रकार हाप मारते हैं। तिल तेल की भावना देते हैं। फिर रो माहे गंधक पौर मुहा०-ताल ठोंकना = लरने के लिये सलकारना । एकमाथे पारे को मिलाकर कज्जसी करते और उसमें भावना ५ मंजीरा या झांझ नाम का बाजा। 10-तास मेरि मृदंगबाजत दी हुई हरताल मिलाकर फिर सब में क्रम करीब, सिंघु गरजन जान । -परण. बानी, पृ० १२२ । ६. नीबू रस और धीकुमार के रस की तीन दिन भावना देते चश्मे के पत्थर या कांच का एक पल्ला। ७.हरताच । ८. हैं।मत में सबका गोल कप बनाकर उसे हड़ी में शार