पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/३६०

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तनना सनामुस मोर खिचना । पाकषित या प्रवस होना। किसी बीपका तनहा-वि० [फा०] १. जिसके संग कोई न हो। बिना पापी प्रारकर सीधा खड़ा होना। वैसे,—यह पेड़ कल मुक गया था, का। अकेला 1 एकाकी ।२ रिक्त । खाली (को०)। पर पानी पाते ही फिर तन गया। कुछ मभिमान- तनहार–कि. वि० बिना किसी संगी साथी का मरले पूर्वक रुष्ठ या उदासीन होना । ऐंठना । से,-घर कई दिनों तनहाई-संवा श्री० [फा०] १. तनहा होने की दशा पा भाव । से वे हमसे कुछ तने रहते हैं। २ वह स्थान जहाँ और कोई नहो । एकांत । संयो० कि०-जाना। यौ०-तनहाई कैद। तनना-क्रि० स० [हिं० दे० 'तावना' । उ०-ग्रहपथ के पालोक- वृत्त से काखजाल तनता अपना ।-कामायनी, पु. ३४ । तना-संबापुं० [फा० तनह वृक्ष का जमीन से ऊपर निकला हुमा वहाँ तक का भाग बहा तक गलियो न निकली हो। तनना--सका पुं० [हिं० ताना ] वह रस्सी जिससे तानने का कार्य पेड़ का घर । मंदल। किया जाता है। तना-कि० वि० [हि तन] मोर । तरफ। ३. 'तन'11.- तनपात -सज्ञा पुं० [हि.] दे० 'तनुपात नील पट झपटि लपेटि छिगुनी पै धरि टेरि टेरि को होस तनपोषक-वि० [सं० तन+पोषक ] पो केवच अपने ही शरीर या हेरि हरिवं तना-देव (शब्द)। लाभ का ध्यान रखे । स्वापी। तना-संज्ञा पुं॰ [हिं०सन ] शरीर। जिस्म। वनबाल-सद्धा पुं० [सं०] १. एक प्राचीन देश जिसका पाम महा- -तना सुख में पड़ा तब से गुरू का शुक्र क्यों भूला कदीर म०, भारत में पाया है। पु. १४३३ तनमय-वि० [सं० तन्मय दे० 'तन्मय' । उ.-अपनो सपनो धाम तना -संक्ष. [हिं०] दे० 'तनाव' । सखी री तुम तनमय मैं फहूँ न मेरे।-सूर (शब्द०)। तनाई-संह सौ.[हिं०] दे० 'तनाव। तनमात्रा-सा सौ. [सं० सन्मात्रा] दे० 'तन्मात्रा। तनास-संह स्त्री० [हि.1 दे० 'नाव'। उ०-फटिक छरी सी तनमानसा-सहा मी [सं०] ज्ञान की सात भूमिकाओं में तीसरी किरन परंघनि पब माई। मानो बितनु बितान सुपेस भूमिका । तनाउ तनाई। नंद००, पृ००। तमय-सहा पुं० [सं०] १. पुर। बेटा। सहका। २. जन्मलग्न से " वनाउल-संह पुं० [म. तनावुल ] भोषन करना । उ०-हजूर पांचवा स्थान जिससे पुत्र भाव देखा जाता है। को खासा तनाउल फनि को नावक्त हमा जाता है।- तनया--पशा सी० [सं०] १. बहकी बेटी । पुत्री। २ पिठबन लता। प्रेमघन॰, पृ०५५। तनराग-सहा पुं० [सं० तनु+राप] दे॰ 'तनुराग' । तनाउ सशपु.[हिं०1० 'तनाव', तनरह -सबा पुं० [सं० तनूरह] दे० 'तमूह' । उ०---पुरषवंत पर तनाक-वि० [हिं.] दे० 'तनिक'। .-दर, स्तोक, ईखत, पचर भूमिसुर तनह पुलकि जनाई। तुलसी (शज्व०)। वनवाद-सहा . [सं०] भौतिकवाद । शरीर को मुस्य माननेवाला प्रसप, रंधक, मय, मनाक। तब प्रिय सहचरि तन पिते, सुसकी फूभरि तनाक!-नंद.प्र.पु. १००। सिद्धांत । उ.--यह ठेठ तनवाद और कर्मवाद है।-सुखवा, वनाकुल-वि० [हि.] दे. 'तनिक। तनवाना-क्रि० स० [हिं० सामना का प्रे०रूप] मानने का काम दूसरे तनाजा-समपुं० [अ० तनाज]१ बसेड़ा। झगडा । टटा। से कराना । दूसरे को तानने में प्रवृत्त करमा समाना । दंगा। संघर्ष। फसाद। २ भदावत । कसाकरा त्रुता। वर। वैमनस्य। तनवाल—सका पुं० [देश॰] वैश्यों की एक जाति। तनसल—सम दिश० स्फटिक । पिल्लौर। तनाना-कि. स.[हिं० तानना का प्रेम तानने का काम दुसरे से कराना। दूसरे को तानने में प्रवृत्त करना। उ०-कलस तनसिज-सधा पुं० [सं०] सरोज । ३०-सब गनना चित पोर सौं, चरन तोरन ध्वजा सुवितान तनाए।-तुलसी (शम्द०)। बनी सुनत यह बोल । मरके तनसिब वरुनि के, फरसे मोम कपोस ।-स० सप्तक, पू. २४२ । तना -सा भी. .तिनाव1१ खेमे की रस्सी। २ बाजी. - गरों का रस्सा जिसपर वे पसते तथा दूसरे खेल करते है। तनसीख-सक श्री० [म. तनसीख ] रह करना । बाविसकरमा । यौ०-तनाने अमन = (१) माया रूपी डोर। (२) माथा । नाजायज करना । मसूखी। . . सनाने उम्र-मायुसूत्र । मायु । जीवनकाल । तनसुख-सं० [हिं० तन+सुख ] तजेब या पती की तरह का एक प्रकार का पदिया फूलदार कपड़ा। 30-(क) तनसुख तनाय सं [हिं०] ३० तनाव। सारी लाही भंगिया मतलस प्रतरोटा परिपारिवारि चरी तनाव-सबा . [हि.नना.] १ तनने का भाव या क्रिया। पहुंचीनि पहुंची छमको धनी मकफूल जेब मुसीराबौके कोषे २ वह रस्सी जिसपर बोषी कपड़े सुखाते हैं। रस्सी । संभ्रम भूली-हरिदास (सम्द०)। (ख) कोमलता पर रसान मेरी । जेवरी । रज्जु । वनसुख की सेज साल मन सोम सुरज पर सुभाबिंदु बरपै!- बनासुख-समपु. [म. तनासुख ] भाागमच (०] ।