पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/३५६

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तत्वज्ञ २००२ तन्त्रक समय तक तत्वो की संख्या २३ तक च पुकी थी। १९वी तत्ववाद-सधा पुं० [ म० तसवाद | दर्शनशास्त्र संबपी विचार। शती मे सर हफी उवी ने नमक के मुल तात्र सोडियम फो भी तत्ववादी-ना० [ म तत्वयादिन] जो तस्ववाद का जाता पुथफ किया भोर कैल्सियम तया पोटासियम को भी यौगिकों मौर समयफ हो। २ जो यथार्य और पटवात पाहवा हो। में से प्रलग करके दिखा दिया। २०वी शती में मोजली पविद्र-सण पुं० [ तत्त्वविद १ तस्ववेत्ता । २ परमेश्वर । नामक वैज्ञानिक ने परमाणु सम्या की कल्पना सी जिससे तत्वविद्या--सका भौ• [सं०] दर्शनशास्त्र । स्पा हो गया कि सबसे हल्के तत्व हाइड्रोजन से लेकर प्रकृति तत्ववेत्तामा पु. [ तत्परत. 1 १ जिसे तत्व का हान हो। में प्राप्त सबसे भारी तत्प यूरेनियम तक तत्वो फी सल्पा तत्वज्ञ। २. दर्शनशास्त्र का जाता। फिलासफर । दानिक। लगभग १०० हो सकती है। प्रयोगो ने यह भी सभय करके तत्वशाख-समा० [सं० सत्वशास्त्र] १ दशनशास्त्र । २ वैशेषिक दिखा दिया है कि हम अपनी प्रयोगशालाओं में पोका शनकारन। विभाजन पोर नए तत्वो का निर्माण भी कर सकते हैं। वत्वावधान-पा . [ र स्वावधान ] निगाण । जाच पड़ताल । ३ पचभूत ( पृथ्वी, जल, वेज, वायु मोर भाका)। । देन रेस। परमात्मा । ब्रह्म। ५ सार वस्तु । साराश । जैसे,-उन सेप तत्यावधानक-सा पुं० [f० तत्वावधान ] देखरेख करनेवाला। में कुछ तत्व नही है। निरीक्षक। यौ०-तत्त्वमसि-यह उपनिषद् का एक पापय है जिसका तत्था-10 [ ] मुख्य । प्रधान । तात्पर्य है हर व्यक्ति रहा है। तत्या. पुक्ति । ल । ताऊत । वत्वज्ञ-सा पुं० [मतत्वश] १ वह जो ईश्वर या ब्रह्म को तत्पत्री-सपा औ• [0] केले का पह। २. वसपी नाम जानता हो । तत्वज्ञानी। ब्रह्मज्ञानी। २ दार्शनिक 1 दर्शन की पास शास्त्र का शाता। तत्पद-सय [] परम पद । निर्वाए। तत्वज्ञान-सा पु. [ सं तत्त्वज्ञान ] ब्रह्मा, मात्मा प्रौर मृष्टि मादि तत्पदार्थ--सपा ' [ मृद्रिापरमारमा। के सबध का यथा ज्ञान । ऐमा जान जिरासे मनुष्य को मोक्ष तत्पर'- मे] [ मतपरता] १. जो कोई काम करने के हो जाय । ब्रह्मज्ञान । लिये तैयार हो। उयत । मुस्तैद समद।२ निपुण । ३. विशेष-साख्य मौर पातजस के मत से प्रकृति पौर पुरुष का पतुर । होशियार । ४ उसके बाद का (ले०)। भेद जानना मोर वेदात के मत से विद्या का नाश पोर वस्तु तत्परसवा सनम का एक बहुत छोटा मान । एक निमेष का का वास्तविक स्वरूप पहचाना ही तत्वज्ञान है। तीसरा भाग। यौ०-तत्वज्ञानार्थ दर्शन = तत्वज्ञान या विमर्श या पालोपना। तत्परता-या स्त्री॰ [सं०] १ सर होने की क्रिया या भाव । तत्वज्ञानी-शा पुं० [सं० तत्वज्ञानिन् ] १ जिब्रह्म, गृष्टि पौर सनसना । मुस्तैदी। २. दक्षता। निपुणता । ३.होधिधारी। भारमा मादि के सबध का मान हो । तत्पश । दानिक। तत्परायण-1 [20] किसी वस्तु या म्यप में पूरी तरह से लग्न तत्वतः-प्रव्य० [सं० तत्वत ] वस्तुतः । यथार्यत । वास्तव में [को०)। या दत्तचित की। तत्वता---सपा श्री. [सं० तत्पता] १ तत्व होने का भाव पा गुए। तत्पश्चात्--मध्य० [सं० ] उसके बाद । मनतर (२०) । २ यथार्थता। वास्तविकता । तत्पुरुष-सहा पु. [0] १.ईश्वर। परमेश्वर । २ एक रुद्र का नाम । ३ मत्स्य पुराण के अनुसार एक पल (काल विभाग) तत्वदर्श-सका पु० [सं० तत्त्यदर्श ] १ तत्वज्ञानी। २ सावरिण का नाम । ४ व्याकरण में एक प्रकार का समास जिसमें मन्वतर के एक ऋषि का नाम । पहले पद में फ FIR विक्ति को छोड़कर कममादि तत्वदर्शी-सहा पुं० [सं० तत्त्वशिन] १ जो तत्व को जानता दूसरे कार का फी विभक्तिः सुन हो पौर जिसमें पिछने पद का हो। तत्वज्ञानी । रेवत मनु के एक पुत्र का नाम । पर्य प्रधान हो। इसका लिंग मोर वचन मादि पिछने या तत्वदृष्टि---सम श्री० [सं० तत्त्वदृष्टि ] यह ष्टि जो तत्व का ज्ञान उत्तर पद के अनुसार होता है। जैन,- जलचर, नरेश, प्राप्त करने में सहायक हो । ज्ञानचक्षु । दिव्य ष्टि । हिमालय, यज्ञशाला। तत्वनिष्ठ-वि० [सं० तत्त्वतिष्ठ ] तत्व में निष्ठा रखनेवाला [को०)। ' तत्पटिरूपक व्यवहार--T पुं० [म.] जैनियों के मत से एक तत्वन्यास-सका पु० [सं० तत्त्वन्यास] तत्र के अनुसार विष्णुपूजा में मतिचार जी को सरे पदापी बोट पदाय की मिनापर एक मंगन्यास जो सिद्धि प्राप्त करने के लिये किया जाता है। करने में होता है। तत्वभाव-नया ० [सं० तत्वभाव ] प्रकृति । स्वभाव । तत्फल-- पुं० [सं०] १ कुट नामरु मोवधि। २ देर का फल । सत्वभापी-सका पुं० [सं० तत्त्वमापिन् ] वह जो स्पष्ट रूप से ययार्य ३ कुपलय । नील कमल । ४ चोर नामक गंधद्रव्य । ५ बात कहता हो। श्वेत गल (को०)। तत्वभूत-वि० [ से तत्वभूत ] तत्व या सार रूप (को०] । तन्त्र--नि० वि० [*] उस स्थान पर । उस जगह । वहाँ वत्वरश्मि-सका . [सं०] तत्र के अनुसार स्त्री देवता का बोज। तत्रक-बा पुं० [रा०] एक पेड जो पोरस, परव, फारस से लेकर वधुगीजा पूर्व मे प्रफगानिस्तान तक होता है।