पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/३६८

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तफरीह तबदीखी तफरीह-सबा बी.[4.फरोह, खुशी। प्रसन्नता । फरहत । तब-सका बी० [फा०] १. ताप । तपन । गर्मी। २ ज्वर। २ विषबह्मान । रिस्लगी। हंसी। ठट्ठा। हवायोरी। बुशार [को०] 1 सैर ! तावापर वावगी। तबईल-कि० वि० [सं• सय ] तभी। -बबई पानि पर तफरीहन-कल्य• [म० तफ्रीहन्] १ मनबदबाव लिये । २. हंसी सहा, तब ता सिर देहि ।-नद० प्र०, पृ. १३५ ॥ से बिये [को०। तबक-सका पु.[प्रसुधक ] १ पानामा वे कल्पित खट षो तफर्का-सा पुं० [प. प्रफ या फिक्र १ फुट । परस्पर पुज्मी कपर और नीचे माने पाते हैं। लोक। तल । २ विरोध। २ शत्रुता। दुश्मनी । ३ पुषकता । ममगाव । परत । तद । ३ पांदी, सोने प्रादि पातुर्मो के पत्तरों को उ०-अगर इन बातो में जिस कदर तफळ पस्ता जायगा, पीटकर कायज की तरह पनाहमा पत र पो पधा सुबवेवाले विष का पसर बदलता चला षायगा। पं., मिठाइयाँ प्रादि पर पकाया मोर दवायो में टासा जाता पु. 1 है।४ पौड़ी मोर पिधनी थाली । ५ यह पूजा या उपचार यो०-तफा भगोष, तफर्का प्रगेष, सफा परवान, तफी जो मुसनमान लियो परियो की बाधा से वरने के लिये करती पर्वर- फूट डालनेवाला। तफा प्रगेजी, सफर्का प्रदाबी, हैं। परियों को समाज। तफर्का परबाषी, तफर्का परी= फूट या विरोध गबना। क्रि० प्र०-छोपना। तफरज-सा श्री. [प्र. ठफरूंच] दरिता पोर होनसा रे ६. घोगो का पक रोग जिसमे उनके पारीर पर सूत्रन हो जाती है। सपूदिौर चन्नति फी पोर पाना। ३. सैर । पानव विहार । रक्तविकार के कारण परीर पर पड़ा हुमा दाग । क्रीड़ा । कौतुक । तमाशा । उ०-तफर्रुज ते शाहजादा निकल । 'वल्या कामरानी का घर दिखानल।-वविधनी, तपकगर-संज्ञा पुं० [५० तबक+फा गर वह जो सोने चादी पृ० २७०। पादि के तबक का पत्तर बनाता हो । तकिया। यो०-तफरंब गाह- सैर तमाशे का स्थान । कौशस्थल तवकर-5 मी० [५० तबक+री (प्रत्य॰)] छोटी विनोवस्थन। रिकाबी। तफसील-शा बी. [म. तफ्सी] १. विस्तृत वर्णन । २. तवकचा-सबा पुं० [प० तबक - फा. पह.] छोटी रिकाची (को०)। टीका। सशरीह। ३ सूची। फेहरिस्त । फर्द। ४ कैफियत। तबकफाड़-सा पुं० [प.तषक+दि० फार] कुश्ती का एक च । ब्योरा विवरण। विशेष-बब पनु पेट में घुस पाता है, तब पहलवान अपनी तफसीर-संज्ञा स्त्री० [अ० तफसीर ] कुरान शरीफ की टीका। दाहिनी टांग उसके बाप पाव को भीतर से बाधते हैं और .-मो पालिम तफसौर सूरत नवम मे पह लिखता है। पोरों हार्यों से उसकी दाहिनी टोग को पाप की जगह —कबीर म., पृ.७ पककर उसके दोनों पद फाड़ते हैं मोर मौका पाकर उसे चित कर देते हैं। तफाउत-पज्ञा पुं० [प० तफावुत्त] दे० 'तफावत'। 10-पिदर पर देखकर पस्यो मुझे पब, अमानत में तफारत में करो सवा तवफा-मक्ष पुं० [म. तबाह १. खड। विभाग। २ वह । -दक्खिनी., पु. ३१९ । परत । ३. लोक। तल । ४ पादमियो का गरोह । ५ पद । स्तबा। सफावज-सबा पुं० [अ० तफावत ] फ। तफावत । उ०- उ.--कवि सूम सम दाखिए, नहीं तफावज रेह ।-यौको. तवकिया-सा पुं० [अ० तपक+श्या ( प्रत्य० ) ] वह जो सोने वी माविक या पत्तर बनाता हो । तरकार। प्र., भा० ३, पृ.७1 तफावत--का पुं० [म. तफावत ] १ पंतर। फर्क। २. तवकियार-वि० तबक सबधी। जिसमें तवक या परत हो। ने पूरी । फाणिषा। सरफिया हरताल । तफ्सीर--सा पुं० [4. उफ़्सीर] १ व्यास्या। तबरीह । २ तवकिया हरताल-सक पुं० [वि. रामकिया+हरताल ] एक प्रकार किसी धर्मग्रप की व्याख्या या भाष्य। उ०-तारीख व कीहरताप विसो टुकड़ों में तबक या परत होते हैं । इसके तपपौर गहतर, पहा पामौ एक था र-दक्खिनी०, टुक में से अलग पनप पपड़ियां सौ उतरती हैं। पृ. २२० । तबदील-वि० [म.हन्दीस ] यो पक्खा गया हो । परिवर्तित । तय--प्रव्य० [सं० तवा] १ स समय । उस वक्त । यो०-तबदील माबोहवा = बलवायु का बदलना। एक स्थान विशेष-इस कि. वि. का प्रयोग प्राय सबके साथ होता है। से दूसरे स्थान पर पाना । तबदीले सूरत- (१) रूप या शस्ल जैसे,—जप सुम बापोगे, तब मैं चलूगा। पदस पाना । (२) हुपिया पलना । बहरूपिया बनना। तबदीली-सबा श्री० [भ० तब्दील+फाई (प्रत्य॰)] १ २, इस कारण । इस वजह से । जैसे,-मेरा उघर काम था तब बदले जाने या परिवर्तित होने की क्रिया। बदली । परि... मैं गया, नहीं तो क्यों जाता? वतन । २. स्थानातरण (को०)। ३ उथल पुथल । काति ।